‘ओवर द टॉप’: डिजिटल ऐप की गोपनीयता और विनियमन

डिजिटल ऐप पर लगाम लगाने से पहले, सरकार को निजता को लेकर अपनी सोच बेहतर करनी चाहिए

Updated - September 26, 2022 12:06 pm IST

Published - September 26, 2022 11:53 am IST

पिछले हफ्ते सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए जारी किया गया दूरसंचार का मसौदा विधेयक, सरकार की एक ऐसी मंशा की ओर इशारा करता है जो परेशान करने वाली है। इसके जरिए, करोड़ों भारतीयों द्वारा रोजाना इस्तेमाल किए जाने वाले कई डिजिटल ऐप्लिकेशन और ‘ओवर द टॉप’ स्ट्रीमिंग सेवाओं पर सरकार ज्यादा नियंत्रण चाहती है। सरकार इन सबको दूरसंचार सेवाओं के दायरे में लाकर ऐसा करना चाहती है। अगर यह मसौदा विधेयक पारित हो जाता है और इन सेवाओं को दूरसंचार के दायरे में लाया जाता है, तो इनके लिए लाइसेंस की जरूरत होगी। इसका मतलब यह है कि व्हाट्सऐप, जूम और नेटफ्लिक्स जैसे ऐप को दूरसंचार सेवा माना जाएगा। इसी तरह डिजिटल सेवाओं की एक पूरी श्रृंखला भी इस दायरे में आ जाएगी, जिन्हें सरकार पहले से ही आईटी अधिनियम की मदद से विनियमित कर रही है। सरकार दूरसंचार सेवाओं की परिभाषा में व्यापक विस्तार लाकर ऐसा करना चाहती है। नई परिभाषा में प्रसारण सेवाओं से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मेल तक, वॉयस मेल से लेकर वॉयस, वीडियो और डेटा संचार सेवाओं तक, इंटरनेट और ब्रॉडबैंड सेवाओं से लेकर ओवर-द-टॉप संचार सेवाओं तक, सब कुछ शामिल है। साथ ही, सरकार अगर अलग से किसी चीज को अधिसूचित करती है, तो उसे भी इसमें शामिल कर लिया जाएगा।

देश को 21वीं सदी की हकीकतों से निपटने के लिए भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम,1885 पर आधारित मौजूदा ढांचे के बजाय एक नए कानूनी ढांचे की जरूरत है। यही सरकार ने किया है। लेकिन, पिछली एक सदी में सिर्फ तकनीक का ही विकास नहीं हुआ है, बल्कि एक लोकतांत्रिक समाज की समझ और उपयोगकर्ताओं के भीतर अधिकारों, गोपनीयता और पारदर्शिता की अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। इस बात को बहुत समय नहीं हुआ है जब देश की सर्वोच्च अदालत ने नागरिक की निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया था। इस लिहाज से, यह मसौदा इन सभी पहलुओं पर निराश करने वाला है। इस मसौदे में सरकार के पास "किसी भी सार्वजनिक आपातकाल के समय या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में" संदेश को प्रसारित होने से रोकने जैसी शक्तियां हैं। मसौदा विधेयक के एक और प्रावधान के तहत, सरकार जिस इकाई को लाइसेंस देगी उसे "उस व्यक्ति की स्पष्ट रूप से पहचान करनी होगी जिसे वह सेवा दे रही है"। पिछले साल आईटी नियमों में भी इसी तरह का उपबंध लाया गया था कि मैसेजिंग

ऐप को "अपने कंप्यूटर पर उस व्यक्ति की पहचान उजागर करनी होगी जिसने पहली बार उस सूचना को जारी किया"। इसे अदालत में चुनौती दी गई है। इस पर शक करने के लिए पर्याप्त वाजिब वजहें हैं कि क्या यह ‘एन्क्रिप्शन’ को तोड़े बिना और दो लोगों के बीच की बातचीत की सुरक्षा कमजोर किए बिना, तकनीकी रूप से संभव भी है! यह सुरक्षा की बढ़ती चुनौतियों को कम करके देखने की बात नहीं है। परेशानी का सबब दरअसल आम आदमी को डेटा सुरक्षा कानून के रूप में कोई कवच उपलब्ध कराए बिना सरकार द्वारा बार-बार संचार के हर तरह के साधन में झांकने की कोशिश है। सरकार को उपयोगकर्ताओं और गोपनीयता को लेकर अपनी सोच को बेहतर बनाने की जरूरत है। इस मसौदे को नए सिरे से तैयार करने की जरूरत है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

0 / 0
Sign in to unlock member-only benefits!
  • Access 10 free stories every month
  • Save stories to read later
  • Access to comment on every story
  • Sign-up/manage your newsletter subscriptions with a single click
  • Get notified by email for early access to discounts & offers on our products
Sign in

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.