राहुल गांधी की अगुवाई में बीते 135 दिनों की पदयात्रा के बाद, श्रीनगर में महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर भारत जोड़ो यात्रा का समापन हो गया। इस ध्वजारोहण कार्यक्रम में विपक्ष के कई नेता शामिल हुए और वहां तिरंगा झंडा फहराया गया। संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी की किस्मत पलटने के लिए, समूचे भारत को दक्षिण से उत्तर तक मापने वाली इस यात्रा का यह एक उचित अंत था। यात्रा का उद्देश्य “अनेकता में एकता” के नारे पर टिके कांग्रेस पार्टी के भारत के प्रति नजरिए और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हिंदुत्व की विचारधारा के बीच के अंतर को लोगों के सामने उभारना था। जनता तक पार्टी की जितनी पहुंच है उससे कांग्रेस को हाल-फिलहाल चुनावी लाभ नहीं मिल पाया है। इसके प्रभाव में लगातार गिरावट आई है और पार्टी के कई नेता भाजपा में शामिल हो गए। लेकिन राहुल गांधी का देश भर के नागरिक समाज और आम लोगों से बातचीत करने की कल्पना और इस यात्रा के आयोजन ने भारत की सबसे पुरानी पार्टी के राजनीतिक पुर्जे का जंग साफ कर उसमें नई जान फूंक दी। यात्रा का संदेश भले ही साधारण और नारों पर टिका रहा हो, लेकिन इसने पार्टी के कुछ खास मूल्यों को काफी हद तक स्पष्ट रूप से जनता के सामने रख दिया। श्रीनगर को ध्यान में रखकर देखें तो यह और भी स्पष्ट दिखेगा।
जम्मू एवं कश्मीर भारत का सबसे संघर्ष-ग्रस्त प्रांत रहा है और 2019 में इसका विशेष दर्जा अचानक खत्म करने और इसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद से लेकर अब तक यह केंद्रशासित प्रदेश ही बना हुआ है। इस फैसले के बाद के वर्षों में, कश्मीर में हिंसक वारदातें बढ़ गई, मुख्यधारा की राजनीति (जिसे कुछ समय के लिए अलगाववादी धारा के साथ जोड़ दिया गया था) कमजोर हो गई, और संचार सुविधाओं पर लॉकडाउन और प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश की गई। महीनों की उथल-पुथल के बाद, पर्यटन क्षेत्र में आई बहार की वजह से कश्मीर में आर्थिक गतिविधियां फिर से बहाल हो गईं, लेकिन नियम-कायदों में किए गए अचानक बदलाव की वजह से घाटी में बेचैनी की भावना बहुत गहरे तक पैबस्त है। कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बार-बार होने वाली हिंसक घटनाएं भी अंदर ही अंदर चल रही उथल-पुथल का संकेत रही हैं। श्रीनगर में ध्वजारोहण समारोह में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की मौजूदगी इस बात का सबूत थी कि घाटी की मुख्यधारा की पार्टियों के लिए यात्रा की अपील का स्तर क्या था। साथ ही, यह एक तरह से कश्मीर की राजनीति और राष्ट्रीय विपक्ष के बीच एकजुटता की दिशा में एक वास्तविक कोशिश है। फिर भी, कांग्रेस के पुनरुद्धार के लिए अभी पार्टी को कई कदम उठाने होंगे और बहुत लंबा सफर तय करना होगा। देश और खासकर उत्तर भारत के कई हिस्सों में पार्टी को संगठनात्मक प्रासंगिकता बहाल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
This editorial has been translated from English, which can be read here.