जब सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ‘अग्रिम चिकित्सा निर्देशों’ की अवधारणा को कानूनी दर्जा दिया था और कड़े सुरक्षा उपायों के तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी थी, तो इसे जीवन के अंत के फैसलों में रोगी की स्वायत्तता और एक गरिमापूर्ण मौत का अधिकार, दोनों की महत्वपूर्ण मान्यता के रूप में देखा गया था। हालांकि, बाद में डॉक्टरों ने यह पाया कि इनमें कुछ खास निर्देश “जरूरत से ज्यादा बाधक” बन रहे हैं। अपने एक हालिया आदेश में, एक संविधान पीठ ने इन निर्देशों को अधिक व्यावहारिक और सरल बनाने के ख्याल से संशोधित किया। अग्रिम निर्देश को अब एक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित करने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय, इसे किसी नोटरी या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष अभिप्रमाणित किया जा सकता है। मजिस्ट्रेट के बजाय, इतना पर्याप्त होगा कि नोटरी या अधिकारी इस बात से संतुष्ट हो कि संबंधित दस्तावेज़ को बिना किसी दबाव या प्रलोभन के अपनी मर्जी से और पूरी समझदारी के साथ निष्पादित किया गया है। मूल दिशानिर्देश में उल्लेखित निष्पादक के निर्णय लेने में अक्षम होने की स्थिति में, उसके द्वारा चिकित्सा उपचार से इनकार करने या उसे वापस लेने की सहमति देने के लिए एक अभिभावक या एक करीबी रिश्तेदार को अधिकृत करने के प्रावधान को एक से अधिक अभिभावक या रिश्तेदार को नामित करने के लिए संशोधित किया गया है। दस्तावेज़ के निष्पादन के समय परिवार के सदस्यों के उपस्थित नहीं रहने की स्थिति में मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें इसके बारे में सूचित किए जाने के बजाय अब यह जिम्मेदारी खुद दस्तावेज का निष्पादन करने वाले व्यक्ति पर है कि वह दस्तावेज में नामित अभिभावकों या करीबी रिश्तेदारों के साथ-साथ अपने पारिवारिक चिकित्सक को भी अग्रिम निर्देश की एक प्रति सौंपे। इसे डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड में भी शामिल किया जा सकता है।
नए दिशा-निर्देशों के अनुसार अस्पताल को खुद एक प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड का गठन करना होगा जो यह प्रमाणित करे कि उपचार से इनकार करने या वापस लेने के निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए या नहीं। अस्पताल को एक दूसरा बोर्ड भी गठित करना होगा, जिसमें जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा नामित एक डॉक्टर भी शामिल होगा और यह प्राथमिक बोर्ड के प्रमाण पत्र का समर्थन करेगा। यहां बदलाव यह है कि अब जिला कलेक्टर को दूसरा मेडिकल बोर्ड गठित करने की जरूरत नहीं है, जैसा कि 2018 के फैसले में जरूरी था। वैसे मामलों में भी बोर्ड द्वारा जांच सही रहेगी जिनमें कोई अग्रिम निर्देश तो नहीं है, लेकिन रोगी कोई निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। नए दिशानिर्देश चिकित्सा बोर्ड में शामिल किए जाने वाले लोगों के अनुभव और विशेषज्ञता को भी परिभाषित करते हैं। भले ही इस तरह के दिशानिर्देश ‘लिविंग विल’ की अवधारणा को लागू करने और चिकित्सा निर्देशों को आगे बढ़ाने के लिहाज से उपयोगी और जरूरी हैं, लेकिन समय आ गया है कि संसद इस बारे में एक व्यापक कानून लेकर आए। इस किस्म का एक कानून अग्रिम निर्देशों का एक संग्रह (रिपॉजिटरी) भी प्रदान कर सकता है ताकि इसके कार्यान्वयन के समय इसकी वास्तविक प्रकृति का नए सिरे से पता लगाने की जरूरत पैदा न हो।
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Published - February 07, 2023 11:55 am IST