अक्टूबर में वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) में अब तक का दूसरा सबसे ज्यादा सकल मासिक राजस्व इकट्ठा हुआ। यह राजस्व 1.52 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा ही कम रहा। यह लगातार आठवां महीना है जब जीएसटी संग्रह का आंकड़ा 1.4 लाख करोड़ रुपये के पार रहा। इसमें अप्रैल महीने में रिकॉर्ड 1,67,540 करोड़ रुपये का संग्रह भी शामिल है। वित्त मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि इस महीने घरेलू लेन-देन भी योगदान के मामले में दूसरे नंबर पर रहा। अक्टूबर के जीएसटी को देखें, तो सितंबर में 8.3 करोड़ ई-वे बिल बने। वित्त मंत्रालय के मुताबिक अगस्त के 7.7 करोड़ बिल की तुलना में यह ‘कहीं ज्यादा’ है। त्योहार के मौसम की शुरुआत ने निश्चित तौर पर उपभोग को बढ़ाया। साथ ही, विक्रेताओं ने भी अपने स्टॉक को समृद्ध किया। सरकार ने लगातार जीएसटी राजस्व को महामारी के बाद की आर्थिक गतिविधियों की मजबूती को मापने के लिए एक मानदंड के तौर पर देखा है। लिहाजा, उसके पास इस ताजा आंकड़े पर बात करने की बहुत सारी वजहें हैं। मिसाल के लिए, अप्रैल के रिकॉर्ड राजस्व को तेजी से दुरुस्त हो रही अर्थव्यवस्था के रूप में देखा गया। हालांकि, जब मई में राजस्व में बड़ी गिरावट देखने को मिली, तो सरकार ने तर्क दिया कि मार्च में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष ने अप्रैल माह में कर के खजाने को भरा था। अक्टूबर के राजस्व में आई इस उछाल की वजह भी उस तर्ज पर यह हो सकती है कि तिमाही के अंत में कई करदाताओं ने रिटर्न दाखिल किया होगा।
ध्यान देने वाली बात यह है कि जीएसटी राजस्व से जुड़े ताजा ब्योरे में इस तरह की कोई बात नहीं की गई। इसलिए कई लोगों ने नाराजगी जताई कि इसकी वजह बताने के बजाय, चुप्पी क्यों साधी गई। मंत्रालय ने नियमित रूप से साझा किए जाने वाले बुनियादी आंकड़े भी पेश नहीं किए। जैसे, समग्र संग्रह में साल भर की बढ़ोतरी का आंकड़ा और घरेलू लेन-देन (जिसे आम तौर पर सेवाओं के आयात पर लगाए गए करों में जोड़ दिया जाता है) और वस्तुओं के आयात से हासिल हुए राजस्व में बढ़ोतरी का स्पष्ट लेखा-जोखा। इन आंकड़ों का एक हद तक अनुमान लगाया जा सकता है। हाल के महीनों की तुलना में वस्तुओं के आयात में सुस्ती आई है। इन पर लगे एकीकृत जीएसटी और जीएसटी उपकर में क्रमश: 13 फीसदी और 18 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। लगातार बढ़ रहे आयात बिल पर लगाम कसने की कोशिश में जुटी अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा संकेत है। क्योंकि अक्टूबर 2021 से सकल राजस्व में 16.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो अप्रैल के रिकॉर्ड संग्रह के बाद की सबसे कम विकास दर है। हो सकता है कि
इसी वजह से सरकार ने चुप्पी साध ली हो। हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि साधारण आधार प्रभावों की वजह से विकास दर में नरमी आएगी। महीनेवार ई-वे बिल में 7.8 फीसदी की वृद्धि के बावजूद, राजस्व में मात्र 2.7 फीसदी की क्रमिक वृद्धि इसकी एक और वजह हो सकती है। हालांकि, अगर मुद्रास्फीति की वजह से उपभोग प्रभावित हो रहा है, तो यह किसी न किसी तरह दिख जाएगा। आंकड़ों में कांट-छांट करने के बजाय, सरकार को राजस्व बढ़ाने के लिए सुधारों में तेजी लाने की दिशा में काम करना चाहिए। जीएसटी परिषद की बैठक जल्द से जल्द होनी चाहिए क्योंकि परिषद को इनमें से कुछ सुधारों को अगस्त में ही शुरू करना था। सिर्फ बड़ी – बड़ी बातें करने भर से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
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