पिछले सप्ताह के पिछले दो कारोबारी सत्रों में बुनियादी ढांचे और जिन्सों के प्रमुख व्यापारिक घराने, अडानी समूह के स्टॉक में आई भारी गिरावट से शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर हुए ताजा उतार-चढ़ाव ने सारा ध्यान भारत के नियामक माहौल की ओर मोड़ दिया है। अमेरिका के एक शॉर्ट सेलर की रिपोर्ट में ‘स्टॉक के हेरफेर और लेखांकन की संदिग्ध कार्य प्रणाली’ के आरोप से पैदा हुई इस बेहद मालदार समूह की बाजार संबंधी परेशानियों ने शुक्रवार को भारतीय स्टेट बैंक और यहां तक कि राज्य के स्वामित्व वाले भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के बैंकिंग शेयरों को नीचे ला दिया और व्यापक वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता को लेकर निवेशकों के जेहन में चिंता जगा दी। सूत्रों के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में जहां यह कहा गया है कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इस समूह के लेन-देन की जांच तेज कर दी है, वहीं इस बाजार नियामक की ओर से इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है। इस व्यापारिक घराने ने शॉर्ट सेलर के आरोपों को ‘निराधार एवं बदनाम करने वाला और इस समूह की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से पैदा किया गया’ करार देते हुए खारिज कर दिया है और वह कानूनी कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है। शॉर्ट सेलर की रिपोर्ट में उठाई गई चिंताओं के साथ-साथ इस समूह के शेयरों को लेकर सतर्क घरेलू निवेशकों की आशंकाओं को दूर करने के लिए इस समूह की तरफ से चाहे जो भी कदम उठाए जा रहे हों, लेकिन सेबी और भारतीय रिजर्व बैंक सहित भारत के नियामकों के सामने इस बात का एक मौका ही नहीं बल्कि जिम्मेदारी भी है कि वे किसी भी व्यापक प्रणालीगत गड़बड़ियों की आशंकाओं को दूर करके पूरी तस्वीर को साफ करें।
इस तथ्य को मानते हुए कि स्टॉक मार्केट के प्रमुख मानक सूचकांकों पर इस समूह के शेयरों की कोई खास मौजूदगी या वजन नहीं है और निजी इक्विटी रिसर्च रिपोर्टों ने इस समूह के साथ बैंकिंग क्षेत्र के समग्र लेन-देन के जोखिम से जुड़ी चिंताओं को कम करके आंका है, इस बात पर तर्क करने की कोई गुंजाइश नहीं है कि राज्य -स्वामित्व वाले प्रमुख बैंक और एलआईसी इस देश की वित्तीय प्रणाली के प्रमुख स्तंभ हैं। बचतकर्ताओं की जमाराशियों और जीवन बीमा पॉलिसियों के साथ-साथ करदाताओं के संसाधनों, जिन्हें उधार देने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) को पर्याप्त रूप से पूंजीकृत रखने के लिए निवेश किया गया है, के रूप में इन कंपनियों में बड़े पैमाने पर आम लोगों के भरोसे के मद्देनजर वित्तीय प्रणाली के नियामक वक्त रहते यकीन दिलाने वाले संदेश जारी करके व्यापक सार्वजनिक हित को पूरा करेंगे। ये नियामक न सिर्फ लिस्टिंग संबंधी जरूरतों को कड़ा करके बल्कि उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण रूप से कानूनों के गंभीर उल्लंघनों के मामले में सख्त कार्रवाइयों के जरिए एक पसंदीदा निवेश गंतव्य के रूप में भारत की विश्वसनीयता को बढ़ा सकते हैं। वर्ष 1990 के दशक के अंत में एशियाई वित्तीय संकट या फिर 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनजर क्रेडिट रेटिंग की विश्वसनीयता को लेकर समय-समय पर उठने वाली वैश्विक बहस भी चिंता का एक ऐसा विषय है जिसपर भारत के नियामकों को फिर से गौर करने की जरूरत है। एक ऐसे समय में जब भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है, अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे नियामक ढांचे को केवल सकारात्मक नजर से देखा जाए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.