उम्मीद की किरणः समलैंगिकों को विवाह का अधिकार

समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट को एक निश्चित निर्देश जारी करना चाहिए

January 10, 2023 11:01 am | Updated January 17, 2023 01:46 am IST

सुप्रीम कोर्ट ने कई उच्च न्यायालयों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी लंबित याचिकाओं को अपने यहां स्थानांतरित करके, स्वागत योग्य कदम उठाया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने केंद्र से 15 फरवरी तक इस मुद्दे पर दायर सभी याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है और निर्देश के लिए इसे 13 मार्च को सूचीबद्ध किया है। याचिकाकर्ताओं को समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाले एक आधिकारिक फैसले की उम्मीद है। इसके लिए खास तौर पर, विशेष विवाह अधिनियम 1954 के कानूनी दायरे में संभावना तलाशी जा रही है, जिसमें उन जोड़ों के लिए कानूनी विवाह का अधिकार है जो “पर्सनल लॉ” के तहत शादी नहीं कर सकते। केएस पुटास्वामी (2017) मामले में निजता के अधिकार को बरकरार रखकर और नवतेज जौहर (2018) मामले ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके अदालत ने एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के अधिकारों को लेकर अनिश्चितता को खत्म करने का रास्ता दिखाया है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि विषमलैंगिक जोड़ों की तरह समलैंगिक समुदाय को अधिकार नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 समेत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार और मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन है जिसका भारत भी एक हस्ताक्षरकर्ता है। अनुच्छेद 16 कहता है, “वयस्क उम्र के पुरुषों और महिलाओं को जाति, राष्ट्रीयता या धर्म की सीमा से परे शादी करने और परिवार बनाने का अधिकार है”।

शीर्ष अदालत को पहले केंद्र के जवाब को देखना पड़ेगा जो समलैंगिक विवाह के खिलाफ है। केंद्र का मानना है कि इस मामले में कोई भी न्यायिक हस्तक्षेप “पर्सनल लॉ के नाजुक संतुलन को पूरी तरह हिला देगा”। ऐसे कई और भी मुद्दे हैं जिन पर समाज में पहले से पूर्वाग्रह झेल रहे एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय को अदालत से स्पष्टता की दरकार होगी। विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5, 6 और 7 के तहत, विवाह के पक्षकारों को जिले के विवाह अधिकारी को पूर्व सूचना देनी होती है, जिसे नोटिस का प्रचार करना होता है और आपत्तियां दर्ज करने की अपील करनी होती है। अतीत में, कई अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाहों को इज्जत या समुदाय के नाम पर हिंसक विरोध का सामाना करना पड़ा। हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2021 में यह फैसला सुनाया कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने वाले लोग अपने विवाह को प्रचारित नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं। इसमें यह कहा गया कि नोटिस प्रकाशित करने की अनिवार्यता और आपत्तियों के लिए आमंत्रण करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है। एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय को इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट से एक निश्चित निर्देश की उम्मीद होगी। सभी व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में समाज को संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता अभियान भी जरूरी है। समलैंगिक विवाह को वैधता देकर भारत दुनिया के चुनिंदा तीसेक देशों में शामिल हो सकता है और एशिया में ताइवान के बाद ऐसा करने वाला एकमात्र दूसरा देश बन सकता है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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