यूनाइटेड किंगडम पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का निधन, ब्रिटिश राजशाही के लिए एक युग के अंत का प्रतीक है। वे 70 साल से ज्यादा समय तक सत्ता में रहीं। एक राष्ट्राध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल विश्वयुद्धों के ठीक बाद के शुरुआती वर्षों में शुरू हुआ और वे ब्रिटिश साम्राज्य से लेकर राष्ट्रमंडल और उत्तर-औपनिवेशिक राष्ट्रों के उदय तक राजनीतिक सत्ता के संतुलन में आमूलचूल बदलावों की गवाह रहीं। उनकी गद्दी पर बने रहने के दौरान ही शीत युद्ध का खात्मा हुआ और यूरोपीय संघ के सदस्य के तौर पर ब्रिटेन का 47 वर्षों का संबंध भी खत्म हुआ। उनके कार्यकाल के दौरान, विंस्टन चर्चिल से लेकर लिज़ ट्रस तक ब्रिटेन में कम से कम 15 प्रधानमंत्री आए और गए। उसका शासन भी अविवादित नहीं रहा। निजी तौर पर साल 1992 में उन्होंने बदतरीन पल देखे, जब उनके तीन बच्चों की शादी टूट गई और विंडसर कासल आगजनी से तबाह हो गया। वर्ष 1997 में किंग चार्ल्स की पूर्व पत्नी डायना की पेरिस में सड़क दुर्घटना में मौत के बाद, राजशाही की इस बात को लेकर आलोचना हुई कि वह सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं से बच रही है। समय-समय पर हुई इन आलोचनाओं के बावजूद, महारानी एलिजाबेथ को ब्रिटेन के अवाम ने हमेशा आला मकाम दिया। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में उन्हें 75 फीसदी जनता का समर्थन हासिल था। जानकार इसका श्रेय राजनीतिक मुद्दों पर उनकी तरफ से ओढ़ी गई जिद भरी चुप्पी को देते हैं। इन मुद्दों पर मुंह न खोलने के उनके नजरिए की वजह से आलोचकों, बाहरी लोगों और किसी भी व्यक्ति को यह छूट मिली कि वे उनके और राजपरिवार के बारे में जो मन में आए बोलें।
उनके निधन से राजशाही और राष्ट्रमंडल के प्रभुत्व (दायरे) की दशा को लेकर कई जटिल सवाल भी उठे हैं क्योंकि एलिजाबेथ युग की तुलना में इन देशों के सामाजिक-आर्थिक परिवेश में निरंतर और नए तरीके के बदलाव आए हैं। मसलन, ऑस्ट्रेलिया में चल रही बहसों पर विचार करें। वहां देश को गणराज्य के रूप में स्थापित करने को लेकर एक लोकप्रिय आंदोलन चल रहा है। खासकर प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज की सरकार, मूलनिवासियों और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर समुदायों के बीच संधि कराने को लेकर खासी इच्छुक है। वर्ष 2021 में बारबाडोस ब्रिटिश राजशाही को राष्ट्राध्यक्ष की भूमिका से हटाने वाला 18वां देश बना। ब्रिटेन और इन दो देशों के अलावा, ब्रिटिश राजशाही को अभी भी एंटीगुआ और बारबुडा, बेलीज, कनाडा, ग्रेनाडा, जमैका, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट और ग्रेनाडीन, सोलोमन द्वीपसमूह, बहामास और तुवालू में राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा हासिल है। कम से कम छह कैरिबियाई देशों ने बारबाडोस की मिसाल को अपनाने का संकेत दिया है। हालांकि, भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देश जिस 56 राष्ट्रों के व्यापक राष्ट्रमंडल समूह के सदस्य हैं, वह अभी भी एकजुट है। इसका बड़ा श्रेय महारानी द्वारा अपनाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को दिया जाना चाहिए जिसकी वजह से यह संगठन अभी भी प्रासंगिक बना हुआ है। जिस कदर ऐतिहासिक उनका शासन काल था, उनके गुजर जाने का उतना ही व्यापक असर राष्ट्रमंडल के मिशन और संभावनाओं पर होगा।
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