वजूद बचाने की जद्दोजहद: आतंकवाद के खिलाफ सोमालिया की लड़ाई

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सोमालिया का समर्थन करना चाहिए

August 22, 2022 12:00 pm | Updated 12:00 pm IST

सोमालिया में इस साल की शुरुआत में विधायी और राष्ट्रपति चुनावों के देर ही सही लेकिन सफलतापूर्वक संपन्न हो जाने के बाद सत्ता के नाजुक लेकिन शांतिपूर्ण बदलाव ने ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ नाम से मशहूर इस संकटग्रस्त देश में अंततः थोड़ी राजनीतिक स्थिरता आने की उम्मीद जगाई थी। लेकिन राजधानी मोगादिशू के एक बड़े होटल पर शुक्रवार को हुए हमले, जिसमें कम से कम 20 लोग मारे गए, ने राष्ट्रपति हसन शेख मोहम्मद की नई सरकार द्वारा हिंसक चरमपंथियों को वैचारिक, आर्थिक और सैन्य रूप से परास्त करने के वादों के बावजूद इस देश की सुरक्षा संबंधी चुनौतियों की एक फिर से याद दिलायी है। अल-शबाब के दावों के मुताबिक, हथियारबंद आतंकवादियों ने उक्त होटल पर धावा बोलकर कई नागरिकों को बंधक बना लिया और लगभग 30 घंटे की लंबी जद्दोजहद के बाद सुरक्षा बलों के जवान आतंकवादियों की इस घेराबंदी को तोड़ने में कामयाब हो पाए। सोमालिया के दक्षिणी एवं मध्य भागों में दबदबा रखने वाले अल-कायदा से जुड़े इस आतंकी संगठन ने सरकार के नियंत्रण वाले इलाकों में नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों को बार-बार निशाना बनाया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद विरोधी विभिन्न उपायों के बावजूद, हाल के वर्षों में अल-शबाब ने सोमालिया में उपजे मानवीय संकट और पड़ोसी देशों में चल रहे सुरक्षा संबंधी संकटों को भुनाते हुए अपनी ताकत में जबरदस्त इजाफा किया है। वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के मुकाबले कहीं ज्यादा राजस्व इकठ्ठा करने वाले इस हथियारबंद गिरोह ने अफ्रीका महाद्वीप में एक बेहद मजबूत आतंकवादी मशीनरी कायम कर ली है और अब यह ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ नाम से मशहूर पूर्वी अफ्रीका के प्रायद्वीपीय इलाकों में अपना दबदबा बढ़ाने करने की कोशिश कर रहा है।

सोमालिया लंबे समय से एक विफल या नाजुक देश माना जाता रहा है। यह आतंकवाद विरोधी अंतरराष्ट्रीय अभियानों की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक का गवाह भी रहा है। सोमालिया में नागरिक संघर्षों का सिलसिला जनरल सियाद बर्रे की तानाशाही वाले दौर से शुरू हुआ। 1991 में बर्रे के निजाम के ढहने के साथ ही यह देश अराजकता और गृहयुद्ध की गिरफ्त में चला गया, जिसमें विभिन्न कबीले-आधारित हथियारबंद समूह एक-दूसरे से जूझने लगे। तब से, सोमालिया को एक स्थिर देश बनाने और वहां सुरक्षा स्थापित करने हेतु क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कवायदें हुईं, लेकिन उनमें से कोई भी सफल साबित नहीं हुआ। इसी अराजकता के दरमियान अल-शबाब उभरा और आज वह एक ताकतवर स्थिति में पहुंच गया है। समस्या का एक पहलू यह है कि सरकार का इकबाल राजधानी से बाहर के इलाकों में नहीं चलता है। भीषण सूखे के बीच यह देश बड़े पैमाने पर मानवीय संकट का भी सामना कर रहा है। चूंकि यहां की राजकीय संस्थाएं नाजुक बनी हुई हैं और अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं की दया पर निर्भर हैं, इसलिए आतंकवादियों के लिए अपनी क्षेत्रीय जागीर बनाए रखना आसान है। सोमालिया के संकटों का कोई जादुई हल नहीं है। लेकिन सबसे पहले, मोगादिशू में संघीय सरकार और उसके क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समर्थकों के पास सुरक्षा तथा अन्य अहम संकटों से निपटने का एक व्यापक दृष्टिकोण होना चाहिए। सरकार का ध्यान लोगों को आवश्यक सेवाएं, सामान और राहत मुहैया कराने पर होना चाहिए। साथ ही साथ, एक व्यापक राजनीतिक सहमति के जरिए एक कारगर एवं किफायती सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम भी करना चाहिए। देश-निर्माण की प्रक्रिया तथा आतंकवाद-रोधी अभियानों को साथ-साथ चलाया जाना चाहिए और वजूद बचाने की लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सोमालिया का उदारतापूर्वक समर्थन करना चाहिए।

This editorial has been translated from English which can be read here.

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