लगभग आठ महीने के बाद पिछले शनिवार को हुई वास्तविक रूप से आमने-सामने की बैठक में जीएसटी परिषद के भीतर जुलाई 2017 में शुरू की गई इस कर व्यवस्था के तहत विवादों को हल करने के लिए जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना को लेकर एक व्यापक सहमति हुई। राज्यों के साथ विचार-विमर्श के दौरान कुछ बेहतर बदलावों के बाद, अगले महीने पारित होने वाले वित्त विधेयक में वित्त मंत्रालय द्वारा इन न्यायाधिकरणों के लिए विधायी समर्थन का समावेश किए जाने की उम्मीद है। इससे अदालतों का बोझ बढ़ाने वाले जीएसटी विवादों के तेजी से निपटारे की उम्मीद तो जगती है, लेकिन ‘वन नेशन, वन टैक्स‘ के वादे के इस महत्वपूर्ण प्राथमिकता में देरी की वजह की थाह पाना मुश्किल है। कुछ दरों में बदलाव और छोटे करदाताओं द्वारा देरी से कर दाखिल करने (फाइलिंग) पर अपेक्षाकृत कम दंडात्मक शुल्क को भी परिषद की मंजूरी मिल गई है। दरों में ये बदलाव कई अन्य चीजों के अलावा पेंसिल शार्पनर को थोड़ा सस्ता बना सकते हैं। गुटखा जैसे व्यापक कर-चोरी वाले क्षेत्रों के लिए एक नई प्रणाली जैसे कुछ अन्य कदमों के निहितार्थ उनकी अधिसूचनाओं की बारीकियों पर निर्भर करेंगे। ऑनलाइन गेमिंग और कैसिनो पर जीएसटी की बहुप्रतीक्षित समीक्षा अभी भी अटकी हुई है। इस बार इस मसले पर विचार नहीं करने की कथित वजह यह रही कि इस मुद्दे की समीक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले मंत्रिस्तरीय समूह के मुखिया के पास विधानसभा चुनाव का काम था। अब जबकि इस साल नौ विधानसभाओं के चुनाव के होने वाले हैं, यह शिथिलता इस साल जटिल मुद्दों का तेजी से हल निकालने की परिषद की क्षमता के लिहाज से शुभ संकेत नहीं है।
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि कई स्लैबों के साथ जीएसटी की जटिल दर संरचना को तर्कसंगत बनाने के काम को रोक दिया गया है और कई महत्वपूर्ण इनपुट छोड़ दिए गए हैं। मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) को 2021 के अंत में जीएसटी लेवी में उल्टे शुल्क (इनवर्टेड ड्यूटी) ढांचे जैसी विसंगतियों को दूर करने का उपाय सुझाने और अपेक्षाकृत कम स्लैब के साथ संशोधित दरों का प्रस्ताव करने का काम सौंपा गया था। परिषद को यह सूचित किया गया कि वर्ष 2017 से लेकर 2021 के बीच “जानबूझकर या अनजाने में” कुछ वस्तुओं पर दरों में की गई कटौती की वजह से मूल रूप से परिकल्पित 15.5 फीसदी राजस्व-तटस्थ दर के बजाय 12 फीसदी के करीब कुल कर दर के साथ जीएसटी अभी भी पर्याप्त राजस्व नहीं दे रहा है। जीओएम द्वारा कुछ चिन्हित की गई विसंगतियों को जहां पिछले जून में दूर कर लिया गया था, वहीं केंद्र ने यह संकेत दिया था कि मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होने से दरों में बदलाव को टाल दिया जाएगा क्योंकि किसी भी संशोधन का मतलब कुछ वस्तुओं पर अपेक्षाकृत ज्यादा कर ही होगा। दरों में सुधारों से संबंधित रिपोर्ट का अभी भी इंतजार होने, मुद्रास्फीति एक सिरदर्द बने रहने और अभी शुरू हुए चुनावी मौसम के 2024 में लोकसभा चुनाव के साथ समाप्त होने के मद्देनजर इस किस्म का दुविधापूर्ण रवैया सही जान पड़ता है। सख्त अनुपालन और ऊंची कीमतों ने भी औसत जीएसटी राजस्व को बढ़ाया है। शायद इसीलिए कर से जुड़े बोझिल उलझन को तत्काल दुरुस्त करने में शिथिलता आई है। लेकिन करदाताओं, जिन्हें किसी के सिर पर छत डालने या एक्सप्रेसवे के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सीमेंट जैसी आवश्यक वस्तु पर 28 फीसदी जीएसटी का भुगतान करना पड़ रहा है, को दरअसल एक अच्छी और सरल कर प्रणाली के लिए को अब कम से कम 2025 तक इंतजार करना होगा।
This editorial has been translated from English, which can be read here.