खतरे में सुरक्षित ठिकानेः प्रस्तावित डिजिटल इंडिया अधिनियम, 2023 का प्रभाव

नेट मध्यस्थों के विनियमन में अनुचित शर्तें शामिल नहीं होनी चाहिए

Updated - March 13, 2023 12:10 pm IST

Published - March 13, 2023 11:34 am IST

प्रस्तावित डिजिटल इंडिया अधिनियम, 2023 की रूपरेखा तैयार करते हुए आइटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने अब लगभग अप्रचलित हो चुके आइटी अधिनियम, 2000 की जगह एक मजबूत कानून लाने की वकालत की थी। उन्होंने उस वक्‍त एक सवाल खड़ा किया था जिस पर सरकार को फिर से विचार करना चाहिए: “क्या सभी ‘इंटरमीडियरीज़’ (मध्यस्थों) के लिए एक ‘सुरक्षित ठिकाना’ होना चाहिए? आज यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि सरकार इंटरनेट मध्यस्थों पर अनुपालन का बोझ बढ़ाने की दिशा में लगातार काम कर रही है, विशेष रूप से आइटी नियम 2021 और इसके बाद के संशोधनों के रास्‍ते। आइटी नियम के मुताबिक सोशल मीडिया मध्यस्थों के ऊपर ही उनके प्लेटफार्मों पर प्रकाशित सामग्री पर निर्णय लेने की जिम्मेदारी डाल दी गई थी, लेकिन उन नियमों के तहत जो सरकार ने जाहिर तौर से अपने पक्ष में बनाए हैं। इसीलिए इस नियम के खिलाफ कई कानूनी अपीलें दायर की गईं, चूंकि डिजिटल समाचार मीडिया के प्लेटफार्मों ने इन नियमों की संवैधानिकता पर सवाल उठा दिया। इस बीच, अक्टूबर 2022 में एक संशोधन करके सरकार ने अपने द्वारा नियुक्त समितियों का एक प्रावधान किया जो इन मध्यस्थों के निगरानी (मॉडरेशन) संबंधी निर्णयों के खिलाफ एक व्यक्तिगत उपयोगकर्ता की अपील पर निर्णय लेंगी। जनवरी 2023 में आइटी मंत्रालय ने उन सोशल मीडिया/समाचार सामग्री को हटाने पर एक संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसे पत्र सूचना कार्यालय या किसी अन्य सरकारी एजेंसी द्वारा “फर्जी” या “गलत” के रूप में चिन्हित किया गया है। कुल मिलाकर, सरकार के इन कदमों ने ‘इंटरमीडियरी’ मंचों के लिए सुरक्षित ठिकाने को ही जोखिम में डाल दिया है।

इंटरनेट पर अभद्र भाषा और गलत सूचना का विनियमन आवश्यक है और इस मामले में डिजिटल समाचार मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों सहित मध्यस्थों को जवाबदेह भूमिका निभानी है। सामग्री को हटाने या पहुंच को बाधित करने से पहले उपयोगकर्ताओं को पूर्व सूचना देने और मध्यस्थों के लिए आवधिक अनुपालन रिपोर्ट जमा कराने सम्‍बंधी लिए आइटी नियमों के निर्देशों का स्‍वागत किया गया है। सोशल मीडिया मध्यस्थों को सार्वजनिक व्यवस्था के हित और कानूनी परिणामों से बचने के अलावा उपयोगकर्ताओं के पोस्ट या संवाद को बंद नहीं करना चाहिए, लेकिन यह सुनिश्चित करने में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि मध्‍यस्‍थों के

लिए ये शर्तें अनावश्यक रूप से कष्टदायक और दंडकारी न हों, क्‍योंकि सुरक्षित ठिकाने वाले सिद्धांत का ये उल्‍लंघन करती हैं। एक वैध चिंता यह है कि सरकार नफरत फैलाने वाले भाषण या गलत सूचना की तुलना में सोशल मीडिया / समाचार प्लेटफार्मों पर आलोचनात्मक विचार या असंतोष को नियंत्रित करने या हटाने में उत्सुक है, चूंकि कई मामलों में विद्वेषपूर्ण भाषण या गलत सूचनाओं का स्रोत राज्य के प्रतिनिधि ही हैं। सुरक्षित ठिकाने के प्रावधान- विशेष रूप से अमेरिकी कम्‍युनिकेशंस डीसेंसी ऐक्‍ट, 1996 की धारा 230- जो स्पष्ट रूप से उपयोगकर्ता-जनित सामग्री के संबंध में ऑनलाइन सेवाओं को प्रतिरक्षा प्रदान करते थे, इंटरनेट के विकास में लंबा सफर तय कर चुके हैं। गलत सूचना, समस्याग्रस्त सामग्री और इंटरनेट के नए रूपों के दुष्प्रभावों से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए आधुनिक नियम जहां आवश्यक हैं, वहीं सुरक्षित ठिकाने के मूल से छेड़छाड़ किए उसके बगैर आरंभिक सिद्धांतों को भी कायम रखा जाना चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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