भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भरपूर मानसून की भविष्यवाणी की है। जून-सितंबर तक वर्षा 87 सेंटीमीटर, जो इन महीनों के दौरान देश में होने वाली औसत वर्षा मानी जाती है, से छह फीसदी ज्यादा होने की उम्मीद है। यह एजेंसी का काफी साहसिक पूर्वानुमान है, जो आम तौर पर अपने अप्रैल के पूर्वानुमान में, अधिशेष या कम बारिश के बारे में कुछ कहने से बचती है। कई दक्षिणी राज्यों में बढ़ते तापमान और लू चलने के मद्देनजर, भरपूर बारिश का पूर्वानुमान एक स्वागतयोग्य खबर लग सकती है। हालांकि उम्मीद की इस किरण पर काले बादल छाए हुए हैं। आईएमडी के जलवायु मॉडल “अत्यधिक” बारिश की 30 फीसदी संभावना का सुझाव देते हैं - जिसे सामान्य से 10 फीसदी से ज्यादा के रूप में परिभाषित किया गया है। तुलनात्मक रूप से, “सामान्य से अधिक” बारिश की उम्मीद 31 फीसदी है, जिसे सामान्य के 5 फीसदी -10 फीसदी के बीच परिभाषित किया गया है। इस मामूली अंतर से पता चलता है कि अत्यधिक बारिश की संभावना सिर्फ ‘सामान्य से अधिक’ बारिश के बराबर है। इनमें से अधिकांश बारिश मानसून के दूसरे भाग यानी अगस्त और सितंबर में होने की उम्मीद है। इस बाबत आईएमडी के पूर्वानुमान के मॉडल ‘ला नीना’ के विकास या ‘एल नीनो’ की उलट प्रक्रिया (जिसके चलते अक्सर मानसून की वर्षा में कमी होती है) पर आधारित हैं। ‘ला नीना’ को हिंद महासागर में एक सकारात्मक द्विध्रुव (डाइपोल) की स्थिति से भी मदद मिलने की उम्मीद है, जिसकी खासियत हिंद महासागर का पश्चिम के बनिस्बत पूर्व में ठंडा होना है, जो दक्षिणी भारत के कई राज्यों में बारिश लाने में मदद करती है। आईएमडी जून और जुलाई में बारिश की मात्रा को लेकर मौन है, लेकिन उम्मीद है कि उस समय “तटस्थ स्थिति” (न तो अल नीनो, न ही ला नीना) व्याप्त होगी। दो शुष्क मानसून महीने और आखिरी दो महीनों में मूसलाधार बारिश कृषि के लिए मुफीद हो सकती है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप अत्यधिक बाढ़ आने और - जैसा कि अतीत में देखा गया है - जिंदगी, आजीविका और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचने की संभावना है।
केरल में 2018 में आई बाढ़ इस बात की याद दिलाती है कि भारत प्राकृतिक आपदाओं के मामले में किस कदर असुरक्षित है। अब जबकि इन पूर्वानुमानों की अद्यतन स्थिति के मई के अंत के आसपास आने की उम्मीद है, आईएमडी के वर्तमान संकेत पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए। राज्यों को जल्द से जल्द अपने आपदा-प्रबंधन मॉड्यूल से यह सुनिश्चित करने के लिए आपातकालीन योजनाएं बनानी चाहिए कि बुनियादी ढांचे मजबूत हों, लोगों की निकासी की योजनाएं तैयार रहें, बांधों की संरचनात्मक स्थिरता एवं उनके संकट-संकेतन नेटवर्क की पर्याप्त जांच-परख हो और व्यापक पूर्व-चेतावनी नेटवर्क मौजूद रहे। साथ ही भारत के किसानों, जिनमें से अधिकांश अभी भी वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं, को भी मानसून की दूसरी छमाही के मजबूत होने की संभावना के बारे में सूचित किया जाना चाहिए और उन्हें अपने बुवाई कार्यों के दौरान इन सूचनाओं को ध्यान में रखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।