इस साल नवंबर में भारत का सकल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व लगभग 11 फीसदी बढ़कर लगभग 1.46 लाख करोड़ रुपये हो गया। जुलाई 2017 में जीएसटी की शुरुआत के बाद से यह सिर्फ दसवां ऐसा मौका है जब राजस्व 1.4 लाख करोड़ रूपये से अधिक रहा है। यह आंकड़ा अबतक नौ महीनों के लिए लगातार शीर्ष पर रहा है। अप्रैल में 1.67 लाख करोड़ रुपये और अक्टूबर में 1.51 लाख करोड़ रुपये से अधिक की अब तक की दो अधिकतम जीएसटी मासिक प्राप्तियां आंशिक रूप से करदाताओं द्वारा तिमाही रिटर्न दाखिल करने की वजह से संभव हुईं। अनुपालन में समय-समय पर होने वाली बढ़ोतरी के मद्देनजर, मासिक जीएसटी राजस्व के लिए संभवतः 1.4 लाख करोड़ रुपये की वसूली को नई सामान्य आधार रेखा के तौर पर आंका जा सकता है। इस साल जीएसटी के खजाने में पहले ही लगभग 12 लाख करोड़ रुपये पहुंच जाने की वजह से, सरकार को अपने बजट पर एक मामूली अधिशेष (सरप्लस) हासिल होने की उम्मीद है। यह स्वागत योग्य राजकोषीय स्थिति है। खासतौर पर यह देखते हुए कि उर्वरक एवं खाद्यान्न जैसी वस्तुओं पर केंद्र का सब्सिडी बिल भी बजटीय गणित को पार कर गया है और सरकार को इससे अपने वित्तीय घाटे से जुड़े लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिल सकती है।
हालांकि दूसरी तरफ, नवंबर का जीएसटी राजस्व व्यापक अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में बहुत उत्साहजनक संकेत नहीं देता है।
नवंबर में 10.9 फीसदी की समग्र जीएसटी राजस्व वृद्धि, जोकि अक्टूबर में किए गए लेन-देन को दर्शाती है, जून 2021 के बाद से सबसे धीमी वृद्धि है। यह तब है जब अक्टूबर में दीपावली सहित प्रमुख त्योहार हुए थे। नवंबर का राजस्व तीन महीनों में सबसे कम रहा और यह अक्टूबर में खजाने में आए राजस्व से लगभग चार फीसदी कम था। मोटे तौर पर माल के उत्पादकों के यहां से निकलकर थोक एवं खुदरा आपूर्ति श्रृंखलाओं में पहुंचने का संकेत देने वाले ई-वे बिल के जारी होने में सिलसिलेवार रूप से 8.6 फीसदी की गिरावट आई है। यह भारी गिरावट शायद कारखानों में लंबी छुट्टियों की वजह से दर्ज हुई है।
ई-वे बिल में गिरावट के बावजूद त्योहारी खपत की वजह से जीएसटी की प्राप्ति में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि मांग की प्रत्याशा में माल के स्टॉक (इन्वेंटरी) पहले से ही भरे जा चुके थे। इस गिरावट का असर मौन प्रतीत होता है और यह तथ्य काफी हैरान करने वाला है कि गुजरात और केरल सहित सात राज्यों में राजस्व साल-दर-साल आधार पर कम हुआ है। घरेलू लेन-देन की वजह से होने वाली आमद में वृद्धि अक्टूबर में 18 फीसदी से घटकर पिछले महीने आठ फीसदी पर पहुंच गई, जबकि
नवंबर में माल के आयात से प्राप्त होने वाला राजस्व 20 फीसदी बढ़ गया। यह इस बात का एक संभावित संकेत है कि उपभोग पक्ष में स्थिति असमान बनी हुई है और उच्च आय वर्ग द्वारा उपभोग किए जाने वाले सामानों की मांग में बेहतर वृद्धि देखी जा रही है। त्योहार के बाद दिसंबर माह में होने वाली जीएसटी की वसूली से राजस्व के मुख्य आंकड़ों में निरंतरता और अर्थव्यवस्था के विकास की दिशा के मसले पर एक साफ तस्वीर मिल सकेगी। एक लंबे अंतराल के बाद इस महीने बैठक करने जा रही जीएसटी परिषद को अनुपालन को मजबूत करने के वास्ते लंबित मुद्दों पर लंबे समय से प्रतीक्षित कार्रवाई में तेजी लानी चाहिए और उपभोग में एक व्यापक आधार वाली एवं निरंतर वृद्धि को बढ़ावा देने की दृष्टि से कर के दरों को युक्तिसंगत बनाने के लिए फिलहाल टाली हुई एवं व्यापक योजनाओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.