गठबंधन सरकारों और अपने राजनेताओं की अस्थिर वफादारी के आदी रहने वाले एक राज्य के रूप में, मेघालय के निवर्तमान विधानसभा में कुल 60 विधायकों में से कम से कम एक तिहाई विधायक ऐसे थे जिन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान कई पार्टियां बदलीं। यहां तक कि 27 फरवरी को होने वाले चुनावों से ऐन पहले, नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के एक उम्मीदवार ने भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार बनने के लिए पाला बदल लिया और एक कांग्रेस उम्मीदवार ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का दामन थाम लिया। वर्ष 2018 में, कांग्रेस ने 21 सीटें, एनपीपी ने 20, भाजपा ने 2 और बाकी क्षेत्रीय दलों एवं निर्दलियों ने जीती थीं। चुनाव का सामना कर रहे पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में से मेघालय ही इकलौता राज्य है जहां कांग्रेस के लिए लड़ने का मौका है। कभी मेघालय में मुख्य राजनीतिक ताकत रही इस पार्टी के पास फिलहाल कोई विधायक नहीं है, हालांकि यह 2018 में सबसे बड़ी पार्टी रही थी। भाजपा दहाई अंकों में पहुंचने की उम्मीद के साथ राज्य के सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। नवंबर 2021 में 12 कांग्रेस विधायकों के पाला बदलने के बाद रातों-रात राज्य में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा पाने वाली टीएमसी ने 55 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। सबसे प्रभावशाली क्षेत्रीय दल, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी 46 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इस राज्य की राजनीति तीन मातृसत्तात्मक जनजातियों द्वारा संचालित होती है - खासी और जयंतिया जनजातियां, जो नस्ली रूप से एक – दूसरे के बेहद करीब हैं और गारो जनजाति, जो 50 साल पहले इस राज्य के गठन के बाद से 34 सालों तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रही।
गारो लोगों ने अक्सर एक अलग राज्य की मांग उठाई है। हालांकि, इस बार यह मांग कुछ हद तक मौन है। राज्य की कुल 60 सीटों में से 36 खासी-जयंतिया पहाड़ियों में और बाकी 24 सीटें गारो पहाड़ी में हैं। गारो पहाड़ी, जहां मुकाबला सबसे कड़ा है, में सत्तारूढ़ एनपीपी और मुख्य प्रतिद्वंद्वी टीएमसी आमने-सामने हैं। एनपीपी और भाजपा द्वारा टीएमसी को भारत के पड़ोसी देश के लोगों के प्रति सहानुभूति रखने वाली एक बंगाली पार्टी के रूप में चित्रित करने की कोशिश के साथ बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा, जोकि असम के चुनावों में अहम भूमिका निभाता है, इस बार मेघालय में भी आ गया है। टीएमसी और उसके सहयोगी एनपीपी पर सीमा विवादों को हल करने के लिए असम के साथ एक “असंतुलित” सौदा करने के अलावा कुशासन और बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, जनवितरण प्रणाली (पीडीएस) एवं अन्य क्षेत्रों में व्यापक भ्रष्टाचार का आरोप लगाते रहे हैं। सहयोगियों ने पूरा दोष एनपीपी पर मढ़ने की कोशिश करते हुए उस सरकार के रिकॉर्ड से अपने हाथ झाड़ लिए हैं, जिसका वे हिस्सा रहे हैं। सहयोगियों का कहना है कि एनपीपी ने निर्णय लिया और कभी भी किसी भी मुद्दे पर उनसे सलाह नहीं ली। निवर्तमान सरकार मे सहयोगी रहे दल उसके खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं और उनमें से हरेक विधानसभा में अपनी ताकत बढ़ाने एवं चुनाव के बाद के विकल्प खुले रखने की कोशिश कर रहा है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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