मर्ज को दूर करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम, इसकी मौजूदगी को पहचानना है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति से जुड़ी हालिया प्रकाशित रिपोर्ट में यही बात कही गई है। देर से ही सही, लेकिन अब यह रणनीति सार्वजनिक वृत्त में उपलब्ध है। इसमें देश में बड़ी तादाद में हो रही आत्महत्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। साथ ही, 2030 तक आत्महत्या से होने वाली मौत को 10 फीसदी कम करने की दिशा में कदम उठाने की बात की गई है। इसमें समयबद्ध कार्य योजना के साथ आगे की प्रगति को मापा गया है और भारत के अलग-अलग जमीनी हालात की गंभीर वास्तविकताओं को ध्यान में रखा गया है। समस्या वाकई विकराल है। लक्ष्य बनाकर हस्तक्षेप करने और इससे जुड़े कलंक को कम करने की रणनीतियों के बिना, विकट सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट आना तय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के मुताबिक, पूरी दुनिया में 15-29 आयुवर्ग के लोगों के बीच आत्महत्या, मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह है और 15-19 साल की लड़कियों के बीच भी यह मौत का दूसरा बड़ा कारण है। भारत में हर साल एक लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या करते हैं। बीते तीन साल में, प्रति एक लाख आबादी में आत्महत्या की दर 10.2 फीसदी से बढ़कर 11.3 फीसदी हो गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में आत्महत्या का प्रतिशत (2018-2020) सबसे ज्यादा है। इन राज्यों में यह दर 8 फीसदी से 11 फीसदी के बीच है। इसका सबसे बड़ा कारण पारिवारिक समस्या और बीमारियां हैं। अन्य कारणों में वैवाहिक कलह, प्रेम संबंध, दिवालियापन, माद्रक द्रवों का सेवन और उस पर निर्भरता शामिल हैं। लगभग 10 फीसदी मामलों में आत्महत्या के कारण का पता नहीं चलता। महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों की मान्यताओं के उलट इस दस्तावेज में यह बताया गया है कि ज्यादातर आत्महत्याओं को रोका जा सकता है।
रणनीति में साक्ष्य-आधारित तरीकों को अपनाने की बात कही गई है, ताकि आत्महत्याओं की तादाद को कम किया जा सके। यह डब्लूएचओ की दक्षिण-पूर्व एशियाई प्रांत से जुड़ी रणनीति से प्रेरित है। इसके अलावा, एक समावेशी रणनीति बनाने और आत्महत्याओं की संख्या में इच्छित कमी लाने के लिए कई सेक्टरों के साथ गठजोड़ बनाया गया है। अगले तीन साल के भीतर प्रभावी निगरानी तंत्र बनाने और पांच साल में सभी जिलों में मनोरोग आउट पेशेंट विभाग
स्थापित करने के अलावा, इस रणनीति में अगले आठ वर्षों के भीतर शैक्षिक संस्थानों के पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने की भी बात कही गई है। भारत के संदर्भ में जरूरी मुद्दों को संबोधित करते हुए लक्ष्य हासिल करने की राह पर चलने का खाका बुना गया है। मसलन, कीटनाशकों तक आसान पहुंच या फिर शराब का लती होना। हालांकि, अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि लक्ष्य हासिल होने तक वह इस पर टिकी रहे। निश्चित तौर पर, संघीय ढांचे वाले किसी देश में किसी भी कदम को तब तक कामयाबी नहीं मिलती जब तक कि राज्य सरकारें उस पहल में उतने ही उत्साह से शरीक न हो।
This editorial has been translated from English, which can be read here.