देस और परदेस: तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों पर हमले की अफवाहें और फर्जी खबरें

प्रवासी मजदूरों को महफूज और समुदाय का अभिन्न हिस्सा होने का भरोसा दिलाया जाना चाहिए

Published - March 08, 2023 11:14 am IST

तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों पर हमले की अफवाहों और फर्जी खबरों के बाद तमाम अधिकारी तत्परता से हस्तक्षेप करते हुए मजदूरों को उनकी पूरी सुरक्षा का आश्वासन देते दिखे। प्रवासी मजदूरों के दो गुटों के बीच की हिंसा की एक वीडियो क्लिप को स्थानीय लोगों द्वारा प्रवासी मजदूरों पर हमले के रूप में व्याख्या किए जाने के बाद कई मजदूरों, जिनमें अधिकांश बिहार के हैं, को अपने गृह राज्य लौटने के लिए रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों का इंतजार करते हुए देखा गया। बहरहाल, कुछ मजदूर होली के त्योहार के लिए अपने घर जाने की योजना बना रहे थे। इससे पहले कि यह समस्या गंभीर रूप लेती, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से संपर्क करके एक अच्छा काम किया। कई अन्य मोर्चों पर भी फौरी तौर पर आगे की कार्रवाई की गई है। तमिलनाडु पुलिस ने अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ, जिसमें दैनिक भास्कर के संपादक भी शामिल हैं, भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। भ्रामक वीडियो क्लिप शेयर करने के आरोप में बिहार के जमुई जिले से एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। बिहार पुलिस ने कुछ वीडियो और खबरों को भी भ्रामक एवं फर्जी पाया है। बिहार और झारखंड के अधिकारियों ने प्रवासी मजदूरों का केन्द्र माने जाने वाले कोयम्बटूर तथा तिरुपुर का दौरा किया है और उद्योग जगत के प्रतिनिधि अपनी ओर से मजदूरों को आश्वस्त करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

बदकिस्मती से, इस मसले ने तमिलनाडु और बिहार में कौमपरस्त राजनीति का मार्ग प्रशस्त किया है। तमिलनाडु की आर्थिक गतिविधियों के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से रियल एस्टेट में प्रवासी मजदूरों की भूमिका जगजाहिर है। सीआरईडीएआई तमिलनाडु के अनुसार, प्रवासी समुदाय बड़ी परियोजनाओं में 85 फीसदी और मध्यम स्तर की परियोजनाओं में 70 फीसदी काम की देखरेख करता है। मैन्यूफैक्चरिंग, कपड़ा, निर्माण और आतिथ्य के क्षेत्र में भी इस समुदाय की खासी उपस्थिति है। वर्ष 2015 में तमिलनाडु श्रम विभाग के एक सर्वेक्षण में लगाए गए अनुमान के मुताबिक राज्य में लगभग 11.5 लाख प्रवासी मजदूर थे। इस प्रकरण ने राजनेताओं द्वारा प्रवासी मजदूरों से जुड़े मुद्दों पर टिप्पणी करते वक्त सावधानी और संयम बरतने की

जरूरत को ही रेखांकित किया है। स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा की आड़ में, कई नेताओं ने अक्सर प्रवासी मजदूरों को बदनाम किया है या स्थानीय लोगों की बेरोजगारी जैसी समस्याओं के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया है। तमाम विचारधाराओं वाले राजनीतिक दलों को जहां यह संदेश, जैसाकि श्री स्टालिन ने श्री नीतीश कुमार के साथ अपनी बातचीत में रेखांकित किया है, कि वे सभी कामगार “जो राज्य के विकास में मदद करते हैं, वे हमारे कामगार हैं” अपनाया जाना चाहिए। वहीं सरकार, जो प्रवासी कामगार समुदाय के लिए कल्याणकारी उपायों को लागू कर रही है, को ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ योजना के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए दिए जा रहे अनाजों के साथ रियायती दरों पर दालों एवं खाद्य तेल की आपूर्ति को भी शामिल करना चाहिए। प्रवासी मजदूरों के सामने आने वाले मुद्दों और समस्याओं के समाधान के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ का गठन किया जा सकता है। सरकार प्रवासी मजदूरों के बारे में एक नया और व्यापक अध्ययन भी करा सकती है और उन्हें घर जैसा महसूस कराने के लिए स्थानीय समुदाय के साथ उनके एकीकरण में मदद कर सकती है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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