भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने इस चिंता की वजह से लगातार आठवीं बैठक में मानक रेपो दर को 6.50 फीसदी पर अपरिवर्तित छोड़ने का फैसला किया है कि ‘बढ़ी हुई खाद्य मुद्रास्फीति टिकाऊ मूल्य स्थिरता को सुनिश्चित करने के उसके प्रयासों को पटरी से उतार सकती है’। गवर्नर शक्तिकांत दास, जिन्होंने अभी दो महीने पहले कहा था कि मुद्रास्फीति का ‘हाथी’ सैर के बाद वापस जंगल की ओर लौटने का अपना सफर शुरू कर चुका है, ने एमपीसी के रुख के औचित्य के रूप में समग्र अवस्फीति के रास्ते के लिए खाद्य पदार्थों की कीमतों में जिद्दी बढ़ोतरी के जोखिम को रेखांकित किया। उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई खाद्य मुद्रास्फीति मार्च के 8.52 फीसदी से बढ़कर अप्रैल में अस्थायी रूप से 8.7 फीसदी हो गई और क्रिसिल की भोजन की थाली की लागत जैसे हालिया संकेतक बताते हैं कि टमाटर, प्याज एवं आलू की कीमतों में उछाल से मई में महंगाई में और भी तेजी आई होगी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने आठ जून को अनुमान लगाया था कि हेडलाइन खुदरा मुद्रास्फीति पिछले महीने 31 आधार अंक बढ़कर 5.14 फीसदी हो सकती है, जोकि लगभग पूरी तरह से खाद्य पदार्थों की कीमतों में 40 आधार अंकों की तेजी से बढ़कर 9.1 फीसदी होने के चलते हुई है। एमपीसी, जिसने 4-2 के बहुमत से “यह सुनिश्चित करने के वास्ते समायोजन की वापसी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मतदान किया कि मुद्रास्फीति उत्तरोत्तर चार फीसदी के लक्ष्य के अनुरूप रहे”, ने इस लक्ष्य को हासिल करने की राह में आने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया क्योंकि बढ़ती प्रतिकूल जलवायु की घटनाओं की वजह से आपूर्ति में झटके लग रहे हैं जिससे खाद्य पदार्थों की कीमतों में हलचल का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है। सीएमआईई ने फलों और सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह पिछले महीने की गर्मी को बताया है।
एमपीसी इस बात से भी अवगत है कि खाद्य पदार्थों की बढ़ती लागतों, जो देश के जलाशयों में अप्रत्याशित रूप से कम जल भंडारण स्तर के साथ-साथ वर्तमान गर्मी के मौसम में जारी अत्यधिक तापमान की वजह से नाजुक बनी हुई है, के खतरे के अलावा औद्योगिक धातुओं की बढ़ती कीमतें कोर मुद्रास्फीति में अपस्फीति की प्रवृत्ति को कमजोर कर सकती हैं। पश्चिम एशिया में व्याप्त तनाव और ओपेक+ उत्पादक देशों द्वारा लागू किए जा रहे उत्पादन में कटौती के मद्देनजर कच्चे तेल की कीमतों के अनिश्चित अनुमानों को इसमें अगर जोड़ें, तो यह मुद्रास्फीति की राह में बढ़ती अनिश्चितता का एक नुस्खा है। आरबीआई के सर्वेक्षणों का ताजा दौर इस बात को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है कि मूल्य स्थिरता नीति निर्माताओं की मुख्य चिंता क्यों है। जहां मई में किए गए परिवारों के सर्वेक्षण में सभी प्रमुख उत्पाद समूहों में मुद्रास्फीति, अगले तीन महीने और एक साल आगे की अवधि में, बढ़ने की आशंका है, वहीं उपभोक्ताओं का भरोसा भी सर्वेक्षण के मार्च दौर से कम हो गया। सर्वेक्षण के इस दौर में लगभग 80 फीसदी उत्तरदाताओं के बढ़े हुए बहुमत ने एक साल की अवधि में महंगाई के बढ़ने की आशंका जताई थी। गवर्नर दास का मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने की दिशा में निरंतर फोकस बनाए रखना बिल्कुल उचित है। खासकर, इस बात के मद्देनजर, जैसा कि उन्होंने कहा, यह “निरंतर दीर्घकालिक विकास का एक आवश्यक आधार है।”