फसाने के तीन पक्ष: पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमानों के बेड़े को मजबूत करने का अमेरिका का फैसला

पाकिस्तान का पहलू भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठ सुरक्षा संबंधों के आड़े नहीं आना चाहिए

September 13, 2022 01:29 pm | Updated 01:29 pm IST

पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमानों के बेड़े को फिर मजबूत करने के अमेरिका के फैसले ने जाहिर तौर पर भारत को परेशान कर दिया है। लड़ाकू विमानों का यह बेड़ा 1980 के दशक की शुरुआत से पाकिस्तानी वायु सेना की रीढ़ रहा है। इस बेड़े को समय-समय पर उन्नत व विमानों से दोबारा लैस किया जाता रहा है। जैसे-जैसे समय के साथ इन दोनों देशों के बीच साझेदारी बढ़ी, खास तौर पर रक्षा के क्षेत्र में, भारत ने अमेरिकी वार्ताकारों के सामने इस मुद्दे पर अपनी चिंताओं को लगातार रखा। एक के बाद एक कमोवेश हर अमेरिकी प्रशासन की ओर से यह कहा जाता रहा है कि पाकिस्तान, जोकि एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी है, के साथ रक्षा साझेदारी आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के वैश्विक युद्ध का एक महत्वपूर्ण घटक है। भारत ने हमेशा इस नुक्ते पर जोरदार एतराज जताया है। वर्ष 2016 में, अमेरिकी कांग्रेस ने पाकिस्तान को और एफ-16 लड़ाकू विमान देने के ओबामा प्रशासन के प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी। भारतीय वायु सेना द्वारा बालाकोट हवाई हमले के एक दिन बाद फरवरी 2019 में नई दिल्ली की आशंकाएं सच साबित हुई थी, जब पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के निकट स्थित भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने के लिए अपने एफ-16 विमानों को मैदान में उतारा था। भारतीय सेना ने एफ-16 विमानों द्वारा दागी गई उन्नत किस्म की मध्यम दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का मलबा बरामद किया था। बीते 7 सितंबर को, अमेरिकी रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी ने पाकिस्तान के एफ-16 विमानों के लिए इंजन, इलेक्ट्रॉनिक आयुद्धों, अन्य हार्डवेयर व उन्नत सॉफ़्टवेयर और पुर्जों की 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर की संभावित विदेशी सैन्य बिक्री को अधिसूचित किया। हालांकि एजेंसी ने कहा है कि प्रस्तावित बिक्री में कोई नई क्षमताएं, हथियार या युद्ध सामग्री शामिल नहीं हैं, लेकिन यह कदम स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के प्रति नरमी का संकेत है।

विदेश मंत्रालय ने 2016 में अमेरिकी राजदूत को बुलाकर एतराज जाहिर करने की अपनी सार्वजनिक अभिव्यक्ति के उलट, इस बार इस मुद्दे पर चुप्पी साधने का विकल्प चुना है। अमेरिका का ताजा कदम भारत के साथ उसके रिश्तों को तनावपूर्ण बनाता है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों में काफी प्रगति होती रही है। हालांकि, इसमें कई बाधाएं भी आती रही हैं। नई दिल्ली और वाशिंगटन अफगानिस्तान तथा  यूक्रेन संकट के मसले पर अपने मतभेदों और अमेरिका के विरोधियों का मुकाबला प्रतिबंध अधिनियम के माध्यम से करने की नीति के तहत अमेरिकी प्रतिबंधों के संभावित खतरे को बखूबी संभाल रहे हैं। इस्लामाबाद के साथ वाशिंगटन के रिश्तों में नई गर्मजोशी भी भारत और अमेरिका के बीच राजनयिक व सैन्य जुड़ाव की तेज हलचलों के दरमियान ही आई है। भारत और अमेरिका आपसी रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को और अधिक गहरा बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ लगाव इस उत्साह में खलल पैदा करता है। ट्रम्प प्रशासन ने पाकिस्तान की धरती पर सक्रिय आतंकवादी समूहों के प्रति दोहरा रवैया रखने के लिए उसे जवाबदेह ठहराने की कोशिश की थी। पाकिस्तान का एक ही समय में सांप और नेवले से एक साथ दोस्ती निभाना ट्रम्प प्रशासन को नागवार था। पहले अफगानिस्तान में बने रहने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत थी और अब अफगानिस्तान से दूर रहने के लिए उसे पाकिस्तान की और भी ज्यादा जरूरत है। अमेरिका के पास भले ही पाकिस्तान को अपने पाले में रखने और उसे प्रोत्साहन देने की अपनी कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन  भारत की चिताएं सामयिक और वास्तविक हैं। भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देना दशकों से पाकिस्तान की राजकीय नीति रही है। लेकिन जवाब मांगना तो दूर,  अमेरिका पाकिस्तान को इनाम दे रहा है। शायद इसी तर्ज पर उसे आगे और भी बख्शीशें नवाजी जायें। भारत और अमेरिका को द्विपक्षीय संबंधों में हासिल हुए शानदार फायदों को संरक्षित करने और उन्हें आगे बढ़ाने की जरूरत है। 

This editorial has been translated from English which can be read here.

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