तीन साल पहले वे भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद थे। आज वे दक्षिण अमेरिका के सबसे बड़े देश के निर्वाचित राष्ट्रपति हैं। ब्राजील के दो बार राष्ट्रपति रह चुके और वामपंथी वर्कर्स पार्टी (पीटी) के नेता लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा की कहानी लैटिन अमेरिका की राजनीति की सबसे दिलचस्प वापसी की कहानियों में से एक है। कुल 99.5 फीसदी मतों की गिनती के बाद, लोकप्रिय तौर पर लूला के नाम से मशहूर दा सिल्वा को 50.9 फीसदी वोट मिले और उन्होंने निवर्तमान राष्ट्रपति जायर बोल्सेनारो को परास्त कर दिया, जिन्हें 49.1 फीसदी वोट मिले हैं। श्री बोल्सेनारो धुर-दक्षिणपंथी और लोकलुभावन नेता हैं जिन्होंने बीते पांच साल में ब्राजील को दक्षिण की तरफ मोड़ दिया। हालांकि चुनावी जानकारों ने जितना अनुमान जताया था, श्री बोल्सेनारो ने पहले दौर में उससे बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन, जब आमने-सामने की लड़ाई हुई, तो मतदाताओं के सामने दो विकल्प थे। एक, अति-राष्ट्रवाद, रूढ़िवाद और मुक्त बाजार की नीतियों के घोल का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता और दूसरा, सामाजिक उदारवाद में निहित समावेशी और सतत विकास का वादा करने वाला नेता। मतदाताओं ने दूसरे विकल्प पर मुहर लगाई। हार का जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि श्री बोल्सोनारो खुद हैं। ब्राजील की क्रूर सैन्य तानाशाही के प्रशंसक श्री बोल्सेनारो के दौर में मुल्क ने कोविड-19 के मामले में सबसे लद्धड़ सरकारी प्रतिक्रिया देखी। इस महामारी ने सात लाख लोगों की जान ली और आर्थिक अवसरों को बुरी तरह सिकोड़ दिया। श्री बोल्सोनारो जिस वामपंथ पर हमला करते हुए ब्राजील की सत्ता में आए थे, पांच साल बाद वहां की अवाम को पीटी का वही शासन बेहतर नजर आने लगा। ब्राजील के वामपंथियों को सिर्फ एक नेता की जरूरत थी और लूला के रूप में उन्हें वह भी मिल गया, जब श्री लूला पर चल रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।
वर्ष 2003 और 2010 के दौरान जब लूला सत्ता में थे, तब उनकी नीतियों की वजह से करीब 2.5 करोड़ ब्राजीलियन गरीबी रेखा से बाहर निकले। उन्होंने विकास और कल्याण पर जोर दिया और एक ऐसे सहकारी मॉडल को चुना जो संसाधनों के पुनर्वितरण को तेज करते हुए, देश के अभिजात वर्ग के साथ टकराव के बजाय सह-अस्तित्व का हिमायती था। पहले की ही तरह, लूला एक बार फिर उस वक्त सत्ता में आए हैं जब अमेरिका में वामपंथी सरकारों का दबदबा है। श्री लूला को बेहतर क्षेत्रीय माहौल मिलेगा, लेकिन उनकी सबसे बड़ी चुनौती ब्राजील की जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की होगी। आज उन्हें विरासत में एक अलग ब्राजील मिला है। पिछली बार उनके महत्वाकांक्षी कल्याणकारी योजना को जिस कमोडिटी बाजार से फंड मिला था, अब वह पस्त हाल में है। ब्राजील के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन में छाई मंदी ने वहां की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है और अगले साल इसके सिर्फ 0.6 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। इस आर्थिक हालात, श्री बोल्सोनारो के कुप्रबंधन और कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों ने मिलकर देश में गरीबी और भूख को तेजी से बढ़ाया है और इससे करीब 3.3 करोड़ लोग प्रभावित हैं। लूला को कांग्रेस से भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा, जहां रूढ़िवादी अभी भी मजबूत हैं। आगे की डगर मुश्किल है, लेकिन उनका रिकॉर्ड बताता है कि वे एक चतुर राजनेता और सक्षम प्रशासक हैं जो बेहतरी की दिशा में बदलाव लाने के लिए ब्राजील के यथास्थितिवादी अभिजात वर्ग को अपने अंदाज में साध सकते हैं।
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