केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने इस सप्ताह चार अलग-अलग विज्ञप्तियों के जरिए सीमा शुल्क के साथ-साथ वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मामलों में कर चोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रियाओं में बदलाव किया है। सबसे पहले, उसने सीमा शुल्क अधिनियम के तहत अभियोजन और गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू करने के लिए जरूरी मौद्रिक सीमा को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा दिया है। यही नहीं, बोर्ड ने जीएसटी अधिकारियों के लिए केंद्रीय जीएसटी कानून के तहत गिरफ्तारी और सम्मन जारी करने की शक्तियों के प्रयोग से पहले अपनायी जाने वाली प्रक्रिया को लेकर भी विस्तृत दिशानिर्देश तय कर दिया है। अतीत में जहां केंद्रीय उत्पाद शुल्क जैसे करों, जिन्हें अब जीएसटी में मिला दिया गया है, को प्रशासित करने वाले पुराने कानूनों के लिए ऐसे मानदंड निर्धारित किए गए थे, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में सीबीआईसी ने नए दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत महसूस की। मसलन, सम्मन चेकलिस्ट जीएसटी पोर्टल पर उपलब्ध रिकॉर्ड को मांगने के लिए भी फर्मों के शीर्ष अधिकारियों को सम्मन जारी करने के चलन को इंगित करती है और यह स्पष्ट करती है कि किसी भी फर्म के सीएक्सओ और प्रबंध निदेशक (एमडी) को पहली बार में ‘आम तौर पर’ नहीं बुलाया जाना चाहिए। उन्हें सिर्फ तभी बुलाया जाना चाहिए, जब कर चोरी में उनकी संलिप्तता साफ नजर आती हो। शक्तियों का विवेकपूर्ण प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए अनुमोदन की एक ऐसी प्रक्रिया शुरू की गई है जिसमें अधिकारियों को सम्मन जारी करने के कारण दर्ज करना जरूरी है। यहां तक कि उन्हें यह सलाह दी गई है कि कुछ मामलों में महज एक साधारण पत्र भेजना ही काफी हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की वजह से वजूद में आए जीएसटी से जुड़े अपराधों में गिरफ्तारी और जमानत के लिए निर्धारित किए गए ये मानदंड कहीं अधिक व्यापक हैं और इनका मकसद ‘नियमित और मशीनी’ किस्म की गिरफ्तारी को रोकना है। शुरुआती कदम के रूप में, गिरफ्तारी की निर्धारित पूर्व-शर्तों में गलत काम करने के विश्वसनीय साक्ष्य की उपलब्धता शामिल है। हालांकि, गिरफ्तारी की मंजूरी इस बात पर निर्भर करेगी कि कर से बचने या गलत तरीके से क रसंबंधी लाभ प्राप्त करने का इरादा या अपराध की मानसिकता स्पष्ट है या नहीं। बोर्ड ने कहा है कि महज वसूले जाने वाले कर की व्याख्या को लेकर हुई असहमति की वजह से कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। उसने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि गिरफ्तारी की शक्ति का उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्तिगत आजादी का हनन होता है। सीबीआईसी ने शीर्ष अदालत के इस निष्कर्ष पर प्रतिक्रिया देने में भले ही एक साल का समय लिया कि गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं की जानी चाहिए क्योंकि वह की जा सकती है, लेकिन इसके ताजा फरमान एक नए किस्म के कर संबंधी आतंक को लेकर जीएसटी करदाताओं के जहन में उपजी बेचैनी को शांत करेंगे। जीएसटी परिषद जहां छूट और उल्टी शुल्क से जुड़ी संरचनाओं की बकाया साफ - सफाई को पूरा करना और उभरती हुई नई कर - व्यवस्था के जरिए राजस्व बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उलझी हुई विभिन्न कर दरों में सुधार लाना जारी रखेगी, वही करों के अनुपालन से जुड़ी अड़चनों को कम करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। करदाताओं और अधिकारियों के बीच करों की बारीकियों को लेकर हमेशा मतभेद हो सकते हैं और रिटर्न दाखिल करने के क्रम में चूक या गलतियां हो सकती हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे सभी दुर्भावनापूर्ण ही हों। ऐसे मामलों को चंद करदाताओं द्वारा वाकई टालमटोल करने की चालों से अलग करके देखने और जानबूझकर गलती करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की एक तार्किक प्रक्रिया का पालन करने का कदम जीएसटी को कारोबारियों के लिए एक नए डर का सबब बनाने के बजाय उसे सही मायने में एक अच्छा और सरल कर - व्यवस्था बनाने की दिशा में बेहद कारगर साबित होगा।
This editorial in Hindi has been translated from English which can be read here.