भारत की शीर्ष दवा नियामक संस्था, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ), ने हरियाणा स्थित मेडेन फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड द्वारा औषधीय दवाओं का उत्पादन करने पर रोक लगा दी है। ऐसा इस कंपनी द्वारा बनाई गई और गाम्बिया को निर्यात की गई खांसी की सिरप को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वहां हुई 66 बच्चों की मौत के कारक के तौर पर चिन्हित किए जाने के बाद किया गया। यह मिश्रण जाहिर तौर पर डायथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी) और एथिलीन ग्लाइकोल से दूषित पाई गई, जोकि गुर्दे को गंभीर रूप से बेकार कर देने की वजह बन सकती है। भारत सरकार ने कहा है कि डब्ल्यूएचओ की ओर से एक स्पष्ट कारणात्मक संबंध स्थापित करने वाली विस्तृत रिपोर्ट का इंतजार है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस कंपनी के खिलाफ आगे की कार्रवाई के बारे में सरकार को सलाह देने के लिए एक तकनीकी समिति का गठन किया है। सैद्धांतिक रूप से, भारत के औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के प्रावधान मिलावटी दवाएं बनाने और दवा निर्माण की निर्धारित प्रक्रियाओं का घोर उल्लंघन करने वाले दवा निर्माताओं के खिलाफ काफी सख्त हैं। इन प्रावधानों के तहत ऐसे गुनहगार दवा निर्माता को 10 साल तक की कैद और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का दंड भुगतना पड़ता है। लेकिन भारत में डीईजी की विषाक्तता के कई उदाहरणों के बावजूद इन प्रावधानों को शायद ही कभी क्रियान्वित किया गया है। वर्ष 2020 में, हिमाचल प्रदेश स्थित डिजिटल विजन द्वारा निर्मित कफ सिरप ने जम्मू और हिमाचल प्रदेश में 13 बच्चों की जान ले ली थी। इस सिरप का परीक्षण किए जाने पर उसमें डीईजी की मौजूदगी साफ तौर पर देखी गई थी। नियामक निकायों द्वारा किए गए अन्य निरीक्षणों में डिजिटल विजन को दवा निर्माण की उन अनिवार्य प्रक्रियाओं के उल्लंघन का दोषी पाया गया था जिससे इन दवाओं का डीईजी से दूषित नहीं होना सुनिश्चित होता। इसके बावजूद, इस बारे में सफल तरीके से कोई मुकदमा नहीं चल सका है। क्योंकि मिलावट के बाकी मामलों की तरह ही अदालतों के समक्ष यह साबित करने के लिए बहुत ही कम प्रयास हुए हैं कि ये मिलावटी उत्पाद सीधे तौर पर मौतों के लिए जिम्मेदार थे।
डब्ल्यूएचओ द्वारा उजागर गाम्बिया की मौतों से भड़के अंतरराष्ट्रीय आक्रोश और दवाओं एवं टीकों के प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की प्रतिष्ठा के मद्देनजर इसके द्वारा उठाए गए कदमों पर बारीक नजर होने की पूरी गुंजाइश है। भारत के स्वास्थ्य प्रतिष्ठान की ओर से दी गई शुरुआती प्रतिक्रियाएं उत्साहजनक नहीं रही हैं। उनका आश्वासन है कि इन दवाओं को सिर्फ गाम्बिया को निर्यात करने के लिए मंजूरी दी गई थी, न कि भारत में बिक्री के लिए। किसी भी सूरत में यह शातिराना है क्योंकि मेडेन फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादों को पहले केरल में प्रतिबंधित किया गया था और फिर तमिलनाडु में घटिया गुणवत्ता के लिए चिन्हित किया गया था। इस कंपनी ने उसी फॉर्मूलेशन को अलग-अलग नामों से बेचा है और ऐसा मानने का कोई कारण नजर नहीं आता कि उसके घरेलू माल उत्पादन के उच्च स्तर के मानक से गुजरे होंगे। बहरहाल फार्मास्यूटिकल्स के वैश्विक बाजार में, कोविड महामारी ने पूरी दुनिया में दवा की समान रूप से उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिहाज से भारत के टीका निर्माताओं की साख को भरपूर चमकाया है। चाहे टीकों का मामला हो या फिर दवाओं का, मूल्य श्रृंखला को बेहतर बनाने के मद्देनजर भारत को एक निष्पक्ष और स्वतंत्र नियामक से लैस होने की अपनी छवि को बेदाग रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी ताकि उसपर अंतरराष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ घरेलू स्तर पर भी भरोसा किया जा सके।
This editorial has been translated from English, which can be read here.