मंगलवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टेलीफोन पर हुई बातचीत, यूक्रेन में जारी युद्ध के लिए एक अहम पड़ाव था। एक तरफ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से श्री मोदी अक्सर बात कर रहे थे, पिछले महीने उन दोनों की मुलाकात भी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ श्री जेलेंस्की से उनकी बातचीत उसी दौर तक सीमित थी जब यूक्रेन में फंसे 20,000 भारतीयों को निकालने का काम चल रहा था। यह फोन वार्ता, श्री पुतिन से श्री मोदी की मुलाकात और “अब यह युद्ध का दौर नहीं है” वाले बयान पर पश्चिमी देशों और श्री जेलेंस्की की ओर से की गई सराहना के कुछ हफ्ते बाद हुई। श्री मोदी ने श्री जेलेंस्की से कहा कि इस संघर्ष का समाधान सैन्य तरीके से नहीं निकल सकता। दोनों नेताओं की यह बातचीत, रूस में जनमत संग्रह कराने और डोनेट्स्क, लुहांस्क, जापोरिज्जिया और खरसॉन पर कब्जा जमाने के विरोध में संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदान से भारत के परहेज बरतने के भी एक हफ्ते बाद हुई। हालांकि दोनों ने उस बात का जिक्र नहीं किया। उन्होंने परमाणु सुरक्षा की अहमियत पर भी चर्चा की। खास तौर से जापोरिज्जिया संयंत्र के बारे में, जोकि आईएईए के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। आईएईए इस संयंत्र के इर्द-गिर्द परमाणु सुरक्षा जोन बनाने को लेकर यूक्रेन और रूस के बीच बातचीत की मध्यस्थता भी कर रहा है। यह संयंत्र अब रूस के नियंत्रण वाले ओब्लास्ट प्रांत में है, जिसके “विलय” के बारे में श्री पुतिन ने हाल ही घोषणा की थी। चिंताजनक यह है कि जहां युद्ध हो रहा है, उस जगह के नजदीक ही यह संयंत्र है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक श्री मोदी ने "इस बात को रेखांकित किया कि परमाणु संयंत्र अगर खतरे में पड़ता है, तो... सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए यह विध्वंसक साबित हो सकता है"। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह खतरा किस ओर से ज्यादा है। अंत में, श्री मोदी ने "शांति की किसी भी कोशिश में योगदान के लिए भारत की इच्छा" व्यक्त की, जिस पर श्री जेलेंस्की ने कहा कि वे "रूसी संघ के मौजूदा राष्ट्रपति" के साथ कोई बातचीत नहीं करेंगे।
पिछले सात महीनों से इस युद्ध और पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों ने वैश्विक सुरक्षा, खाद्य, ईंधन और ऊर्जा आपूर्ति पर बेतरह असर डाला है। ऐसे में बातचीत के दरवाजे खोले रखना जरूरी है, जैसा कि श्री मोदी ने श्री पुतिन और श्री जेलेंस्की के साथ किया। वैश्विक शांति स्थापना में भारत की अहम भूमिका रही है। हालांकि, नई दिल्ली यह भूमिका सिर्फ तभी निभा सकती है जब दो देशों के बीच चल रही लड़ाई में वह अपनी स्थिति और स्पष्ट रूप से
निर्धारित करें और वैश्विक मंचों पर की जाने वाली अपनी गतिविधियों से उसे जोड़े। भारत के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा तेल और रक्षा व्यापार पर पश्चिमी प्रतिबंधों की अवहेलना को समझा जा सकता है। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के पालन और क्षेत्रीय संप्रभुता की सुरक्षा की अहमियत पर श्री मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की टिप्पणियों को आपस में जोड़कर देख पाना मुश्किल है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस बीच यूक्रेन पर रूस के हमले की आलोचना से जुड़े हर मतदान से भारत परहेज बरतता रहा है। इसमें आम नागरिकों पर की गई बमबारी और रूस द्वारा यूक्रेन के कुछ हिस्सों को अपने कब्जे में लेने के मामले भी शामिल हैं।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
Published - October 06, 2022 11:26 am IST