देर आयद, दुरुस्त आयद: आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों से जुड़े सभी लेनदेन को पीएमएलए के दायरे में लाने का फैसला

आभासी परिसंपत्तियों में होने वाली बढ़ोतरी से निपटने के लिए भारत के पास उचित नियामक उपाय होने चाहिए

Published - March 11, 2023 11:37 am IST

आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों से जुड़े सभी लेनदेन को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के दायरे में लाने संबंधी वित्त मंत्रालय की 7 मार्च की अधिसूचना देर से ही सही, लेकिन एक बेहद जरूरी कदम है। सरकार हाल के सालों में महामारी-काल के दौरान आभासी परिसंपत्तियों में निवेश करने संबंधी विज्ञापनों की आई बाढ़ के साथ-साथ इन परिसंपत्तियों में वास्तविक निवेश की खबरों से निपटने के लिए एक उपयुक्त नियामक उपाय की तलाश में जूझती रही है। मसलन, ब्रोकरचूज़र डॉटकॉम की जुलाई 2021 की एक ऑनलाइन रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया था कि भारत ‘क्रिप्टो के मालिकों’ की सबसे ज्यादा तादाद वाला देश है और यहां ऐसे मालिकों की संख्या 10.07 करोड़ है, जोकि इस मामले में दूसरा स्थान रखने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका (यू.एस.) के क्रिप्टो परिसंपत्तियों के मालिकों की संख्या से तीन गुना से ज्यादा है। भले ही इसे एक काल्पनिक अनुमान माना गया हो, लेकिन सरकार द्वारा किए गए उपायों और खुलासों से यह संकेत मिलता है कि हाल के वर्षों में अविनियमित आभासी परिसंपत्तियों के व्यापार की मात्रा में काफी बढ़ोतरी हुई है। पिछले महीने, वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा को सूचित किया था कि प्रवर्तन निदेशालय ‘क्रिप्टोकरेंसी की धोखाधड़ी से संबंधित कई मामलों की जांच कर रहा है, जिसमें कुछ क्रिप्टो के लेनदेन धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) में लिप्त पाए गए हैं’। और यह कि 31 जनवरी तक अपराध की आय माने जाने वाले 936 करोड़ रुपये को या तो कुर्क कर लिया गया है या फिर उन्हें ‘फ्रीज’ कर दिया गया है। आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों में होने वाले सभी व्यापार को अनिवार्य रूप से पीएमएलए के तहत लाने का निर्णय ऐसी परिसंपत्तियों के सुरक्षित होने सहित इस किस्म की सभी गतिविधियों के उद्गम का पता लगाने का दायित्व अब इन लेनदेन में भाग लेने वाले या इसकी सुविधा प्रदान करने वाले व्यक्तियों और व्यवसायों पर डालता है।

अंतर सरकारी वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (एफएटीएफ), जोकि धन शोधन एवं आतंकवादी वित्त पोषण पर निगरानी रखने वाली वैश्विक संस्था है, दुनिया भर में आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों

के कारोबार के तेज रफ्तारी और गुमनामी वाले पहलू के मद्देनजर इसके आपराधिक दुरुपयोग की संभावना को लगातार चिन्हित करता रहा है। जैसा कि इसने बताया है, तथ्य यह है कि कुछ देशों ने आभासी परिसंपत्तियों को विनियमित करने के लिए कदम उठाया है और कुछ अन्य ने उन पर एकमुश्त प्रतिबंध लगा दिया है। जबकि, अधिकांश देशों ने इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं करके अपराधियों और आतंकवादियों के दुरुपयोग के वास्ते खामियों वाली एक वैश्विक व्यवस्था बना दी है। भारत, जो जी-20 का अध्यक्ष है, बार-बार क्रिप्टो परिसंपत्तियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर एक समन्वित नियामक उपाय की जरूरत पर जोर देता रहा है। पिछले साल के बजट में आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों के लिए कर व्यवस्था की शुरुआत के बाद, पीएमएलए की निगरानी संबंधी जरूरतों का समावेश करने के केंद्र सरकार के फैसले को जहां क्रिप्टो परिसंपत्ति सेक्टर द्वारा रोक लगाने लगाने के बजाय विनियमन की दिशा में उठाए गए कदम के तौर पर समझा गया है, वहीं आभासी परिसंपत्ति से संबंधित लंबे समय से लटके मसौदा कानून के भाग्य का फैसला करने से पहले भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा इसपर प्रतिबंध लगाने की लगातार हिमायत पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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