उत्तर-पूर्व के दो राज्यों नगालैंड और त्रिपुरा के मतदाताओं ने भाजपा और उसके सहयोगियों को एक और कार्यकाल दे दिया है जबकि बदलाव का वादा करने वाले उनके प्रतिद्वंद्वी दलों को हार का मुंह देखना पड़ा है। ये चुनाव नतीजे भाजपा के लिए उसके निरंतर किए काम का पुरस्कार तो है ही, साथ में एक सर्वव्यापी राष्ट्रीय दल होने के उसके दावे को और मजबूत करते हैं। त्रिपुरा में, पार्टी और उसकी क्षेत्रीय सहयोगी, इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा ने 33 सीटें जीतीं, जो 2018 की तुलना में नौ कम हैं, लेकिन बहुमत के आंकड़े से दो अधिक हैं। वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे का जो समझौता हुआ था वह वाम दलों के काम तो नहीं आ सका लेकिन उसने कांग्रेस में जान फूंक दी। वाम मोर्चा ने 11 सीटें जीतीं, जो 2018 में जीती गई 16 सीटों से पांच कम है। कांग्रेस ने तीन सीट जीती है जबकि पिछले चुनाव में उसका खाता भी नहीं खुल पाया था। तिपरा मोथा नाम की नई पार्टी ने आदिवासी क्षेत्रों में 13 सीटों पर जीत दर्ज की है। उसने कुल 42 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। भाजपा की जीत का श्रेय कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार, गरीबों के लिए 2,000 रुपये का मासिक सामाजिक भत्ता और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 1.6 लाख रुपए मकान बनाने के लिए दिया जा सकता है। ऐसा लगता है कि पार्टी ने गैर-आदिवासी मतदाताओं को भी एकजुट किया है, जो मोथा के उदय से परेशान हैं।
मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के खिलाफ उसके सहयोगियों और प्रतिद्वंद्वियों द्वारा समान रूप से लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप किसी काम नहीं आए। एनपीपी ने 26 सीटें जीतीं, जो 2018 की तुलना में छह अधिक हैं, जबकि निवर्तमान सरकार में उसके सहयोगियों, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी और भाजपा ने क्रमशः 11 और दो सीटें जीती हैं। सभी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। गारो और खासी-जैंतिया समुदायों के प्रभुत्व वाले दो पहाड़ी क्षेत्रों में एनपीपी की उपस्थिति ने इसे अच्छी स्थिति में रखा, जबकि तृणमूल कांग्रेस के पैर जमाने के प्रयास विफल हो गए क्योंकि इसे पश्चिम बंगाल की पार्टी के रूप में देखा गया। कांग्रेस, जिसकी समूचे राज्य भर में स्वीकार्यता हुआ करती थी, पांच सीटों पर सिमट गयी है। यह 2018 की 21 सीटों की तुलना में भारी गिरावट है। मेघालय में ईसाई समुदाय भाजपा को लेकर संशय में है, लेकिन नगालैंड के ईसाइयों ने भाजपा के प्रति गर्मजोशी दिखाई है। नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और भाजपा ने नगालैंड में सत्ता बरकरार रखी है। ध्यान देने वाली बात यह है कि नगालैंड की निवर्तमान विधानसभा में विपक्ष नहीं था। भाजपा ने 2018 के 12 सीटों के अपने स्कोर को कायम रखा जबकि एनडीपीपी ने 25 सीटें जीतीं, जो 2018 की तुलना में सात अधिक है। 60 सदस्यीय विधानसभा में बाकी सीटें भाजपा के छोटे सहयोगियों के खाते में गई हैं, जिससे नई विधानसभा में भी किसी भी तरह के विपक्ष की संभावना खत्म हो चुकी है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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