मंगलवार को चेन्नई के नजदीकी ऐतिहासिक शहर मामलापुरम में संपन्न हुए शतरंज ओलंपियाड के 44वें संस्करण की, लंबे समय तक सही वजहों से चर्चा की जाएगी। यह मूल रूप से 2020 में रूस में आयोजित होने वाला था, लेकिन कोरोनावायरस महामारी की वजह से इसे स्थगित होने पर मजबूर होना पड़ा। इसके बाद, यूक्रेन पर रूस के हमले ने शतरंज के वैश्विक निकाय फिडे (FIDE) को इस खेल के सबसे प्रतिष्ठित और सबसे बड़े टीम आयोजन के लिए नई जगह की तलाश के लिए प्रेरित किया। चेन्नई को मार्च महीने में मेजबान के रूप में चुना गया, लेकिन रोजाना हजारों की तादाद में ओलंपियाड देखने आने वाले लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि जिस प्रतियोगिता में 186 देशों के 1,700 से ज्यादा खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया, उसका आयोजन इतने कम समय में किया गया। एक चैंपियन शतरंज खिलाड़ी होने के अलावा, लातविया सरकार की पूर्व वित्त मंत्री व अर्थशास्त्री फिडे की प्रबंध निदेशक डाना रेज़नीस-ओज़ोला ने जिस आयोजन को ‘मिशन इंपॉसिबल’ कहा था उसे अंजाम देने के लिए भारत की तारीफ की। जब अखिल भारतीय शतरंज महासंघ के प्रस्ताव को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने स्वीकार किया, तभी से इस पर तेजी से काम शुरू हो गया था। तारीफ इस बात की भी की जानी चाहिए कि तमिलनाडु सरकार एक ऐसे खेल पर 100 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने को तैयार थी जो ग्लैमर में क्रिकेट या फुटबॉल के आस-पास भी नहीं है। 2013 में, तमिलनाडु सरकार ने चेन्नई में स्थानीय खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद और मैग्नस कार्लसन के बीच विश्व शतरंज चैंपियनशिप मैच का आयोजन किया था, लेकिन उस आयोजन की तुलना आकार और साजो-सामान के मामले में ओलंपियाड के साथ नहीं की जा सकती।
नौ साल बाद, शतरंज का ऐतिहासिक और भव्य आयोजन जब उनके गृह प्रदेश में लौटा, तो आनंद बतौर खिलाड़ी कम और बतौर मार्गदर्शक और स्तंभकार ज्यादा व्यस्त थे। साथ ही, ओलंपियाड खत्म होने से पहले ही उन्हें फिडे के नए उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिल गई। लेकिन, पांच बार के इस विश्व चैंपियन ने अकेले ही भारतीय शतरंज को इतना उर्वर बना दिया कि भारत की तरफ से तीन टीम इस ओलंपियाड में उतर सकीं। इन तीन में से दो- ओपन सेक्शन में भारत 2 और महिलाओं में भारत 1- ने कांस्य पदक पर कब्जा करके, विश्व शतरंज में भारत की छवि एक पावरहाउस के रूप में स्थापित की है। भारत ने सात और व्यक्तिगत पदक जीतकर अब तक के इतिहास में अपने लिए इसे सबसे सफल ओलंपियाड साबित किया। इनमें से कई पदक किशोर उम्र के खिलाड़ियों ने जीते। डी. गुकेश, निहाल सरीन, आर. प्रज्ञानानंद, अर्जुन एरिगैसी और रौनक साधवानी जैसे युवाओं ने भारतीय शतरंज के रोशन भविष्य की इबारत लिखी। शतरंज में आम लोगों और मीडिया ने भी अभूतपूर्व रुचि दिखाई जो खेल को और बेहतर बनाने में मदद करेगी। उज्बेकिस्तान ने पुरुष वर्ग की टीम स्पर्धा जीती, लेकिन शतरंज ओलंपियाड की सबसे बड़ी कहानी उज्बेकिस्तान या भारत ने नहीं, बल्कि युद्धग्रस्त यूक्रेन की पांच महिलाओं के समूह ने लिखी। उन्होंने जो सोना जीता, उससे यूक्रेन का स्याह माहौल उज्जवल होना चाहिए। यह खेल की अदम्य भावना को भी दर्शाता है।
This editorial in Hindi has been translated from English which can be read here.