प्रतिभा और अनुभव: हॉकी विश्वकप में जर्मनी की जीत 

हॉकी विश्वकप जीतने के लिए जर्मनी तजुर्बा और लचीलेपन पर निर्भर रही 

Published - February 01, 2023 11:43 am IST

भुवनेश्वर के साथ जर्मनी का रिश्ता पिछले रविवार को और गहरा हो गया जब 2002 और 2006 के चैंपियन ने कलिंग स्टेडियम में अपना तीसरा पुरुष हॉकी विश्वकप जीता। संयोग से, जर्मनी ने 2014 चैंपियंस ट्रॉफी के रूप में अपना आखिरी मेजर खिताब ओडिशा की राजधानी में ही जीता था- शहर के उस हिस्से में जिसे जर्मन वास्तुकार ओटो कॉनिग्सबर्गर ने 1946 में डिजाइन किया था। डाई होनामास (जर्मनी की हॉकी टीम का लोकप्रिय नाम) ने ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स के तीन खिताब जीतने की बराबरी कर ली और चार खिताब जीतने वाले पाकिस्तान से वह अब सिर्फ एक कदम पीछे है। यूरो हॉकी चैंपियनशिप का उपविजेता बनकर विश्वकप के लिए क्वालीफाई करने और 2021 के टोक्यो ओलंपिक में भारत के हाथों कांस्य पदक गंवाने वाली जर्मनी इस विश्वकप की पसंदीदा टीमों में शामिल नहीं थी। धैर्य और लचीलेपन के विश्वास पर सवार होकर इस टीम ने क्वार्टर फाइनल में इंग्लैंड, सेमीफाइनल में मजबूत ऑस्ट्रेलिया और फाइनल में 2018 संस्करण के चैंपियन बेल्जियम को पटखनी दे दी। फाइनल समेत इनमें से दो जीत पेनल्टी शूटआउट के जरिए मिली। जर्मनी के पास उभरते और अनुभवी खिलाड़ियों का बेहतरीन मिश्रण था। इस टीम में 2014 की चैंपियंस ट्रॉफी की विजेता टीम में खेलने वाले सात खिलाड़ी, जिनमें ‘फाइनल के प्लेयर ऑफ द मैच’, और टूर्नामेंट के ‘सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी’, और ‘सर्वश्रेष्ठ फॉरवर्ड’ का खिलातब जीतने वाले निकलास वेलेन भी शामिल थे। जर्मनी की टीम ने इस किस्म के मिश्रण से बेहतरीन एकजुटता दिखाई। वर्ष 2018 में अर्जेंटीना के लिए खेलने वाले ड्रैग फ्लिकर गोजांलो पिलाट ने भी जर्मनी की जर्सी में इस बार कई अहम गोल दागे।

लगातार दूसरी बार विश्वकप जीतने का बेल्जियम का सपना धराशाई हो गया, चार बार विश्वकप जीतने के रिकॉर्ड की बराबरी करने का ऑस्ट्रेलिया की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा, क्योंकि 1998 के बाद पहली बार उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। नीदरलैंड्स को कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। यूरोपीय देशों का दबदबा कायम रहा, लेकिन एशियाई देशों ने इस बार निराश किया। सर्वश्रेष्ठ एशियाई टीम दक्षिण कोरिया आठवें स्थान पर रही। भारत को अर्जेंटीना के साथ संयुक्त रूप से नौवां स्थान मिला, जो उन चार विश्वकपों में भारत का सबसे कमजोर प्रदर्शन है जिसकी इसने मेजबानी की है। इसके बाद मुख्य कोच ग्राहम रीड ने इस्तीफा दे दिया जिन्होंने भारत को टोक्यो ओलंपिक में ऐतिहासिक कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। कुल मिलाकर, भुवनेश्वर और बैठने की क्षमता के हिसाब से सबसे बड़े हॉकी स्टेडियम वाले राउरकेला में कुशलता के साथ विश्वकप आयोजित हुआ, जिसमें 44 में से 11 मैच या तो ड्रॉ के रूप में खत्म हुए या फिर उसका फैसला शूटआउट में हुआ। पुरुष विश्वकप के इतिसाह में प्रति मैच औसतन 5.66 गोल का रिकॉर्ड सबसे ज्यादा है। टूर्नामेंट का आयोजन सफल रहा और कई मैचों में तो स्टेडियम दर्शकों से खचाखच भरा रहा। इस आयोजन ने बड़ी खेल प्रतियोगिताओं के आयोजक के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है और 2026 के पुरुष और महिला विश्वकप के संयुक्त मेजबान बेल्जियम और नीदरलैंड के लिए एक मानक स्थापित किया है। पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की की अगुआई वाले हॉकी इंडिया को घरेलू स्तर पर इस खेल को फिर से जीवंत करने के लिए, इस प्रतिष्ठित आयोजन से बने माहौल का फायदा उठाना चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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