कर्नाटक विधानमंडल की 224 में से 136 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ राज्य में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस के सत्ता में आने के लगभग एक साल बाद, पार्टी आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-जनता दल (सेक्युलर) (जेडीएस) गठबंधन से मुकाबला करने के वास्ते अपनी उन ‘पांच गारंटियों’ को लागू करने के लिए मिली व्यापक सराहना पर भरोसा कर रही है, जिसका उसने वादा किया था। जहां राज्य में लोकसभा चुनाव 1 मार्च को बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे विस्फोट, जिसमें नौ लोग घायल हो गए थे, की पृष्ठभूमि में हो रहे हैं, वहीं इस घटना का जमीनी स्तर पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है। यहां तक कि भाजपा ने भी इसे सांप्रदायिक रंग देने से बचने के लिए एहतियात बरतते हुए इसे एक ‘कानून एवं व्यवस्था’ की विफलता का मामला होने का आरोप लगाया है। यह एक मुश्किल सबक है जिसे भाजपा ने 10 मई, 2023 को हुए विधानसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन से सीखा होगा। राज्य में उसका शासन महीनों तक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने वाले उन सरकारी आदेशों और मुद्दों से सराबोर रहा था, जिसकी शुरुआत बसवराज बोम्मई के पार्टी के बेहद लोकप्रिय दिग्गज नेता बी.एस. येदियुरप्पा की जगह पर मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद फरवरी 2022 में हिजाब प्रतिबंध से हुई थी। इसके बाद राज्य सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण को रद्द कर दिया गया था और इस कोटे को वोक्कालिगा एवं वीरशैव-लिंगायत समुदायों के बीच समान रूप से वितरित किया गया था। निरस्ती की यह कवायद, 27 मार्च को एक सरकारी आदेश के रूप में, मई में होने वाले विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले की गई थी। फिर भी, कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन को चार फीसदी अंक से बेहतर किया और प्रभावशाली 43 फीसदी मत हासिल किया, जबकि भाजपा के 36 फीसदी मत में कोई बदलाव नहीं आया।
सरकारी दावों के मुताबिक, कांग्रेस की ‘पांच गारंटियों’ के चलते राज्य की दो-तिहाई से अधिक आबादी को ठोस लाभ हुआ है। लेकिन ‘कर्नाटक के केंद्रीय फंड पूल को हस्तांतरित करने से इनकार’ को चुनावी मुद्दा बनाने की पार्टी की कोशिश को लोगों की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली है। भाजपा को कर्नाटक में लोकसभा चुनावों में लगातार सफलता मिली है। वर्ष 2019 के आम चुनाव में अपने 43 फीसदी मतों के 2014 के रिकॉर्ड को 8.4 फीसदी अंक से बेहतर करते हुए, उसने कुल डाले गए मतों के आधे के निशान को पार करके 51.4 फीसदी मत हासिल किए थे और कुल 28 में से 25 सीटें जीती थीं। जद (एस) के लगातार घटते जनाधार व मत प्रतिशत और सिर्फ एक समुदाय, वोक्कालिगा का प्रतिनिधि करने वाली पार्टी के रूप में देखे जाने के मद्देनजर, उसे भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन में सिर्फ तीन सीटें ही आवंटित की गई हैं। इस लिहाज से आम चुनाव में वहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा। लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि भाजपा, जो अब राज्य में मुख्य विपक्ष है, 2019 के अपने प्रदर्शन को दोहरा पाएगी।
Published - April 16, 2024 09:52 am IST