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कांग्रेस की खोज: भारत जोड़ो यात्रा

Updated - September 21, 2022 06:57 pm IST

Published - September 09, 2022 12:24 pm IST

भारत जोड़ो यात्रा को अपने उसूलों पर खरा उतरना चाहिए, न कि इसे राहुल गांधी से जोड़कर देखा जाए

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, एक महत्वाकांक्षी राजनीतिक परियोजना है। इससे एक नेता के रूप में उनकी स्वीकार्यता की परीक्षा होगी और देश के मिजाज का पता चलेगा। भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर कन्याकुमारी से बुधवार को शुरू हुई यह यात्रा करीब पांच महीनों में 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होते हुए 3,500 किलोमीटर की दूरी तय करके कश्मीर पहुंचेगी। श्री गांधी ने कहा कि यह मार्च राष्ट्रीय ध्वज के मूल्यों के तले सभी भारतीयों को एकजुट करने की कोशिश है, जिसका मूल सिद्धांत विविधता है। कांग्रेस नेता ने कहा कि मौजूदा सरकार में हिंदुत्व की विचारधारा के साये में यह मूल्य अब खतरे में है। हिंदुत्व के कटु एवं मुखर आलोचक और विविधता, संघवाद और उदारवाद के पैरोकार श्री गांधी, कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए अब तक अपनी सोच के साथ पर्याप्त जन समर्थन नहीं जुटा पाए हैं। इस बीच, हिंदुत्व की विचारधारा इतनी लोकप्रिय हुई कि उसने दिल्ली फतह कर ली। हालांकि इसका भौगोलिक प्रसार अभी भी छितराया हुआ है। श्री गांधी को इस बात के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है कि वे लगातार सक्रिय रहने की सीमित क्षमता रखने वाले मौसमी राजनेता हैं। इतनी लंबी और चुनौतीपूर्ण यात्रा की शुरुआत करके वे शायद खुद की सहनशक्ति की भी परीक्षा ले रहे हैं। ऐसी राजनीतिक यात्राओं ने इतिहास और यहां तक कि हाल में भी कई नेताओं की किस्मत लिखने और विचारधारा को उर्वर बनाने का काम किया है। महात्मा गांधी से लेकर लालकृष्ण आडवाणी तक इस बात की मिसाल हैं। इसलिए श्री गांधी को हर कदम पर उनके प्रशंसकों, आलोचकों और सबसे जरूरी तौर पर खुले विचारों वाले संशयवादियों द्वारा बारीकी से परखा जाएगा।

श्री गांधी के लिए यह बहुत मायने रखता है कि अनिर्णय की स्थिति में रहने वाले भारतीयों पर उनकी यात्रा का क्या असर पड़ता है। कांग्रेस ने मई महीने में उदयपुर में संपन्न मंथन सत्र में इस यात्रा की घोषणा की थी। पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए उदयपुर में जो एलान हुए उन उपायों को आजमाए जाने पर ही यह यात्रा ज्यादा उपयोगी साबित होगी। भारत के तटस्थ लोगों की नाराजगी यह है कि सामान्य और प्रतिभाशाली कार्यकर्ताओं की कीमत पर परिवारवादियों ने कांग्रेस पार्टी के भीतर की सत्ता पर कब्जा कर रखा है। उदयपुर के सम्मेलन में पार्टी की अंदरुनी सत्ता में वंशवाद पर अंकुश लगाने का संकल्प लिया गया था, लेकिन अब तक यह कागज पर ही सिमटा हुआ है। श्री गांधी उस जहरीली विरासत से अच्छी तरह परिचित हैं, जो पार्टी को जकड़े हुए है। बदले में, वह कभी संकोची रवैया अपनाते हैं और कभी इसकी जगह अपनी मंडली के लोगों को आगे लाने की कोशिश करते हैं। श्री गांधी को इस यात्रा के माध्यम से कांग्रेस कार्यकर्ता की पहचान करनी होगी और उन्हें प्रेरित एवं प्रोत्साहित करना होगा। यह धारणा गलत और भ्रामक है कि कांग्रेसी ढांचे से बाहर के गैर-सरकारी संगठन और अन्य सहयोगी उनकी राजनीति को उड़ान देगें। श्री गांधी को अवाम को यह समझाना होगा कि वह सत्ता बदलने पर देश को चलाने के काबिल हैं। साथ ही, उन्हें उन पार्टी कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करना होगा जिन्हें लंबे समय से एक के बाद एक जड़विहीन लोगों के समूहों ने दबाकर रखा है। यह एक लंबी और कहें कि एकाकी यात्रा है।

This editorial has been translated from English which can be read here.

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