बहुलता के वास्ते: सीएसडीएस-लोकनीति का चुनाव बाद सर्वेक्षण

लोकनीति के चुनाव बाद सर्वेक्षण ने हिंदुत्व की राजनीति से उकताहट का संकेत दिया

Published - June 11, 2024 09:51 am IST

शासन प्रणाली से संतुष्टि के स्तर में गिरावट, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में ठहराव, क्षेत्रीय दलों की सुदृढ़ता एवं कांग्रेस पार्टी का कायाकल्प और हिंदी पट्टी में हाशिए पर रहने वाले वर्गों के बीच हिंदुत्व के असर का लुप्त होना। सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव बाद सर्वेक्षण के मुताबिक, इन सभी कारकों ने 2024 के आम चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के कम बहुमत में योगदान दिया। अपने चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण में, इस एजेंसी ने संकेत दिया था कि “बेरोजगारी” और “महंगाई” अधिकांश मतदाताओं के लिए प्रमुख मुद्दे थे और एनडीए के पक्ष में 46 फीसदी के मजबूत समर्थन के बावजूद, सत्ताधारियों का समर्थन करने वालों का एक हिस्सा चुनाव के दौरान विपक्ष का समर्थन करने के लिए राजी था। एनडीए का 43.6 फीसदी का अंतिम मत प्रतिशत, इस साल के गठबंधन के घटकों को 2019 में मिले मत से 1.4 अंक कम था। जबकि इंडिया ब्लॉक ने महत्वपूर्ण रूप से 41.4 फीसदी लोगों (अगर तृणमूल कांग्रेस के मत प्रतिशत को जोड़ लिया जाए) का समर्थन हासिल किया, जोकि 2019 में उसे हासिल हुए मत से एक बड़ी छलांग है। लोकनीति के मुताबिक, पिछले लोकसभा चुनाव में बालाकोट कार्रवाई, पीएम-किसान योजना और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण ने भारतीय जनता पार्टी को 303 सीटों के साथ जीत हासिल करने में मदद की थी। लेकिन इस बार, कई धारणाओं और राजनीतिक मुद्दों ने इस पार्टी को उसके गढ़ों में ही बांध दिया। यहां तक कि ओडिशा और तेलंगाना में मिली बढ़त भी हिंदी पट्टी में इसके नुकसान की भरपाई करने के लिए नाकाफी साबित हुई।

उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दलितों, अन्य पिछड़े वर्गों एवं अल्पसंख्यकों द्वारा कांग्रेस को मजबूत समर्थन दिए जाने और समाजवादी पार्टी द्वारा भाजपा के एजेंडे को संविधान के लिए खतरा बताने की रणनीति ने विपक्ष के अभियान को गति दी। जब उत्तर प्रदेश में लोगों से प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी प्राथमिकता के बारे में पूछा गया, तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मोदी के मुकाबले चार अंकों की बढ़त (36 फीसदी बनाम 32 फीसदी) मिली, जिससे भाजपा को चिंतित होना चाहिए। साफ है कि पार्टी अब उत्तराखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों, जहां एक मेहनती विपक्ष की कमी है, को छोड़कर हिंदुत्व पर एक मजबूत कारक के रूप में भरोसा करने की उम्मीद नहीं कर सकती है। इंडिया ब्लॉक के लिए, और खासतौर पर कांग्रेस के लिए, उसके विश्वसनीय प्रदर्शन के बावजूद, इन राज्यों में काम निर्धारित है। कांग्रेस ने कर्नाटक में 2023 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले अपना मत प्रतिशत भी बढ़ाया, लेकिन एनडीए का मजबूत सामाजिक गठबंधन उन बढ़े हुए मतों को ज्यादा सीटों में तब्दील करने की राह में एक बाधा साबित हुआ। विपक्ष के लिए संदेश बिल्कुल साफ है - वह जहां भी सत्ता में है, उसे शासन के मामले में एनडीए का एक स्पष्ट विकल्प प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए। और जहां वह सत्ता में नहीं है, उसे समान विचारधारा वाली ताकतों के बीच एकता बनाने एवं वैकल्पिक नीतियों के जरिए बदलाव लाने की वैसी रणनीति पर भरोसा करना चाहिए जो भाजपा की केंद्रीकरण और एकात्मक प्रकृति के उलट हो।

0 / 0
Sign in to unlock member-only benefits!
  • Access 10 free stories every month
  • Save stories to read later
  • Access to comment on every story
  • Sign-up/manage your newsletter subscriptions with a single click
  • Get notified by email for early access to discounts & offers on our products
Sign in

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.