ऑनलाइन सामग्रियों को हटाने की शक्ति का इस्तेमाल संयम और जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए
यूट्यूब से 10 चैनलों के 45 वीडियो हटाने के सरकार के आदेश को वीडियो साझा करने वाली इस तरह की मुफ्त वेबसाइट पर नफरत और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील सामग्री के प्रचार पर बढ़ती चिंता के सही जवाब के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, इस शक्ति का बार - बार इस्तेमाल चिंता की बात है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने खुफिया इनपुट के आधार पर इन वीडियो सामग्रियों को हटाने के लिए कहा है और इसका प्रत्यक्ष कारण सिर्फ धार्मिक समुदायों के खिलाफ नफरत के प्रसार तक ही सीमित नहीं है। इनमें वे मुद्दे भी शामिल थे जिन्हें सरकार “संवेदनशील” मानती है: कश्मीर का संदर्भ, अग्निपथ योजना, धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार छीनने के झूठे दावे और गृहयुद्ध की संभावना जताते हुए उससे जुड़ी वीडियो सामग्रियों का प्रचार। अगर सरकार के दावे सही हैं और ये सामग्रियां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे का उल्लंघन करती हैं या सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा के लिए खतरा हैं, तो वीडियो हटाने के ऐसे आदेश को उचित ठहराया जा सकता है। लेकिन, इन आदेशों को पारित करने का तरीका स्पष्ट नहीं है। यह पता नहीं है कि ब्लॉक करने के आदेश जारी करने से पहले, वीडियो बनाने वालों को अपनी तरफ से स्पष्टीकरण देने का मौका दिया गया या नहीं। आईटी अधिनियम की जिस धारा 69ए के तहत सरकार को ऐसी सामग्री ब्लॉक करने का अधिकार मिला है, उसे सर्वोच्च न्यायालय ने तभी बरकरार रखा था जब उसने यह पाया कि इसको लागू करने की प्रक्रिया में पर्याप्त सुरक्षा के उपाय किए गए हैं। इन उपायों में ब्लॉक करने के आदेश जारी करने से पहले, वीडियो बनाने वालों को नोटिस जारी करना भी शामिल है।
ताजा आदेश में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 को लागू किया गया। इसमें यह प्रावधन है कि एक अंतर-विभागीय समिति सामग्री पर मिली शिकायतों पर विचार करेगी और अपनी सिफारिश देगी। फिर, सूचना प्रसारण मंत्रालय के सचिव से मंजूरी लेने के बाद अधिकृत अधिकारी, पब्लिशर या उसकी तरफ सेवा देने वालों को संबंधित सामग्री ब्लॉक करने का आदेश देगा। एक और आपातकालीन प्रावधान है। इसके तहत सचिव अंतरिम रूप से वीडियो ब्लॉक करने का आदेश जारी कर सकता है और समिति की राय जानने के बाद उस आदेश को लागू कर सकता है। ब्लॉक करने से जुड़े ऐसे सभी आदेशों की
जांच, समीक्षा समिति करेगी। इस समिति को हर दो महीने में एक बार बैठक करनी होती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह समिति नियमित रूप से बैठक करती है या नहीं। अगर कोई बैठक हुई हो, तो सरकार ने जिस तरह यह बताया कि उसने कितने वीडियो हटवाए हैं, उसी तरह इन समीक्षा बैठकों के नतीजों के बारे में भी उसे जानकारी देनी चाहिए। नियमित रूप से ऑनलाइन सामग्री हटाने के अनुरोध करने वाले देशों की सूची में भारत काफी आगे है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हेट स्पीच, हिंसा को उकसाने वाली और बाल पोर्नोग्राफी से जुड़ी आपत्तिजनक सामग्रियों ने ऑनलाइन मंच के शालीन इस्तेमाल को चुनौती पेश की। इन सामग्रियों को निश्चित तौर पर हटा दिया जाना चाहिए। हालांकि, ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने की शक्ति का उपयोग संयम के साथ और स्वतंत्रता एवं उचित प्रक्रिया अपनाने के प्रति संवेदनशीलता बरतते हुए किया जाना चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.