सांप्रदायिक रूप से नाजुक कोयंबटूर में एक मंदिर के पास रविवार की अहले सुबह हुए कार विस्फोट की एक घटना के बाद जांचकर्ताओं को एक आतंकवादी साजिश के उल्टा पड़ जाने के मिले संकेतों के बीच इस घटना से पूरी संवेदनशीलता के साथ पेशेवर तरीके से नहीं निपटे जाने की स्थिति में कानून - व्यवस्था और राजनीतिक मोर्चे पर मौजूदा तनाव के बढ़ने की पूरी आशंका है। यह जानकारी कि कार का चालक और इस घटना में जल कर मरने वाला संदिग्ध मास्टरमाइंड जमीशा मुबीन, कुछ अरसे से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के रडार पर था, निश्चित रूप से एक आतंकी साजिश को भांपने और रोकने में खुफिया तंत्र की क्षमताओं पर सवाल खड़े करेगा। यह पूरी तरह खुशकिस्मती है कि मुबीन द्वारा एक आतंकी हमले को अंजाम देने से पहले ही, जैसा कि शुरुआती जांच से पता चलता है, कार में रखे एक एलपीजी सिलेंडर में विस्फोट हो गया। गौरतलब बात यह है कि यह घटना पिछले महीने सीरियल मोलोटोव कॉकटेल हमलों की पृष्ठभूमि में हुई। इन सीरियल हमलों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर देशव्यापी प्रतिबंध के मद्देनजर दक्षिणपंथी संगठनों और उनके पदाधिकारियों की संपत्तियों को निशाना बनाया गया था। पुलिस बल को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने 24 घंटे से भी कम समय में एक बड़ी साजिश का खुलासा करके संदिग्ध साजिशकर्ताओं को बेनकाब कर दिया। आधा दर्जन संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है, जो उनकी जांच कौशल की तस्दीक करता है। विस्फोट के बाद पुलिस की सराहनीय कार्रवाई के बावजूद, इस मुद्दे की गंभीरता और इसके राजनीतिक असर को महसूस करते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एनआईए को इसकी जांच अपने हाथ में लेने की सिफारिश करके बिल्कुल सही काम किया। राज्यपाल आर.एन. रवि, जोकि एक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं, ने एनआईए को बुलाने में चार दिन की देरी पर सवाल उठाया है। हालांकि, यह जमीनी स्थिति के परिप्रेक्ष्य और व्यक्ति विशेष द्वारा आकलन का मामला है।
राजनीतिक रूप से, इस घटना ने श्री स्टालिन के लिए कुछ चुनौतियां खड़ी कर दी है। उन्हें अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने के कर्तव्य और राजनीतिक समस्याओं के जवाब के रूप में
हिंसा का प्रचार करने वाले कट्टरपंथियों से समझौता न करने की प्रशासनिक जरूरत के बीच संतुलन कायम करना होगा। इसमें उन्हें द्रमुक के नेतृत्व वाले धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन के घटक दलों के समर्थन की दरकार होगी, जिन्हें इस किस्म के संतुलन की जरूरत को स्वीकार करना होगा। जहां तक द्रमुक का सवाल है, 1998 के कोयंबटूर सीरियल धमाकों की वजह से उन्हें आतंक के प्रति नरम होने की आलोचना भी झेलनी पड़ी थी। हालांकि, अन्नाद्रमुक शासन के दौरान भी तमिलनाडु ने आतंक के तीखे हमले (1993 आरएसएस कार्यालय विस्फोट) झेले हैं। स्टालिन को इस घटना का एक “स्प्रिंगबोर्ड” तौर पर इस्तेमाल करके सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने और धार्मिक ध्रुवीकरण को अंजाम देने की कोशिशों का भी मुकाबला करना होगा। राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने और खुद को राजनीतिक रूप से मजबूत करने के इरादे से भाजपा के कुछ नेताओं ने 31 अक्टूबर को कोयंबटूर बंद का आह्वान करके इस मुद्दे को तूल देने की कोशिश की है। हालांकि, जरूरत इस बात की है कि एनआईए और सरकार साम्प्रदायिकता व आतंकवाद का राजनीतिकरण करने का मौका न देते हुए इस घटना के साजिशकर्ताओं से मजबूती से निपटे।
This editorial has been translated from English, which can be read here.