हाल के समय में पाकिस्तान में आई सबसे खराब प्राकृतिक आपदाओं के ऊपर कई हफ्तों की चुप्पी के बाद सोमवार शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्वीट के जरिए पाकिस्तान में बाढ़ पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करना, एक स्वागत योग्य कदम है। इस बाढ़ में 1,100 से अधिक लोग मारे गए और 3.3 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। अधिकारियों के मुताबिक देश का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूबा हुआ है और घर, सड़क और बुनियादी ढांचे को लगभग 10 अरब डॉलर का अनुमानित नुकसान पहुंचा है। बाढ़ ने खेतों में खड़ी फसलों को भी चपेट में लिया है और जैसे-जैसे पानी उतरेगा, वैसे-वैसे बीमारी फैलने के साथ-साथ खाने की कमी की आशंका भी गहराती जाएगी। इसके अलावा, ऐसी चिंता जाहिर की जा रही है कि इस बाढ़ की वजह जलवायु परिवर्तन है। यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए चिंता का सबब है क्योंकि यह दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से एक है। मंगलवार को, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पाकिस्तान की मदद के लिए एक वैश्विक अपील जारी की, जिसमें उन्होंने कहा कि यह बाढ़ “उन्मत्त मानसून” की वजह से आई है। यह जलवायु के पैटर्न में आए बदलावों की तरफ एक संकेत था। ब्रिटेन, अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और तुर्की जैसे देश पाकिस्तान को सहायता भेज चुके हैं। कई और देशों ने भी मदद का वादा किया है। पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान से साथ जारी मौजूदा करार के तौर पर, आईएमएफ ने मंगलवार को 1.1 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की घोषणा की। संकट के और गहराने की आशंका को देखते हुए, पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल ने सोमवार को कहा कि वह 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन के बाद भारत पर लगाए गए व्यापारिक प्रतिबंध को हटाने का प्रस्ताव रख सकते हैं, ताकि भारत से सब्जियों और आवश्यक वस्तुओं का आयात किया जा सके। अब तक, इस्लामाबाद ने सिर्फ कोविड-19 के समय भारत से दवाओं के आयात और अफगानिस्तान में भारत की तरफ से भेजी गई मानवीय सहायता के मामले में इस प्रतिबंध से अपवाद के तौर पर छूट दी है।
भारत-पाकिस्तान के बीच खराब संबंधों के बावजूद, इस वक्त नई दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों को अपने-अपने आंतरिक गुणा-भाग से अलग हटकर, बाढ़ में फंसे लोगों की हर मुमकिन मदद करनी चाहिए। अगर भारत अपनी भू-सीमा से सटे पाकिस्तान की पीड़ा नहीं देख पाता है, तो वह नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान में हाथ बढ़ाने वाले “पहले देश” की भूमिका के माफिक पाकिस्तान के मामले में गर्व के साथ ऐसा दावा नहीं कर पाएगा। भारत के साथ व्यापार प्रतिबंध को हटाने के मौके को जाने देना, पाकिस्तान की अदूरदर्शिता होगी क्योंकि इससे खुद उसका ही हित प्रभावित हुआ है। इससे, इस आपदा के समय में किफायती आपूर्ति का अवसर भी छिटक जाएगा। यह दुखद और हास्यास्पद स्थिति होगी अगर दोनों देशों की दुश्मनी उन्हें ऐसे वक्त में भी साथ मिलकर काम करने से रोक दे, जबकि आर्थिक फायदों के लिए उनकी सरकारों ने दोनों मुल्कों के बीच क्रिकेट मैच खेलने को मंजूरी दे दी है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ सितंबर में एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए उज्बेकिस्तान जाने वाले हैं। भले ही आतंकवाद के मुद्दे पर लगभग एक दशक से दोनों देशों के बीच निलंबित पड़ी ‘स्थायी बातचीत’ के तत्काल शुरू होने की संभावना कम हो, लेकिन मौजूदा आपदा के असर को कम करने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए दोनों नेताओं को समय निकालना चाहिए।
This editorial has been translated from English which can be read here.