ऊंचे सपने के कार्यान्वयन में बारीकियों का ध्यान न रखा जाए, तो वे धाराशायी हो सकते हैं। मदुरै का एम्स इसका सबसे सटीक उदाहरण है। देश भर में अनेक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) शुरु करने का विचार निश्चित रुप से एक स्पष्ट और निहायत ही जरूरत से आया है- जिसमें भारत में मांग एवं आपूर्ति के बीच के अंतर को पाटना और बिल्कुल ही अपर्याप्त डॉक्टर-रोगी के अनुपात को ठीक करना शामिल है। वर्ष 2003 में, केन्द्र ने इस सटीक लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) की घोषणा की। वर्ष 2006 में पीएमएसएसवाई शुरु हुआ और देश में कुल छह एम्स जैसे चिकित्सा संस्थान खोले गए। वर्तमान में ऐसे 20 मेडिकल कॉलेज चल रहे हैं और तीन चालू होने के कगार पर है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन संस्थानों ने छात्रों के लिए प्रचुर अवसर मुहैया कराए हैं और सस्ती स्वास्थ्य शिक्षा को महानगरों से परे ले जाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। लेकिन इरादे से ज्यादा क्रियान्वयन की अहमियत होती है। एम्स मदुरै, एक ऐसी परियोजना जिसने केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच के संबंधों को और अधिक कड़वा कर दिया है, में अपर्याप्त बुनियादी ढ़ांचे, सुविधाओं और कार्यबलों की कमी की लगातार शिकायतें रही हैं। केन्द्र सरकार के इस ‘प्रतिष्ठित’ परियोजना की आधारशिला जनवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने थोप्पुर, मदुरै में रखी थी। वर्ष 2021 से, इमारत जैसी बुनियादी जरूरत के अभाव में भी प्रशासन ने छात्रों से आवेदन आमंत्रित कए। निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है, फिर भी, एक नहीं बल्कि स्नातक विद्यार्थियों के तीन बैचों को नजदीक के रामनाथपुरम जिले के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में समायोजित किया गया है। पिछले हफ्ते, इन विद्यार्थियों ने यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन किया था कि संस्थान के रुप में एम्स से जो अपेक्षा की जाती है और मदुरै में जो इसके अनुभव हैं, उन दोनों के बीच एक गहरी खाई है- न सिर्फ बुनियादी ढ़ाचों के मामले में, बल्कि मरीजों के मामले में भी।
तमिलनाडु में 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान एम्स के निर्माण में असाधारण देरी विवादास्पद मुद्दा बन गया था जिसमें द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के उदयनिधि स्टालिन, जो अभी राज्य में मंत्री भी हैं, ने वहां निर्माण कार्य में लगे कुल एक ईंट की ओर इशारा किया था। हालांकि यह आश्वासन दिया गया है कि परियोजना जल्द पूरी कर ली जाएगी और छात्र मदुरै चले जाएंगे, लेकिन सच तो यह है कि मंथर गति से क्रियान्वित होनेवाली इस परियोजना से 150 विद्यार्थी पहले ही प्रभावित हो चुके हैं। इस बीच, एम्स शुरु करने के पीछे का असली मकसद अनसुलझा ही है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में डॉक्टर-जनसंख्या का अनुपात 1:834 है और ग्रामीण क्षेत्रों का सबसे बदतर हाल है। चिकित्सा संस्थान उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने में सक्षम हो और विद्यार्थियों को संघीय संबंधों की वेदी पर चढ़ाकर प्रताड़ित न किया जाय, यह सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना चाहिए।
Published - April 18, 2024 10:07 am IST