भारत का माल निर्यात पिछले महीने 41.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के 12 महीने के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया, जोकि मार्च 2023 के आंकड़ों से थोड़ा कम और फरवरी माह के 41.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े से थोड़ा ज्यादा है। आयात छह फीसदी गिरकर 57.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया, जिससे व्यापार घाटा 11 महीने के निचले स्तर पर आ गया। पिछले दो महीनों के मजबूत निर्यात के आंकड़ों ने बाहर भेजे जाने वाले लदान (आउटबाउंड शिपमेंट) की आंकड़े को जनवरी के अंत में 354 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर पूरे साल के लिए 437.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर दिया है, जोकि 2022-23 के रिकॉर्ड 451 बिलियन अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन से मात्र तीन फीसदी ही कम है। जिन्सों (कमोडिटी) की कीमतों, जोकि पिछले साल औसतन लगभग 14 फीसदी कम थी, में गिरावट के बीच यह एक सराहनीय नतीजा है, जिसे प्रमुख बाजारों में पहले के मुकाबले ज्यादा सुदृढ़ साबित होने वाली मांग से मदद मिली। आयात में 4.8 फीसदी की तेज गति से आई गिरावट ने व्यापार घाटे को भी कम कर दिया है और अब अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि जनवरी-मार्च वाली तिमाही एक छोटे लेकिन दुर्लभ चालू खाता अधिशेष (कर्रेंट अकाउंट सरप्लस) के साथ समाप्त होगी। पूरे साल के दौरान हुए सेवाओं के व्यापार का आंकड़ा बाद में उपलब्ध होगा, लेकिन वाणिज्य मंत्रालय का अनुमान है कि 2023-24 के दौरान कुल निर्यात पिछले साल के मुकाबले आंशिक रूप से ज्यादा होकर 776.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा।
व्यापार जगत के दिग्गजों का मानना है कि यूक्रेन से लेकर फिलिस्तीन एवं लाल सागर तक लगातार संघर्ष का सामना करने के बावजूद माल निर्यात सकारात्मक वृद्धि के चक्र में प्रवेश कर गया है। पिछले सप्ताह, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने जोखिमों के नीचे की ओर झुके होने के साथ वैश्विक व्यापार की मात्रा में होने वाली वृद्धि के अपने अनुमान को पहले के 3.3 फीसदी से घटाकर 2.6 फीसदी कर दिया। ऐसा 2023 की व्यापार की मात्रा के लिए डब्ल्यूटीओ के संशोधन से होने वाले अनुकूल आधार प्रभावों के बावजूद है, जिसके बारे में उसका कहना है कि व्यापार की मात्रा में पहले की 0.8 फीसदी की गिरावट की उम्मीद के बनिस्बत 1.2 फीसदी की गिरावट आई है। वर्ष 2024 में एशिया से होने वाले निर्यात की मात्रा में जहां 3.4 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है, वहीं आयात के भी 5.6 फीसदी ऊपर चढ़ने की उम्मीद है। भारत मे स्वस्थ मानसून के चलते विवेकाधीन आयात सहित घरेलू मांग में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। लेकिन दुनिया के दो प्रमुख नौवहन (शिपिंग) मार्गों - स्वेज और पनामा नहरों - पर निरंतर व्यवधानों के साथ-साथ भू-राजनैतिक संकटों और कई देशों में वैश्विक व्यापार के फायदों को लेकर बढ़ते संदेह ने वैसे जोखिम पैदा कर दिए हैं जो अभी तक पूरी तरह से सामने नहीं आए हैं। निर्यातक उत्साह से लबरेज आधिकारिक दृष्टिकोण को लेकर उतने आश्वस्त नहीं नजर आते - उन्हें माल भेजने (शिपिंग) की लागत में होने वाली बढ़ोतरी के अनुरूप जल्द ही कीमतें बढ़ाना शुरू करना होगा, जिससे उन्हें प्रतिस्पर्धी दबाव का सामना करना पड़ेगा। एशिया और भारत के लिए, होर्मुज जलडमरूमध्य में लंबे समय तक चलने वाला कोई भी टकराव व्यापार और व्यापक आर्थिक संतुलन के लिहाज से सबसे बड़ा खतरा साबित होगा। होर्मुज जलडमरूमध्य इस इलाके के तेल और गैस आयात का एक प्रमुख आपूर्ति मार्ग है। मार्च महीने में कच्चे तेल की कीमतों में पहले से ही बढ़ोतरी होती दिखाई दे रही है क्योंकि पेट्रोलियम व्यापार घाटा 11.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड मासिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है, जबकि तेल निर्यात आठ महीने के निचले स्तर पर आ गया है। ऊर्जा आयात पर भारत की अत्यधिक निर्भरता के बारे में हमें पता है और वैश्विक स्तर पर ऊर्जा एवं खाद्य पदार्थों की कीमतों में कोई भी उछाल वैश्विक स्तर पर ब्याज दर में कटौती एवं बेहतर मांग की उम्मीदों को भी पटरी से उतार देगा।