भाजपा के दो सांसदों, निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी, और उनके सहयोगियों पर आरोप है कि 31 अगस्त को उन्होंने अपने जहाज के लिए सूर्यास्त के समय झारखंड के देवघर हवाई अड्डे पर हवाई यातायात नियंत्रण (एटीसी) से कथित तौर पर ‘जबरन टेक-ऑफ क्लीयरेंस’ लिया। यह स्थापित हवाई सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन है। ये राजनेता उस नाबालिग लड़की के परिजनों से मुलाकात करने के लिए झारखंड गए थे जिसे 23 अगस्त को दुमका में एक शोहदे ने जिंदा जला दिया था। वे दो इंजन वाले चार्टर्ड बिजनेस जेट से वापस दिल्ली की उड़ान भरने के लिए शाम को लगभग 5.25 बजे हवाई अड्डे पहुंचे थे। हवाई अड्डा के सुरक्षा प्रभारी और देवघर के उपायुक्त की शिकायतों के आधार पर आरोप लगाए गए हैं कि एटीसी को उड़ान भरने की अनुमति देने के लिए मजबूर किया गया। इसके बाद, झारखंड पुलिस ने दोनों सांसदों और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। ‘जान और निजी सुरक्षा को खतरे में डालने’ जैसी भारतीय दंड संहिता की अलग-अलग धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। बदले में, श्री दुबे ने दिल्ली में उपायुक्त और झारखंड पुलिस के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। इसमें हैरतअंगेज तौर पर उनके खिलाफ धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत मामला दर्ज कराया गया। इस बात पर वायु सुरक्षा विशेषज्ञ सहमत हैं कि तमाम चिल्लपों को किनारे रखकर उड़ान सुरक्षा के मुख्य मुद्दे पर बात की जानी चाहिए।
वैमानिकी सूचना प्रकाशन में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, देवघर अभी भी एक दृश्य उड़ान नियम (वीएफआर) के तहत आने वाला हवाई अड्डा है और यहां रात में उड़ान का संचालन करने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, ‘एन-रूट-1.2 दृश्य उड़ान नियम’ के तीसरे बिंदु में कहा गया है कि “जब तक कि स्थानीय उड़ानों के लिए हवाई यातायात नियंत्रण मंजूरी नहीं देती, तब तक वीएफआर उड़ानें सूर्यास्त के 20 मिनट बाद से लेकर सूर्योदय से 20 मिनट पहले तक संचालित नहीं की जाएंगी....”, नियम यह है कि वीएफआर शर्तों के तहत उड़ान भरने (टेक-ऑफ) के बाद आपातकालीन स्थिति के लिए हवाई क्षेत्र उपलब्ध होना चाहिए। ध्यान देने वाली बात यह है कि देवघर में सूर्यास्त शाम 6.03 बजे हुआ और इन नेताओं के जहाज ने शाम 6.17 बजे उड़ान भरी। आपातकालीन स्थिति में चालक दल को कई ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता था जिन पर विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है, जैसे कि पक्षियों का जहाज से टकराना। गोधूलि
के समय पक्षी काफी सक्रिय होते हैं और झारखंड को पक्षियों के मामले में काफी समृद्ध राज्य माना जाता है। जरूरत पड़ने पर जहाज का गंतव्य बदलने के लिए उस इलाके में कोई दूसरा हवाई अड्डा भी आस-पास उपलब्ध नहीं है। तिस पर, इस मामले में एक ऐसे राजनेता शामिल हैं जो नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा गठित समिति का हिस्सा हैं। लिहाजा, उनके द्वारा सुरक्षा की सीमाओं का उल्लंघन करना पूरी तरह अस्वीकार्य है। यह घटनाक्रम इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि खास तौर पर भारत के छोटे हवाई अड्डों पर हवाई यातायात नियंत्रक और अधिकारी किन दबावों का सामना करते हैं। अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन के सदस्य के रूप में उसके कड़े नियमों से बंधे होने के नाते भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नियमों का पूरी तरह पालन हो। साथ ही, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा दंड समेत मामले की पूरी और निष्पक्ष जांच हो। इस मसले पर राजनीति को किनारे रख देना चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.