सावधानी से रखें कदम: गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स से भारत-चीन के सैनिकों की वापसी

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों की वापसी का फैसला एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इससे सीमा संकट खत्म नहीं हुआ है

Published - September 15, 2022 12:41 pm IST

भारत और चीन ने 13 सितंबर को पूर्वी लद्दाख के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर टकराव की पांचवीं जगह से सैनिकों की वापसी की पुष्टि की। गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पेट्रोलिंग पॉइंट (पीपी) 15 से सैनिकों की वापसी के साथ ही, अब दोनों पक्षों ने पांच जगहों पर बफर जोन बना लिया है। इनमें गलवान घाटी, पैंगोंग झील का उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र और गोगरा का पीपी 17 ए शामिल हैं। पहले से बने चार बफर जोन की व्यवस्थाओं के चलते बीते दो साल से शांति कायम रखने में मदद मिली। बफर ज़ोन में दोनों में से कोई भी पक्ष गश्त नहीं लगाएगा। यह वह इलाका है जिस पर भारत और चीन दोनों की दावेदारी है। यह पूरा घटनाक्रम उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भागीदारी से तीन दिन पहले हुआ।  

दोनों देशों के ताजा संबंधों की बात करें, तो बीते ढाई साल से ज्यादा समय से दोनों नेताओं के बीच सीधी बातचीत नहीं हुई है। यह दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले मुल्कों के लिए एक असाधारण स्थिति है। क्या वे एससीओ शिखर सम्मेलन में मिलेंगें, 14 सितंबर तक इस बात की किसी भी पक्ष ने न तो पुष्टि की है और न ही इस संभावना को खारिज किया है। यही हाल इस साल के आखिर में इंडोनेशिया में होने वाली जी 20 बैठक का है। भारत को सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा क्योंकि इन मुलाकातों के साथ ही चीन के साथ उच्च-स्तरीय बातचीत दोबारा शुरू होगी। बफर जोन से भले ही तात्कालिक तौर पर टकराव की स्थिति खत्म हो जाए, लेकिन हकीकत यह है कि इस व्यवस्था को भारत के ऊपर थोपा गया है। मुश्किल हालात में डटकर भारतीय सेना ने चीन की तैनाती का मुकाबला करने की अपनी क्षमता दिखाते हुए, अप्रैल 2020 से लेकर अब तक पांच इलाकों में चीनी घुसपैठ को नाकाम करने में कामयाब रही। हालांकि, भारत को इसकी कीमत उन इलाकों में गश्त न लगाने की शर्त पर चुकानी पड़ी, जहां पहले वह ऐसा किया करता था। कुछ सैन्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि चीन का पूरा खेल ही यही था क्योंकि चीन की तरफ का इलाका रसद ले जाने के लिहाज से उसके अनुकूल है और वह तेजी से इन इलाकों पर तैनाती कर सकता है। इसके अलावा, चीन डेमचोक और डेपसांग में गतिरोध हल करने पर सहमत नहीं हुआ, जबकि तनाव की शुरुआत इन इलाकों से पहले हुई थी। यही नहीं, उसने टकराव को पूरी तरह खत्म करने की भी नीयत नहीं दिखाई। अलबत्ता, उसने बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी रखा है जिसका उद्देश्य वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक सैन्य दस्तों के लिए स्थायी रूप से बसेरा बनाना है। दरअसल, संकेत यह है कि दोनों पक्ष सीमा पर लंबे समय के लिए बनी अनिश्चितता की स्थिति के लिए तैयार हैं। इसकी शुरुआत चीन ने अप्रैल 2020 में की थी, जब उसने पिछले सीमा समझौतों का उल्लंघन करते हुए एलएसी पर दसियों हजार सैनिकों की तैनाती कर दी थी। जब तक बीजिंग एलएसली का सैन्यीकरण करने के अपने हालिया और अब तक अस्पष्ट कदम से पीछे नहीं हटता और इस प्रक्रिया में वह सावधानी से बनाई गई उन व्यवस्थाओं को पहले की तरह बहाल नहीं करता जिनसे दोनों देशों के बीच 40 साल तक अमन कायम रहा, तब तक भारत के लिए 2020 से पहले की स्थिति वाली संबंधों की बहाली की ओर लौटने की कोई खास वजह नहीं बनती। सेनाओं की वापसी का ताजा फैसला निश्चित रूप से स्वागत योग्य कदम है, लेकिन किसी भी सूरत में यह सीमा संकट का अंत नहीं है।  

This editorial has been translated from English, which can be read here.

0 / 0
Sign in to unlock member-only benefits!
  • Access 10 free stories every month
  • Save stories to read later
  • Access to comment on every story
  • Sign-up/manage your newsletter subscriptions with a single click
  • Get notified by email for early access to discounts & offers on our products
Sign in

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.