अगले सप्ताह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले अपना पांचवां और इस सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पेश करेंगी। यों तो अगले साल के अंतरिम बजट में भी कुछ चुनावी प्रस्ताव पेश किए जा सकते हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार 2023 में होने वाले विभिन्न राज्यों के चुनावों को लेकर भी सचेत होगी। सुश्री सीतारमण के सामने कई किस्म की विपरीत परिस्थितियों के बीच एक नजर मतदाताओं के भीतर सुकून का अहसास पैदा करने और दूसरी नजर भारत की दोहरे घाटे की स्थिति को दूर करने व विकास को आगे बढ़ाने के वास्ते उपयुक्त संकल्प दिखाने पर रखते हुए राजकोषीय संसाधनों की खींचतान को संतुलित करने का एक मुश्किल काम होगा। इस साल कर राजस्व की बेहतर स्थिति राजकोषीय घाटे के लक्ष्य (जीडीपी का 6.4 फीसदी) को पूरा करने में सहूलियत प्रदान करती है। वित्त मंत्री को 2025-26 के लिए निर्धारित जीडीपी के 4.5 फीसदी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक ठोस उपाय करने की जरूरत होगी, लेकिन बढ़ता चालू खाता घाटा कहीं ज्यादा बड़ी उभरती चिंता है। शुद्ध निर्यात के 2012-13 के उतरार्द्ध के बाद से मांग पर सबसे बड़ी बाहरी ‘बाधा’ बने रहने के बीच माल व्यापार घाटा इस साल की दूसरी तिमाही में अबतक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। सुश्री सीतारमण जहां आयात पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए गैर-महत्वपूर्ण वस्तुओं पर सीमा शुल्क बढ़ाने पर ध्यान देंगी, वहीं यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगी कि साधन (इनपुट) और दर्मियानी (इंटरमीडिएट) वस्तुओं के लिए निषेधात्मक या उल्टे शुल्क संरचनाओं की वजह से भारतीय उत्पादक वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ एकीकरण के अवसरों को न खोयें।
पश्चिमी दुनिया में अनुमान से कम मंदी रहने के बावजूद निर्यात, जिसने हाल ही में भारत के विकास को अच्छी तरह से संचालित किया है, के इस साल लड़खड़ाने की आशंका है। विकास इस साल अपेक्षित सात फीसदी से कम रहेगा और इसे छह फीसदी से नीचे जाने से रोकने की चुनौती है। विभिन्न क्षेत्रों में निजी निवेश की हालत सुधरना अभी बाकी रहने से बजट में सार्वजनिक पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) को बढ़ावा देना जारी रहेगा। बचे हुए संसाधनों के एक हिस्से को ग्रामीण विकास और सामाजिक कल्याण के ऊंचे खर्चों के लिए निर्धारित किया जाएगा, जिनमें
खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के साथ-साथ मनरेगा और पीएम-किसान जैसी योजनाएं भी शामिल हैं। रक्षा खर्च की योजनाओं पर बारीक निगाहें होंगी क्योंकि हाल के चुनाव-पूर्व बजटों में उनमें कटौती की जाती रही है। राहत का इंतजार कर रहे कामकाजी मध्यम वर्ग जैसे समूह आयकर में छूट की सीमा (2014 में निर्धारित 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष) में संशोधन और खर्च करने की शक्ति पर उच्च मुद्रास्फीति के असर को कम करने के वास्ते अन्य रियायतें चाहते हैं। सरकार ने अपनी पारी के दौरान इस दीर्घा के लिए शायद इसलिए बहुत कुछ नहीं किया है, क्योंकि यह किसानों और उद्योगपतियों जैसा एक मुखर या एकजुट हित समूह नहीं है। लेकिन खपत में असमान सुधार के निवेश चक्र में बाधा बने रहने के बीच, भारत के लिए उथल-पुथल वाली इस वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने विकास को संचालित करने के लिहाज से खर्च बढ़ाने के लिए लोगों के हाथों में पैसा देना और युवाओं के लिए ज्यादा रोजगार के अवसरों को सुविधाजनक बनाना ही सबसे अच्छा दांव होगा।
This editorial was translated from English, which can be read here.