इंडोनेशिया के पूर्वी जावा के कांजुरुहान स्टेडियम में शनिवार की रात एक फुटबॉल मैच के दौरान मची भगदड़ में कम से कम 125 लोगों की जान लेने वाली घटना बेहद दुखद थी। हालांकि, इस घटना में घायल हुए एक व्यक्ति ने इसे बयां करने वाली एक बेहद गंभीर टिप्पणी की। उन्होंने इसके लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि पुलिस ने दर्शकों के साथ “अमानवीय” व्यवहार किया। खेल के बाद जब कुछ दर्शक मैदान में दौड़ पड़े और हुड़दंग मचाने लगे, तो पुलिस ने प्रतिक्रिया के तौर पर कुछ ज्यादा ही कठोर रुख अपनाते हुए आंसू गैस के गोले दाग दिए। लिहाजा मैदान में उलझे प्रशंसक और बाकी लोग नजदीकी गेट की तरफ एक साथ भागे और वह गेट बंद था। नतीजतन, भीड़ का जत्था एक जगह इकट्ठा हो गया और लोगों का दम घुटने लगा। इस दुर्घटना ने भीड़ से जुड़ी और कई त्रासदियों की याद दिला दी। जैसे, कैमरून में अफ्रीका कप ऑफ नेशंस प्रतियोगिता के दौरान जनवरी 2022 में आठ लोगों, 2012 में मिस्र के पोर्ट सईद में 74 दर्शकों और 1989 में इंग्लैंड के यॉर्कशायर के हिल्सबोरो में लिवरपुल के 97 समर्थकों की मौत की घटनाएं। तीनों मामलों में लोगों की मौत हुड़दंग से कम और पुलिस की काहिली और भीड़ को नियंत्रित करने की विफलता की वजह से ज्यादा हुई। फुटबॉल की शासी निकाय फीफा का स्टेडियम में सुरक्षा को लेकर एक स्पष्ट दिशानिर्देश है। इसमें कहा गया है कि पुलिस या भीड़ को काबू करने वाले संबंधित अधिकारियों की तरफ से “भीड़ को काबू में करने के लिए किसी भी हथियार या गैस का इस्तेमाल न किया जाए”। यह दिशानिर्देश बेवजह नहीं है। इस किस्म की पुलिसिया हरकत असल में व्यवस्था बहाल करने के लिए की जाती है। ऐसा तब किया जाता है जब हिंसा नियंत्रण से बाहर हो जाती है और दंगों में तब्दील हो जाती है। उस दौरान, जनता की सुरक्षा की कोई परवाह नहीं की जाती। चूंकि स्टेडियम बंद जगह होते हैं, इसलिए भीड़ पर काबू पाने के लिए आग्नेयास्त्रों या आंसू गैस का इस्तेमाल करने से भगदड़ और मचेगी और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा और बढ़ेगा। इंडोनेशियाई राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा पुलिस की तरफ से आंसू गैस दागने की जांच करने का फैसला करना बिल्कुल सही है। साथ ही, नागरिक समाज संगठन यह भी मांग कर रहे हैं कि आयोजकों और पुलिस को कटघरे में खड़ा किया जाए।
कई देशों में उत्साही समर्थकों की जमात के साथ फुटबाल निर्विवाद रूप से दुनिया में दर्शकों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला खेल है। इसकी मुख्य वजह इसकी सादगी, कौशल का इस्तेमाल और टीम की तरफ से एकजुट प्रदर्शन पर जोर है। लेकिन, दर्शकों के इस जुनून का दूसरा पहलू यह है कि कुछ टीमों या खिलाड़ियों के पक्ष या विपक्ष में उनके जज्बात, खेल या खिलाड़ियों की वास्तविक भावनाओं की सराहना तक सीमित नहीं रह जाते। लोग सिर्फ एक दर्शक की हैसियत से मौजूद नहीं रहते, बल्कि वे खुद को उस प्रतिस्पर्धी खेल के असली खिलाड़ियों से नत्थी करने की झूठी चेतना पाल लेते हैं। इस वजह से जज्बात और भड़कते हैं। साथ ही, इसके पीछे राजनीतिक और वाणिज्यिक हितों का भी हाथ है। निश्चित रूप से उग्र भीड़ को नियंत्रित करने वाले पुलिसकर्मियों को कांजुरुहान में हुई मौतों का जिम्मेदार ठहराया जाना चहिए, लेकिन बार-बार होने वाली इस तरह की त्रासद घटनाओं के बाद हर खेल प्रशंसक को दर्शक के बतौर अपनी भूमिका का भी आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। एक बेहतरीन खेल की सराहना करना एक बात है, लेकिन उस सराहना का घातक जुनून में बदल जाना बिल्कुल दूसरी बात है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
Published - October 04, 2022 12:15 pm IST