जमीनी हकीकत की जानकारी के बिना किया गया नीतिगत हस्तक्षेप अक्सर नीति - नियंताओं की आत्म-संतुष्टि की एक कवायद बनकर रह जाता है और इसकी वजह से लक्षित समूह को बहुत ही कम या कोई लाभ नहीं मिल पाता है। कुछ अच्छा करने की चाहत को एक परिस्थिति विशेष में किए जाने वाले उपयुक्त काम के अनुरूप होना चाहिए। और बच्चों के मामले में, यह बाल-केंद्रित नीतियों द्वारा निर्देशित होना चाहिए। हाल ही में परित्यक्त बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया के दायरे में लाने की एक संसदीय समिति की सिफारिश इन मापदंडों को खरा उतरेगी या नहीं, इस बारे में अभी और अधिक बहस - मुबाहिसे की जरूरत है। कार्मिक, लोक शिकायत तथा विधि और न्याय मंत्रालय से संबंधित संसद की स्थायी समिति की हाल ही में दी गई “अभिभावकता और गोद लेने से संबंधित कानूनों की समीक्षा” शीर्षक रिपोर्ट ने बच्चों को गोद लेने के इच्छुक लोगों की संख्या और कानूनी रूप से उपलब्ध बच्चों की संख्या के बीच भारी अंतर की ओर इशारा किया है और इसके उपाय के तौर पर यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया है कि “अनाथ और सड़कों पर भीख मांगते पाए जाने वाले परित्यक्त बच्चे जल्द से जल्द गोद लेने के लिए उपलब्ध कराए जायें”। इस वास्ते उक्त रिपोर्ट में अनाथ / परित्यक्त बच्चों की पहचान करने के लिए समय-समय पर जिलावार सर्वेक्षण करने का सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट में यह तर्क रखा गया है कि लाखों अनाथ बच्चों वाले इस देश में महज 2,430 बच्चे ही गोद लेने के लिए उपलब्ध थे। यह सच है कि गोद लेने के लिए वास्तव में उपलब्ध बच्चों की संख्या की तुलना में बच्चों को गोद लेने के इच्छुक लोगों की संख्या हमेशा अधिक रहती है। ऐतिहासिक रूप से ऐसा ही रहा है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बढ़ती खाई, जैसा कि यह रिपोर्ट इंगित करती है, को पाटना जरूरी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) में गोद लेने के इच्छुक लगभग 18,000 संभावित माता-पिता की तुलना में दिसंबर 2021 तक 27,939 संभावित माता-पिता पंजीकृत थे। बच्चों की देखभाल करने वाले संस्थानों में गोद लेने योग्य 6,996 अनाथ, परित्यक्त और समर्पित किए गए बच्चे रह रहे थे, लेकिन उनमें से सिर्फ 2,430 बच्चों को ही बाल कल्याण समितियों द्वारा गोद लेने के लिए
कानूनी रूप से मुक्त घोषित किया गया था। इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पिछले पांच वर्षों में गोद लेने के लिए प्रतीक्षा का समय एक वर्ष से बढ़कर तीन वर्ष हो गया है। 2021-22 में गोद लिए गए बच्चों की कुल संख्या सिर्फ 3,175 थी।
लेकिन बड़े पैमाने पर कदाचार और गोद लेने वाले अंतर-देशीय रैकेट से निपटने के क्रम में देश में गोद लेने की प्रक्रिया को प्रक्रियात्मक और कानूनी रूप से कड़ा कर दिया गया। कारा को गोद लेने के देशी और अंतर-देशीय मामलों के लिए नोडल निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। इसका मकसद गोद लेने की प्रक्रिया की निगरानी एवं उसका विनियमन करना और कड़े नियमों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना था कि गोद लेना बच्चे के सर्वोत्तम हित में है और इसमें किसी किस्म की अवैधता शामिल नहीं है। संसदीय समिति की यह व्याख्या भले ही सही है कि जब किसी संस्था में रह रहे एक बच्चे को किसी घर में रखा जाता है तो माहौल अपने – आप ही खुशनुमा हो जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया में सावधानी बरतना जरूरी है। निस्संदेह, देश को अपने परिस्थितिवश अनाथ हुए बच्चों की देखभाल करनी चाहिए। लेकिन इस हकीकत को स्वीकार करते हुए भी कि गोद लेने की प्रक्रिया का संस्थागतकरण दीर्घकालिक अवधि में हानिकारक हो सकता है, उसे बच्चों की देखभाल से जुड़े बारीक पहलुओं पर समान रूप से ध्यान देना चाहिए और खुद को बाल-केंद्रित दर्शन द्वारा निर्देशित होने देना चाहिए। अनाथ बच्चों को कोई नुकसान न पहुंचे, यह सुनिश्चित करने का कोई आसान रास्ता उपलब्ध नहीं है।
This editorial in Hindi has been translated from English which can be read here.