एक तरफ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जैसी बेहद ताकतवर पार्टी के कमजोर पड़ने और दूसरी तरफ विभिन्न पार्टियों से ताबड़तोड़ दल-बदल के साथ, तेलंगाना इस आम चुनाव में दक्षिण भारत के सबसे तगड़े मुकाबले वाले राज्यों में से एक हो सकता है। हालांकि नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रभावशाली 39 फीसदी वोट हासिल किये, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बीआरएस, जो एक दशक तक सत्ता में रहने के बाद अब मुख्य विपक्षी पार्टी है, वोट शेयर के मामले में मात्र दो फीसदी से ही पीछे थी। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले कांग्रेस ने अपना वोट शेयर 14 फीसदी बढ़ाया, जबकि बीआरएस इतने ही अंतर से 47 फीसदी के जबरदस्त वोट शेयर से नीचे फिसल गयी। लेकिन जैसा कि तब ‘द हिंदू’ ने रिपोर्ट किया था, बीआरएस के खिलाफ हवा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दोनों के पक्ष में बही लगती है: आदिवासी बहुल इलाकों में भाजपा के पक्ष में और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस के पक्ष में।
इसके अलावा, कांग्रेसी मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के तकरीबन चार महीनों के शासन में, सरकार और शासन व्यवस्था के संबंध में जनता की धारणा में उल्लेखनीय बदलाव आया है। मसलन, दलित समुदाय से आने वाले उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क अब मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास में रहते हैं जिसे के. चंद्रशेखर राव ने 2016 में बनवाया था। सामाजिक बहिष्करण और पहुंच-से-बाहर होने की धारणा के प्रतिकार के लिए इस भवन का नाम बदलकर ज्योतिराव फुले प्रजा भवन कर दिया गया है। बेशक, केसीआर के प्रथम उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री टी. राजैया भी दलित थे, जिन्हें शपथ लेने के एक साल के भीतर हटा दिया गया था। लेकिन उनकी जगह लेने वाले और पूर्व शिक्षा मंत्री कड़ियम श्रीहरि भी दलित ही थे। हालांकि कांग्रेस द्वारा किये गये 200 यूनिट मुफ्त बिजली जैसे कल्याणकारी वादे आचार संहिता (सात चरणों वाले लोकसभा चुनाव के लिए) लागू होने के चलते अभी तक पूरी तरह जमीन पर नहीं उतर पाये हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि जनता अभी कांग्रेस को खारिज करने की जल्दी में नहीं है। और हाल में बीआरएस से कई बड़े नेताओं (जैसे कड़ियम श्रीहरि और, केसीआर के भरोसेमंद सिपहसालार माने जाने वाले राज्यसभा सदस्य के. केशव राव) के कांग्रेस में दल-बदल के साथ, इस बात की संभावना बहुत कम लगती है कि बीआरएस 2019 के आम चुनाव के उस प्रदर्शन की बराबरी कर पायेगी जिसमें उसने नौ सीटें और 42 फीसदी वोट हासिल किये थे। एक अन्य महत्वपूर्ण संकेतक जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए वह यह है कि भाजपा ने 2018 और 2023 के विधानसभा चुनावों के बीच अपना वोट शेयर 7 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी यानी दोगुना किया है। यह तेलंगाना में तीन-तरफा मुकाबले का संकेत देता है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन अब भी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, हालांकि उसका किसी के साथ औपचारिक गठबंधन नहीं है। यह देखा जाना बाकी है कि जिन सीटों पर वह नहीं लड़ रही है, उसके समर्थक वहां किस तरह मतदान करते हैं।
Published - April 12, 2024 10:13 am IST