आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच हिंसक सीमा संघर्ष ने काकेशस क्षेत्र में एक और युद्ध की आशंका पैदा कर दी है। वर्ष 2020 में दोनों देशों ने विवादित नागोर्नो-कराबाख इलाके को लेकर एक – दूसरे के खिलाफ एक सप्ताह तक भीषण युद्ध लड़ा था। रूस द्वारा युद्धविराम के लिए मजबूर किए जाने से पहले अजरबैजान ने उस युद्ध में बढ़त हासिल कर ली थी। इस मसले को लेकर दोनों देशों के बीच गाहे – बगाहे झड़पें होती रहीं और तनाव जारी रहा। लेकिन, मंगलवार को हुई झड़प 2020 के बाद से अबतक की सबसे घातक झड़प थी। आर्मेनिया और अजरबैजान ने एक-दूसरे पर उकसाने का आरोप लगाया है। लेकिन शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, लड़ाई आर्मेनियाई इलाके में भड़की और आर्मेनिया को अधिक नुकसान उठाना पड़ा। यह कोई संयोग नहीं कि यह संकट ऐसे समय में आया है जब आर्मेनिया का सुरक्षा सहयोगी रूस इस वक्त यूक्रेन में अपनी बढ़त बरकरार रखने के लिए जूझ रहा है। आर्मेनिया रूस के नेतृत्व वाले उस सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन का सदस्य है, जिसका नाटो जैसा चार्टर यह घोषित करता है कि किसी एक सदस्य देश के खिलाफ हमले को सभी के खिलाफ हमला माना जाएगा। लिहाजा आर्मेनिया ने मदद के लिए रूस की ओर रुख किया, लेकिन मॉस्को की प्रतिक्रिया सावधानी भरी थी। उसने दोनों पक्षों से तनाव घटाने का आह्वान किया। उसने अपनी मध्यस्थता में एक और युद्धविराम कराने का दावा किया।
नागोर्नो-कराबाख का विवाद सोवियत युग से पहले का है। जब सोवियत संघ का गठन हुआ, तब आर्मेनियाई बहुल इलाका अजरबैजान सोवियत गणराज्य का हिस्सा बना। जब सोवियत संघ का पतन हुआ और आर्मेनिया एवं अजरबैजान स्वतंत्र गणराज्य बन गए, तो इस मसले पर फिर से संघर्ष शुरू हो गया। नागोर्नो-कराबाख के आर्मेनियाई विद्रोही अजरबैजान की सेना के खिलाफ लड़े और आर्मेनिया में शामिल हो गए। लेकिन न तो अजरबैजान ने कभी इस इलाके पर अपना दावा छोड़ा और न ही दोनों देश इस मसले पर आपस में कोई शांति समझौता कर पाए। फिलहाल, 1990 के दशक के उलट, अजरबैजान आर्थिक और राजनीतिक रूप से मजबूत दिखाई दे रहा है। वर्ष 2020 के संघर्ष के दौरान इसे जहां तुर्की की ओर से सैन्य एवं राजनयिक सहायता मिली थी, वहीं रूस आर्मेनिया की ओर से इस संघर्ष में घसीटे जाने से बच रहा था। इस समय, यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस की अपने पड़ोस में ताकत दिखाने की क्षमता और भी सीमित होती जान पड़ती है। दूसरी ओर, गैस के मामले में समृद्ध अजरबैजान को अभी भी तुर्की का समर्थन हासिल है और यूरोपीय संघ गैस की आपूर्ति बढ़ाने के लिए उसके साथ पींगें बढ़ा रहा है। ऐसा लगता है कि इन क्षेत्रीय घटनाक्रमों ने अजरबैजान का हौसला मजबूत कर दिया है। लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा सभी के लिए महंगी साबित हो सकती है। रूस अगर आर्मेनिया की उपेक्षा करना जारी रखता है, तो उसके लिए मध्य एशिया और काकेशस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखना मुश्किल होगा। साथ ही, लड़ाई के एक और मोर्चे पर उलझना भी उसके लिए चुनौतीपूर्ण होगा। काकेशस क्षेत्र में भड़का कोई भी संघर्ष वैश्विक ऊर्जा बाजारों को और अधिक अस्थिर बनाएगा जिससे सभी अर्थव्यवस्थाओं, खासकर ऊर्जा स्रोतों के मामले में कमजोर यूरोप को खासा नुकसान होगा। उधर, यूक्रेन मसले पर रूस और पश्चिम के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे तुर्की के पड़ोस में एक और युद्ध का भड़कने से उसकी विदेश नीति के विकल्प और जटिल हो जायेंगे। दुनिया को फिलहाल एक और युद्ध की दरकार नहीं है। लिहाजा, सभी पक्षों को मिलकर आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच एक स्थायी युद्धविराम कराना चाहिए और नागोर्नो-कराबाख की अशांत पहाड़ियों में शांति सुनिश्चित करनी चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.