साख दांव पर: 2022 का गुजरात विधानसभा चुनाव और भाजपा

भाजपा की नजर में गुजरात की अहमियत बहुत बड़ी है

Updated - November 07, 2022 01:09 pm IST

Published - November 07, 2022 12:03 pm IST

भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीति के मौजूदा मॉडल का प्रस्थान बिंदु होने के नाते गुजरात का भारतीय राजनीति में एक खास स्थान है। आम आदमी पार्टी (आप) के सत्ता के एक गंभीर दावेदार के रूप में उभरने के साथ, वहां 1 और 5 दिसंबर को होने वाला विधानसभा चुनाव त्रिकोणीय होने जा रहा है। इस त्रिकोणीय लड़ाई में सत्तारूढ़ भाजपा को स्पष्ट बढ़त दिखाई दे रही है। वर्ष 2017 में भाजपा को शिकस्त देने के करीब पहुंचने वाली कांग्रेस तब से लगातार नीचे की ओर ही लुढ़कती जा रही है और उसने अभी तक लड़ने का कोई माद्दा भी जाहिर नहीं किया है। उधर, ‘आप’ का उत्साह कांग्रेस की हैरतअंगेज उदासीनता के बिल्कुल उलट है। मोरबी में एक झुला पुल के टूटने और उससे हुई मौतों ने भले ही भाजपा के सुशासन के दावों को कमजोर किया है, लेकिन उसके समर्थकों की नजरों में कामकाज के मोर्चे पर प्रदर्शन और मतदान संबंधी पसंद के बीच के जैविक संबंध कमजोर हैं। इस राज्य की राजनीति गहरे तौर पर हिंदू प्रतीकवाद और अक्सर खुले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से प्रेरित होती है। ‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल गुजरातियों को अयोध्या की मुफ्त तीर्थयात्रा कराने का वादा करके और भाजपा को देशभर में समान नागरिक संहिता लागू करने की चुनौती देकर इसी आजमाए हुए नुस्खे को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। संगठन या कार्यकर्ताओं के लिहाज से ‘आप’ के पास कोई खास जमीन नहीं है और श्री केजरीवाल की लोकप्रियता की बदौलत इसके खाते में आने वाली सफलता की वजह से अपने – आप ही इसके पक्ष में मतदाताओं की गोलबंदी हो गई है। पार्टी को उम्मीद है कि पंजाब वाली स्थिति, जहां उसने इस साल मार्च में चुनाव जीता था, गुजरात में भी दोहराई जाएगी क्योंकि बड़ी तादाद में लोग दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों के विकल्प की तलाश में हैं।

मोरबी त्रासदी से पहले सीएसडीएस द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भाजपा को मतदाताओं के किसी तीखे विरोध का सामना नहीं करने की संभावना है। कुल 70 फीसदी से अधिक लोग भाजपा के पक्ष में थे। पार्टी उन लोगों के बीच भी लोकप्रिय रही जिनके लिए महंगाई एक चिंता का विषय है। वर्ष 2017 की तुलना में, भाजपा ने अधिकांश हिंदुओं और जनजातीय समुदायों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाई है। भाजपा ने यह सही ही आकलन किया

है कि ‘आप’ उसके विरोधी वोटों का बंटवारा कर देगी और 2017 की तुलना में उसकी जीत की राह आसान होगी। इस दावे के बावजूद, पार्टी अपने गढ़ को बरकरार रखने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है। ‘डबल इंजन’ वाली सरकार - केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी का सत्ता में होना - के विवादास्पद फायदे को दर्शाने के लिए एक के बाद एक, दो बड़ी निजी औद्योगिक परियोजनाओं की घोषणा की गई। निवेशकों को कथित तौर पर इन परियोजनाओं को महाराष्ट्र में लगाने की अपनी मूल योजना में बदलाव करने के लिए मजबूर किया गया। केंद्रीय जांच एजेंसियां ‘आप’ नेताओं के खिलाफ सक्रिय हैं, जोकि भाजपा के लिए बेहद सुविधाजनक है। इतनी आरामदायक स्थिति में होने के बावजूद, भाजपा बेचैन है क्योंकि दांव पर काफी कुछ लगा है। भाजपा की नजर में, इस राज्य की अहमियत एक विधानसभा चुनाव से कहीं ज्यादा है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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