भारत में चल रहे टेलीविजन चैनलों के लिए दिशा-निर्देशों में बदलाव करके, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कॉन्टेंट के लिए भी कुछ मानदंड निर्धारित किए हैं। टीवी पर विचारों के ध्रुवीकरण, गरमा-गरम बहस और संकीर्ण तरीके से वैचारिक हमलों के इस दौर में, सरकार ने कहा है कि जहां तक मुमकिन हो, चैनलों को रोजाना सामाजिक तौर पर प्रासंगिक और राष्ट्रीय महत्व से जुड़े मुद्दों पर कम से कम 30 मिनट तक का कॉन्टेंट दिखाना होगा। ‘भारत में सैटेलाइट टेलीविजन चैनलों के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिए दिशानिर्देश, 2022’ में कहा गया है कि चूंकि वायु तरंग (एयर वेव) और आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) सार्वजनिक संपत्ति है, इसलिए उसका इस्तेमाल समाज के सर्वोत्तम हित में होना चाहिए। विदेशी चैनलों को छोड़कर, भारत में काम करने की अनुमति वाली सभी कंपनियों को जनता के हितों के मुताबिक कॉन्टेंट प्रसारित करना होगा। जिन विषयों को इसके लिए चुना गया है उनमें शिक्षा और साक्षरता का प्रसार, कृषि और ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण, पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासतों की सुरक्षा और राष्ट्रीय एकीकरण शामिल हैं। ये ऐसे विषय हैं जिन पर काफी जागरुकता की दरकार है। फिक्की-ईवाई की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 के 17.8 करोड़ के आंकड़ों की तुलना में साल 2025 तक टेलीविजन सब्सक्रिप्शन में और 4.2 करोड़ की बढ़ोतरी होगी। इस लिहाज से देखें तो असंख्य मुद्दों वाले विविधता भरे इस देश में सार्वजनिक हितों से जुड़े मुद्दों का प्रसारण कोई बुरा विचार नहीं है।
लेकिन, हर अच्छे इरादे के साथ चेतावनी नत्थी होती है। इस दिशा-निर्देश में कहा गया है, “केंद्र सरकार समय-समय पर राष्ट्रीय हित से जुड़े कॉन्टेंट के प्रसारण के लिए, चैनलों को सामान्य दिशा-निर्देश जारी कर सकती है और चैनलों को उसका पालन करना होगा“। हालांकि सरकार ने चैनलों को “दायित्व निभाने के लिए अपने कॉन्टेंट में उचित संशोधन करने“ की ‘छूट’ दी है, लेकिन इसमें दर्ज इरादे यह संकेत देते हैं कि जरूरत पड़ने पर सरकार इसमें दखल दे सकती है। साथ ही, वह मीडिया पर सतर्कता के साथ निगरानी रखेगी। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण ने 2008 की अपनी एक सिफारिश में सार्वजनिक सेवा के दायित्वों का सुझाव दिया था। उसी को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ताजा दिशा-निर्देश के लिए आधार बनाया है। हालांकि, (ऐसा न करने पर) मुआवजे के मानदंडों पर अभी कोई स्पष्टता नहीं है, न ही इस बात पर कि टीवी पर सार्वजनिक विषयों से जुड़े इन मुद्दों के प्रसारण का खर्च कौन उठाएगा? ताजा दिशा-निर्देश 9 नवंबर से प्रभावी हो गई है और इसने 2011 से चले आ रहे नियमों की जगह ले ली है। सरकार ने इसके साथ-साथ कई कदम उठाने का ऐलान किया है, जिनमें भारत को “टेलीपोर्ट हब” बनाना भी शामिल है। सरकार ने कार्यक्रमों के सीधा प्रसारण के लिए अनुमति लेने की जरूरत को खत्म कर दिया है। लाइव टेलीकास्ट के लिए सिर्फ पहले से पंजीकरण कराना जरूरी होगा। जहां तक 30 मिनट के सार्वजनिक मुद्दों से जुड़े प्रसारण का सवाल है, सूचना प्रसारण सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा है कि इसे लागू करने के तौर-तरीकों के बारे में सभी हितधारकों से परामर्श किया जाएगा। इसके बाद ही यह लागू होगा।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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