भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के माणिक साहा के नेतृत्व में बुधवार को त्रिपुरा में नई मंत्रिपरिषद ने शपथ ली। डॉक्टर से राजनेता बने 70 वर्षीय साहा ने मई 2022 में बिप्लब देब की जगह सरकार की कमान संभाली थी। चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने यह नेतृत्व परिवर्तन किया था। उसका फैसला अनुकूल रहा और पार्टी ने कम सीटों से ही सही, जीत हासिल की। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक के होने की अटकलों पर विराम लग चुका है। डॉ. साहा दूसरे कार्यकाल में भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे। माना जा रहा है कि सुश्री भौमिक अपनी जीती विधानसभा सीट को खाली कर देंगी और केंद्र में बनी रहेंगी। भाजपा ने चार मंत्रियों को बरकरार रखा है और संगठन के तीन नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया है। इनमें पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रमुख विकास देबबर्मा भी शामिल हैं। पार्टी की सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आइपीएफटी) ने एक सीट जीती है और इकलौते विधायक सुकला चरण नोआटिया को कैबिनेट में जगह मिली है। 60 सदस्यीय विधानसभा में मंत्रिपरिषद में 12 सदस्य हो सकते हैं। अब भी तीन जगहें खाली हैं। भाजपा कथित तौर पर टिपरा मोथा के साथ बातचीत कर रही है, जो एक अपेक्षाकृत नई पार्टी है, जिसने 13 सीट जीतने के साथ प्रभावशाली शुरुआत की है। ये सभी सीटें राज्य के आदिवासी इलाकों से आई हैं। संभव है कि भाजपा और टिपरा मोथा का गठबंधन हो जाय।
त्रिपुरा में भाजपा की सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों द्वारा दशकों से चुपचाप किए जा रहे काम का नतीजा है। इसी की वजह से 2018 में वाम मोर्चा की हार हुई थी। पार्टी इस राज्य को कितना महत्व देती है, वह बुधवार को अगरतला में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित इसके शीर्ष नेतृत्व की उपस्थिति से एक बार फिर स्पष्ट हो गया। पार्टी की लगातार दूसरी चुनावी जीत इस सीमावर्ती राज्य में इसकी स्थिति को मजबूत करती है, लेकिन नई चुनौतियां भी पैदा हुई हैं। नई सरकार के सामने चुनाव परिणामों के बाद हुई हिंसा को शांत करने का तात्कालिक जिम्मेदारी है। इसके अलावा आदिवासी और गैर-आदिवासी आबादी के बीच विभाजन में आई तेजी भी एक मसला है, जिसका लाभ भाजपा को मिला है। एक अलग ग्रेटर टिपरालैंड के लिए टिपरा मोथा के अभियान, जिसमें त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद
(टीटीएएडीसी) क्षेत्र पूरा का पूरा शामिल है, ने एक नई दरार पैदा कर दी है। यह मांग इस डर से की जा रही है कि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों ने त्रिपुरा में मूलनिवासी समुदायों के हाशिये पर जाने की रफ्तार को तेज किया है। पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान, आंतरिक रूप से विस्थापित ब्रू समुदाय को मताधिकार दिया गया था, जिससे पूर्वोत्तर में एक संघर्ष समाप्त हो गया था। इसलिए डॉ. साहा को तत्काल कार्रवाई करनी होगी और अपनी सत्ता के लिए संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी पीठ पीछे नजर भी रखनी होगी।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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