संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति (सीटीसी) की बैठक की मेजबानी करने का भारत का फैसला आतंकवाद की समस्या को उजागर करने के लिए चल रहे सरकार के प्रयासों की दिशा में एक अहम पड़ाव है। खासकर, एक ऐसे समय में जब इस वैश्विक निकाय का ध्यान यूक्रेन युद्ध पर ज्यादा है। मुंबई और दिल्ली में आयोजित, इस बैठक ने वैश्विक आतंकवाद-विरोधी ढांचे के सामने पेश चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों और सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सभी सदस्य देशों के मंत्रियों व राजनयिकों को एक मंच पर इकट्ठा किया। मुंबई में, 26/11 के हमले चर्चा के केन्द्र में रहे। आतंकी निशानों की वैश्विक प्रकृति होने के बावजूद, 2008 से भारत को इस मामले को आगे बढ़ाने और एकमात्र जीवित हमलावर, अजमल कसाब को एक पूर्ण मुकदमे और सजा के जरिए अंजाम तक पहुंचाने के वास्ते अंतरराष्ट्रीय सहयोग पाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी है। बहुत थोड़े समय तक सूचना साझा करने के बाद, पाकिस्तान ने अपनी संघीय जांच एजेंसी द्वारा इन हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराए गए लश्कर-ए-तैयबा के कमांडरों हाफिज सईद, जकी-उर-रहमान लखवी एवं अन्य पर मुकदमा चलाने के मामले में अपने कदम वापस खींच लिए हैं। यूएनएससी सम्मेलन के दौरान, उपस्थित लोगों ने न सिर्फ इन हमलों के पीड़ितों की आपबीती सुनी थी, बल्कि हमलों के दौरान आतंकवादियों को निर्देशित करने वाले लश्कर-ए-तैयबा के भर्तीकर्ता साजिद मीर की आवाज के नमूने भी सुने थे। फिर भी मीर, जोकि अब फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स की अनिवार्य कार्रवाई के तहत पाकिस्तान द्वारा चिन्हित किए जाने के बाद आतंकवाद के वित्तपोषण के आरोपों में पाकिस्तान की जेल में बंद है, के खिलाफ कोई भी मुकदमा नहीं चलाया गया है। आतंकवाद के मामले में भारत के साथ कई अन्य तरीकों से सहयोग करने वाले अमेरिका ने इन हमलों के साजिशकर्ता डेविड हेडली और तहव्वुर राणा को दोषी तो ठहराया, लेकिन उन्हें प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया। उधर, चीन की तरफ से यूएनएससी 1267 आतंकवादी सूची में लश्कर के नेताओं को नामित करने में अड़ंगा लगाना जारी है। इस समस्या का विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इस सम्मेलन में खासतौर पर जिक्र किया।
दिल्ली में, सीटीसी का ध्यान ऑनलाइन माध्यम से कट्टरपंथ एवं आतंकी भर्तियों को बढ़ावा दिए जाने, क्रिप्टो-मुद्रा एवं आभासी परिसंपत्तियों के जरिए आतंकवाद का वित्तपोषण करने और आतंकी हमलों एवं ड्रग्स व हथियारों के परिवहन के लिए ड्रोन सहित मानव रहित हवाई प्रणाली के उपयोग पर था। गहन विचार-विमर्श के बाद “आतंकवादी उद्देश्यों के लिए नई और उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग का मुकाबला करने से संबंधित दिल्ली घोषणा” का ऐलान हुआ। अब जबकि भारत के पास यूएनएससी में अपने वर्तमान निर्वाचित कार्यकाल के सिर्फ दो महीने बचे हैं, सरकार सीटीसी की बैठक के बाद इस दिशा में अपनी रफ्तार बरकरार रखने का प्रयास कर रही है। वह एक अंतरराष्ट्रीय “नो मनी फॉर टेरर” सम्मेलन (18-19 नवंबर) और वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों (15-16 दिसंबर) से संबंधित चुनौतियों पर यूएनएससी की एक विशेष ब्रीफिंग की मेजबानी करेगी। जैसा कि 26/11 के मामले में भारत के अनुभवों ने दर्शाया है, वैश्विक समुदाय अक्सर बड़ी - बड़ी बातें तो करता है लेकिन साथ मिलकर कार्रवाई करने के मामले में कंजूसी बरतता है। लिहाजा, नई दिल्ली को लगातार इस बात पर जोर देते रहना होगा कि आतंकवाद, श्री जयशंकर के शब्दों में, “मानवता के लिए सबसे गंभीर खतरा” बना हुआ है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.