सीमारेखा परः सीमावर्ती गाँवों के विकास पर विशेष ध्यान

सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों को अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का शिकार नहीं बनने देना चाहिए

January 03, 2023 11:16 am | Updated 11:25 am IST

भारत सरकार, खास तौर पर सुरक्षा के नजरिए से सीमावर्ती गांवों के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 29 दिसंबर को कहा कि सीमाओं को स्थायी रूप से तभी सुरक्षित किया जा सकता है, जब सीमावर्ती गांवों में देश की फिक्र करने वाले देशभक्त नागरिकों की बसावट हो। श्री शाह ने सीमावर्ती गांवों में विकास और संचार को बढ़ावा देने के लिए, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (वीवीपी) के प्रभावी क्रियान्वयन की बात कही। इस योजना का ऐलान केंद्र सरकार ने 2022 के बजट में किया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022 के अपने बजट भाषण में कहा था कि यह योजना “कम आबादी और सीमित यातायात और बुनियादी ढांचे वाले सीमावर्ती गांवों के लिए है (जो) विकास के फायदों से महरूम रह जाते हैं”। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह योजना सरकार के “समग्र दृष्टिकोण” को दर्शाती है, ताकि यह पक्का किया जा सके कि इन गांवों में भी सारी सुविधाएं मौजूद हैं। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने 29 मार्च, 2022 को संसद को बताया था कि मौजूदा योजनाओं को ही मिलाकर इस नई योजना को शुरू किया गया और इसके कार्यान्वयन की रूपरेखा, फंड की जरूरतों और दूसरे तौर-तरीकों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। गृह मंत्रालय की मौजूदा सीमा क्षेत्र विकास योजना में सभी सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास की बात शामिल है और यह स्पष्ट नहीं है कि वीवीपी इससे किस मायने में अलग होगी?

इसके ऐलान के साल भर बाद भी वीवीपी को लेकर बहुत ज्यादा स्पष्टता नहीं आई है। यह बात भी अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है कि इसमें सभी सीमावर्ती क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा या फिर यह सिर्फ चीन से सटे उत्तर भारत की सीमाओं को ही कवर करेगा, जैसा कि बजट में बताया गया था। सरकार ने कहा है कि वीवीपी के तहत, ग्रामीण इलाकों में बुनियादी सुविधाओं, आवास, पर्यटन केंद्रों, सड़क संपर्क, और विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा के प्रावधानों समेत दूरदर्शन और शैक्षणिक चैनलों के लिए डायरेक्ट-टू-होम सेवा की सुविधा मिलेगी। साथ ही, इसके जरिए रोजगार के अवसर भी पैदा किए जाएंगे। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में चीन की सीमा से सटे गांवों को भी पर्यटकों के लिए खोलने की योजना थी। गृह मंत्रालय ने हाल ही में संसद की स्थायी समिति को बताया कि इस योजना के लिए बजट प्रावधान को वित्तीय व्यय समिति के पास मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। सीमावर्ती क्षेत्रों को देश के बाकी हिस्सों के साथ मजबूती से जोड़े रखना एक मुश्किल चुनौती है और यह एक संवेदनशील नजरिए की मांग करती है। सीमाएं साझा जातीय और सांस्कृतिक विरासत के लोगों को बांटती हैं और उन्हें देशों के बीच की तकरार से कोई फर्क नहीं पड़ता, भले ही कूटनीतिज्ञों के लिए यह एक बड़ा मामला हो। उन पर देशभक्ति का अग्रदूत बनने की जिम्मेदारी भरी चुनौती नहीं लादी जानी चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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