अगले महीने 12 नवंबर को हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच दो-ध्रुवीय मुकाबले के आसार नजर आ रहे हैं। पड़ोसी राज्य पंजाब में जबरदस्त जीत हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) का इस पहाड़ी प्रदेश में प्रवेश का शुरुआती उत्साह अब फीका पड़ता दिख रहा है। पिछले तीन दशकों से हिमाचल में दो-ध्रुवीय चुनाव ही देखने को मिले हैं, जिसमें पांच-पांच साल के लिए कांग्रेस और भाजपा को बारी-बारी से सत्ता मिली है। इस बार की लड़ाई भी कोई अलग नहीं दिख रही। हालांकि, आम आदमी पार्टी ने चुनाव में एक नया तड़का जरूर लगा दिया है। सत्ताधारी भाजपा जहां दोबारा सत्ता में आने के लिए बीते चार साल में किए गए अपने ‘विकास’ कार्यों की दुहाई दे रही है, वहीं कांग्रेस और आप जैसी विपक्षी पार्टियां बढ़ते भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की मांग और स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्रों में खराब सुविधाएं जैसे मुद्दे उठा रही हैं। भाजपा ‘मिशन रिपीट‘ के लिए जोर लगा रही है और केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किए गए ‘विकास’ कार्यों के हवाले से ‘डबल इंजन’ के इर्द-गिर्द अभियान चला रही है। बीजेपी के धमाकेदार अभियान की अगुवाई केंद्रीय नेतृत्व कर रहा है। पिछले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित पार्टी के प्रमुख नेताओं ने कई रैलियों को संबोधित किया।
भाजपा से सत्ता छीनने की कोशिश में जुटी कांग्रेस पार्टी के चुनावी अभियान की कमान मोटे तौर पर प्रदेश नेतृत्व के हाथों में है। हालांकि, बीते हफ्ते कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने वहां अपनी पहली चुनावी रैली को संबोधित किया। कांग्रेस, भाजपा के खिलाफ ‘सत्ता के खिलाफ नाराजगी‘ की भावना के सहारे उम्मीद लगाए बैठी है, लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं है। अपने सबसे बड़े नेता और छह बार के मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह की गैर-मौजूदगी में प्रदेश नेतृत्व में एक ‘शून्य’ उभर आया है। भले ही उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को पार्टी की बागडोर थमा दी गई है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री की तरह का आकर्षण पैदा करना और उनके जैसा राजनीतिक सूझबूझ को हासिल करना मुश्किल दिख रहा है। राज्य में मजबूत नेतृत्व के अभाव में गुटबाजी बार-बार सामने आती रही है। इसकी वजह से कई मौजूदा विधायकों समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के पद छोड़ दिए। कई लोगों की तरफ से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी, चिंता का एक और सबब है। भाजपा जहां प्रतिकूल हालात से निपटने के लिए तैयार दिख रही है, वहीं सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाने की कांग्रेस की तैयारी लचर लग रही है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.