इसी 27 फरवरी को नागालैंड में विधानसभा चुनाव होना है, लेकिन वहां पर राजनीति ठंडी और प्रचार सुस्त नजर आ रहा है। लंबे समय से उठ रही क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग के तहत, अभी भी पूर्वी इलाके में एक अलग राज्य बनाने की बात की जा रही है, लेकिन नागालैंड ने इन मामलों को लेकर एक खास किस्म का संतुलन हासिल कर लिया है। बीजेपी और उसकी क्षेत्रीय सहयोगी, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी (एनडीपीपी) 2018 की तरह ही इस बार भी क्रमश: 20 और 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। अगस्त 2021 में विपक्षी नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) भी एनडीपीपी-बीजेपी सरकार में शामिल हो गया, ताकि “भारत-नागा के बीच के राजनीतिक मुद्दे” का अंतिम हल ढूंढने की दिशा में “आखिरी जोर” लगाया जा सके। इसके तहत, चरमपंथी समूहों और खासकर एनएससीएन (इसाक-मुइवा) गुट के साथ स्थायी समझौता की संभावना तलाशी जा रही है। मतदाता, राजनीतिक पार्टियां और बाकी समूह, राजनीति की इस विपक्ष-विहीन व्यवस्था में शांत दिखाई दे रहे हैं। एनपीएफ के 25 में से 21 विधायक अप्रैल 2022 में एनडीपीपी में शामिल हो गए, लेकिन उनमें से ज्यादातर को टिकट नहीं मिला है। एक विधायक बीजेपी में शामिल हुए थे, वे बीजेपी के 20 उम्मीदवारों में से एक हैं। सन् 2018 में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। इस बार उसने 24 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जबकि एक समय तक अजेय दिखने वाली एनपीएफ ने 22 उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
सीमांत नागालैंड राज्य की मांग उठाने वाले संगठन द्वारा चुनाव बहिष्कार की मांग को वापस लेने के बावजूद, राज्य के पूर्वी हिस्से के छह जिलों में यह एक बड़ा मुद्दा है। इन जिलों मे विधानसभा की 20 सीटें हैं। वर्ष 2003 के बाद हुए सभी चुनावों की तरह चरमपंथी समूहों के साथ शांति प्रकिया, सबसे चर्चित मुद्दा है। नागालैंड के चुनावों में राजनीतिक विचारधारा की भूमिका काफी सीमित होती है और यह आम तौर पर लोगों के व्यक्तित्व पर ज्यादा निर्भर करता है कि कौन दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठान के कितना ज्यादा करीब है। राजनीतिक समूहों का चुनावी गुणा-गणित केंद्र की ओर से मिलने वाले धन के इर्द-गिर्द तय होता है, जोकि केंद्र के पैसों पर चल रही इस राज्य की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। बीजेपी-एनडीपीपी गठबंधन ने 2018 के चुनाव को स्वायत्तता के सवाल के ‘समाधान के लिए चुनाव’ के रूप में पेश किया था। केंद्र ने अगस्त 2015 में एनएससीएन (आई-एम) गुट के साथ फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किया था और नवंबर 2017 में नागा राष्ट्रीय राजनीतिक समूह (जोकि वार्ता में शामिल हुए सात गुटों का एक साझा संगठन है) के साथ एक सहमति बनाई थी। हालांकि, जल्द ही अलग नागा ध्वज और नागा संविधान के मुद्दे पर वार्ता में गतिरोध आ गया। चरमपंथियों ने भाजपा पर नागा लोगों के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए यह मांग की है कि मतदान से पहले इसका राजनीतिक समाधान निकाला जाए। नई सरकार के पास करने को बहुत सारे काम होंगे।
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