शुक्रवार को 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव के पहले चरण में, 21 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के मतदान केंद्रों पर 16.63 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 62.3 फीसदी (प्रारंभिक आंकड़ा) अपने मताधिकार का प्रयोग करने पहुंचे। कुल 102 लोकसभा सीटों पर 1,625 उम्मीदवार दौड़ में थे। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के लोगों ने नयी विधानसभाओं के लिए भी वोट डाले। हिंसा और व्यवधान की छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें, तो मतदान मोटे तौर पर शांतिपूर्ण रहा। जातीय संघर्ष से जूझ रहे मणिपुर की दो सीटों में से एक में, हिंसा की खबरों के बीच भी 72.32 फीसदी वोट पड़े। तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर आम चुनाव के पहले चरण में मतदान हुआ। राज्य में राजनीतिक प्रवेश के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस बार अपना सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास किया। भाजपा तमिलनाडु में पैर पसारने की आस लगाये है, जहां द्रविड़वादी पार्टियां विभिन्न किस्म की चुनौतियों का सामना कर रही हैं। ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के करिश्माई नेता, क्रमश: जे. जयललिता और एम. करुणानिधि, पिछले दशक में गुजर चुके हैं और भाजपा को पुलिस अधिकारी रहे के. अन्नामलाई के रूप में एक बेहद मुखर नेता मिल गया है। तमिलनाडु में डीएमके ने राज्य सत्ता और सामाजिक सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखी है, लेकिन भाजपा ने इस राज्य के राजनीतिक चरित्र को पुनर्परिभाषित करने में काफी मेहनत की है।
तमिलनाडु पर भाजपा के ध्यान केंद्रित करने के वैचारिक और रणनीतिक दोनों पहलू हैं। पार्टी का यह मानना वाजिब है कि वाम दलों के प्रभाव क्षेत्र के बाहर, उसकी राजनीति का सबसे मजबूत प्रतिरोध तमिलनाडु से है। यहां क्षेत्रीय पार्टियों के पास सामाजिक, भौतिक और बौद्धिक संसाधनों का होना उन्हें दुर्जेय बनाता है। रणनीतिक रूप से, भाजपा को नये इलाकों में कुछ सीटें हासिल करने की जरूरत है क्योंकि हिंदी पट्टी के अपने गढ़ में वह शिखर छू चुकी है तथा वह वहां और ज्यादा नहीं बढ़ सकती। शुक्रवार को राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के जिन हिस्सों में मतदान हुआ, वहां से आयी खबरें बताती हैं कि सत्तारूढ़ भाजपा को विपरीत हवाओं का सामना करना पड़ा। यहां नुकसान होने की स्थिति में, पार्टी आस लगाये हुए है कि प्रायद्वीपीय भारत में कुछ लाभ होने से इसकी आंशिक भरपाई हो सकती है। इस बीच, देशभर में क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा की आक्रामकता के सामने अपनी जमीन बचाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने कोई नयी कल्पनाशीलता नहीं दिखाई है। यह उनके चुनाव प्रचार से जाहिर है। भाजपा इस उचित संभावना के आधार पर काम कर रही है कि तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्तर पर वर्चस्वशाली पार्टियों के प्रति लोकप्रिय प्रतिरोध समय के साथ शायद कमजोर पड़ गया है। भाजपा को कितना लाभ हुआ है, यह वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा। लेकिन, पहले चरण के लिए प्रचार अभियान ने दक्षिण की परियोजना के प्रति उसकी गंभीरता का पर्याप्त संकेत दे दिया है।