वैश्विक अर्थव्यवस्था दुर्बल कर देने वाली मंदी के खतरे से बच गई है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पिछले सप्ताह 2024 में दुनिया भर में कुल वृद्धि दर के अनुमान को अक्टूबर में अपने अनुमानित आकलन 2.9 फीसदी से बढ़ाकर 3.2 फीसदी कर दिया है। आईएमएफ ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था ने हैरतअंगेज दृढ़ता दिखाते हुए कई
प्रतिकूल झटकों के साथ-साथ ‘मूल्य स्थिरता को बहाल करने के मकसद से केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दर में की गई महत्वपूर्ण बढ़ोतारियों’ को झेल लिया है और सुदृढ़ अमेरिकी मांग की अगुवाई में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के सहारे विकास की रफ्तार को बनाए रखा है। हालांकि, मुद्रा कोष ने उत्तर और दक्षिण के बीच बढ़ती आर्थिक खाई की ओर भी इशारा करते हुए कहा है: “कई कम आय वाले विकासशील देशों और बाकी दुनिया के बीच बढ़ता फासला एक परेशान करने वाला घटनाक्रम है। इन अर्थव्यवस्थाओं के लिए, विकास को नीचे की ओर संशोधित किया गया है, जबकि मुद्रास्फीति को ऊपर की ओर संशोधित किया गया है।” अफ्रीका और कुछ लैटिन अमेरिकी, प्रशांत द्वीप और एशियाई देशों सहित इन सबसे गरीब देशों को उत्पादन में अनुमानित गिरावट के मामले में महामारी-पूर्व के अनुमानों के बरक्स कोविड-19 महामारी के चलते सबसे ज्यादा नुकसान भी उठाना पड़ा है और वे इससे उबरने के लिए जूझ रहे हैं। उनकी मुसीबतें और भी बढ़ गईं हैं क्योंकि ये अर्थव्यवस्थाएं अब बढ़ते ऋण भुगतान के बोझ से दबी हुई हैं, जिससे बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी देखभाल और खाद्य सुरक्षा को बेहतर करने के लिए सामाजिक नेटवर्क सहित बेहद जरूरी सार्वजनिक कल्याण पर खर्च करने की उनकी क्षमता गंभीर रूप से क्षीण हो रही है।
आईएमएफ के सहोदर विकास ऋणदाता, विश्व बैंक ने एक अलग रिपोर्ट में बताया है कि इस सदी में पहली मर्तबा दुनिया के 75 सबसे गरीब देशों में से आधे आय के मामले में सबसे अमीर अर्थव्यवस्थाओं के साथ एक बड़ा फासला महसूस कर रहे हैं, जोकि विकास का एक “ऐतिहासिक पलटाव” है। जैसा कि विश्व बैंक समूह के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमीत गिल ने ऋणदाता की साइट पर एक ब्लॉग पोस्ट में कहा, “[75 सबसे गरीब देश] मानवता की एक चौथाई - 1.9 बिलियन लोगों का घर हैं... और भूख या कुपोषण का सामना करने वाले 90 फीसदी लोगों का घर हैं”। श्री गिल ने कहा कि इससे भी ज्यादा दुखद बात यह है कि जब ये देश उस दौर, जिसे उन्होंने संभावित रूप से ‘एक खोया हुआ दशक’ कहा, से गुजर रहे थे तो बाकी दुनिया “काफी हद तक उनसे अपनी नजरें फेर रही थी” जबकि इनमें से कम से कम आधे देशों में सरकारें ऋण संकट के चलते ज्यादातर लकवाग्रस्त थीं। दक्षिण कोरिया, चीन और भारत, जो विश्व बैंक के अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए) से कम ब्याज वाले ऋण लेने वाले देश से आर्थिक महाशक्तियों में तब्दील हो गए हैं और आज आईडीए के दाता हैं, का उदाहरण देते हुए विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री ने इस बात पर जोर दिया कि यह जरूरी है कि दुनिया के अमीर देश सबसे गरीब देशों को आर्थिक रूप से सहयोग दें। यह देखते हुए कि दुनिया को सार्वभौमिक शांति और समृद्धि हासिल करने के लिए आर्थिक क्षमता के हर भंडार का दोहन करने की जरूरत है, वह अपने एक चौथाई लोगों से मुंह मोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती।