धीमा और मजबूतः लुइज इनासियो डी सिल्वा लूला का फिर से ब्राजील का राष्ट्रपति बनना

राष्ट्रपति लूला को ब्राजील की रूढ़िवादी राजनीति से सावधानी से पार पाना चाहिए

Published - January 04, 2023 11:21 am IST

लुइज़ इनासियो लूला डी सिल्वा की सत्ता में वापसी से ब्राज़ील को मौका मिला है कि वह जायर बोल्सोनारो की बीते चार साल की गलतियों को ठीक कर सके और देश को वापस बराबरी-आधारित विकास की राह पर ला सके। लूला, वामपंथी वर्कर्स पार्टी के नेता के रूप में जाने जाते हैं जिनका बढ़िया प्रदर्शन का रिकॉर्ड रहा है और वे काफी लोकप्रिय भी हैं। सन् 2003 से 2011 तक उनकी अगुवाई वाली पिछली दो सरकारों ने मिश्रित आर्थिक नीतियों को अपनाया। ये नीतियां बाजार के अनुकूल थी, लेकिन इनमें उच्च सामाजिक खर्च को भी शामिल किया गया था। इससे ब्राजील की 2.5 करोड़ आबादी को गरीबी रेखा से बाहर निकलने में मदद मिली। साथ ही, उच्च आर्थिक विकास भी सुनिश्चित हुआ। लेकिन इसके बाद परेशानी भरा दौर भी आया। उनके चुने गए उत्तराधिकारी और पूर्व क्रांतिकारी डिल्मा रूसेफ पर शत्रुतापूर्ण तरीके से कांग्रेस ने महाभियोग लगाया। धुर दक्षिणपंथी एवं उग्र राष्ट्रवादी और ब्राजील की क्रूर सैन्य तानाशाही के समर्थक राष्ट्रपति श्री बोल्सोनारो के शासनकाल में विकास की कहानियों ने दम तोड़ दिया, भुखमरी बढ़ गई और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई। कोविड-19 में कम से कम 7,00,000 लाख लोग मारे गए क्योंकि राष्ट्रपति ने महामारी के खतरे को कम करके आंका और उनकी सरकार ने संकट के वक्त सही तरीके से कार्रवाई नहीं की। श्री बोल्सोनारो की नीतियों की वजह से अमेजन के वर्षा वनों में बेतरह जंगल की कटाई हुई।

बोल्सोनारो के शासनकाल में ब्राजील के उदारवादी, मजदूर वर्ग और प्रगतिशील तबकों ने श्री लूला का समर्थन किया, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरापों में दोषी ठहराया गया था। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें बरी किया। सन् 2011 में जब लूला ने पद छोड़ा था, तो उनकी स्वीकार्यता रेटिंग 83 फीसदी थी। बाद में उन्होंने विपक्ष को लामबंद किया और राष्ट्रपति चुनाव में आमने-सामने की कड़ी टक्कर में उन्हें मामूली अंतर से ही सही, लेकिन ठोस जीत हासिल हुई। रविवार को अपने पहले भाषण में लूला ने कहा कि उनका जोर एकता और पुनर्निमाण पर होगा। उनके पक्ष में एक और बात यह है कि समूचे दक्षिण अमेरिका में गुलाबी लहर फैल रही है। उन्हें अपने एजेंडे के लिए वेनेजुएला और चिली जैसे देशों के वामपंथी नेताओं से समर्थन मिलेगा। लूला ने पहले ही ब्राजील के खर्च की सीमा को हटाने के लिए एक संवैधानिक संशोधन पेश कर दिया है क्योंकि वह इस साल अतिरिक्त 28 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करने की योजना बना रहे हैं। फिर

भी राह आसान नहीं होगी। श्री बोल्सोनारो ने आधिकारिक रूप से चुनाव नतीजे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और लूला के पद संभालने से पहले ही ब्राजील छोड़ दिया। वहीं, उनके समर्थकों ने हिंसक प्रदर्शन किए और सेना से “सरकार गिराने” का आह्वान किया गया। अगर सामाजिक तनाव इसी तरह बना रहता है, तो आर्थिक चुनौतियां और भी तगड़ी होंगी। वर्ष 2000 के शुरुआती वर्षों में जिस वस्तु बाजार (कमोडिटी मार्केट) की तेजी ने लूला को सामाजिक कल्याण योजना पर खर्च करने में मदद की, आज वह नदारद है। उन्हें सरकार के प्रति जनता का विश्वास बहाल करना है, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का पुनर्निर्माण करना है और एक ध्रुवीकरण के दौर से गुजर रहे देश को एकजुट करना है। लूला को सावधानी के साथ आगे बढ़ना चाहिए, ब्राजील के अभिजात वर्ग के दबदबे वाली राजनीति के अलग-अलग तबकों से बाचतीत करनी चाहिए और देश की संपत्ति की संरचना में धीरे-धीरे लेकिन व्यापक बदलाव लाना चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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